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02 मार्च 2013

चलो चलें हम संघर्षों के सेहरा बांधें

Rajiv Chaturvedi
"यहाँ हो रहा ईलू- ईलू काव्य विमोचन
चलो चलें हम संघर्षों के सेहरा बांधें
और जनपथों की चीखों से राजपथों की नींद उड़ा दें
प्रेम की कविता कहने वालो
सवा अरब की आबादी में देह से पहले देश को देखो
गल्ला सड़ता है गोदाम में भूख है पसरी हर एक गाँव में
सेना के जवान को देखो सियाचिन की शीतलहर के सीमित संसाधन में कम वेतन में जूझ रहा है
और यहाँ नौकरशाही को घूस का अवसर सूझ रहा है
शिक्षा की दूकान पर बिकता एकलव्य का रोज अंगूठा तुम भी देखो
सुविधा का विस्तार कर रही संसद देखो
राष्ट्रपति बनने की राहों से पूछो लोकतंत्र की आहों का सच
न्याय बकीलों की दूकान पर बिकता बिकता है क्या ?
जन -गण -मन की धुन को गाता घुन सा देखो जो नेता है, राष्ट्रधर्म का अभिनेता है
यहाँ हो रहा ईलू- ईलू काव्य विमोचन
चलो चलें हम संघर्षों के सेहरा बांधें
और जनपथों की चीखों से राजपथों की नींद उड़ा दें." -----राजीव चतुर्वेदी

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