विक्रमादित्य के नौ रत्नो में एक कालिदास संस्कृत भाषा के सबसे महान
कवि और नाटककार थे। कालिदास का विवाह धोखे से विद्योत्तमा नाम की राजकुमारी
से करा दिया गया था।
कालिदास का विवाह विद्योत्तमा से उन लोगों ने धोखे से करा दिया था जो
शास्त्रार्थ में विद्योत्तमा से हार गए थे। विद्योत्तमा ने विवाह के लिए
शर्त रखी थी कि जो उन्हे शास्त्रार्थ में हरा देगा वो उसी से विवाह करेंगी।
कालिदास इतने बड़े बेवकूफ थे कि जिस डाल पर बैठे थे, उसे ही काट रहा थे।
विद्योत्तमा को जब पता चलता है कि कालिदास बेवकूफ हैं तो उन्होंने
कालिदास को बहुत बुरा-भला कहा। इसके बाद कालिदास ने निश्चय किया कि वह
विद्या हासिल करके ही रहेंगे।
घर से निकाले जाने के बाद कालीदास ने सिर्फ विद्या हासिल की बल्कि कई
महान रचनाओं के सर्जनकर्ता बने। उनकी सबसे महान रचनाओं में से एक है
अभिज्ञान शाकुन्तलम। इसमें राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय, विवाह,
विरह, प्रत्याख्यान तथा पुनर्मिलन की एक सुन्दर कहानी है।
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