त्रेतायुग में मयार्दापुरुषोत्तम भगवान
श्रीराम ने जिन खूबियों व न्यायसंगत तरीकों से शासन चलाया गया, वह आज भी
'रामराज्य' नाम से राम की तरह हर दिल में समाया है। यह शासन व्यवस्था आज भी
सुखी जीवन का आदर्श है और परिवार, समाज या राज्य में सुख और सुविधाओं से
भरी व्यवस्था के लिए इसी रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है।
यही वजह है कि आज कई मौकों पर सियासती चालें राम नाम व रामराज्य लाने
की बातों पर टिकी होती हैं। किंतु उनमें राम नाम के साथ राम की तरह मर्यादा
व नैतिकता न होने से रामराज्य लाने के सारे सियासी दावे बेमानी ही साबित
होते हैं।
असल में, जिस रामराज्य को मात्र सुख-सुविधाओं का पर्याय माना जाता है,
वह मात्र सुविधाओं के नजरिए से ही नहीं बल्कि उसमें रहने वाले नागरिकों के
पवित्र आचरण, व्यवहार और विचार और मर्यादाओं के पालन की वजह भी श्रेष्ठ
शासन व्यवस्था का प्रतीक है।
गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं रामचरित मानस में कहा है -
दैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम राज नहहिं काहुहि ब्यापा।।
- इस चौपाई के मुताबिक राम राज्य में शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सांसारिक तीनों ही दु:ख नहीं थे।
- राम राज्य में रहने वाला हर नागरिक उत्तम चरित्र का था।
- सभी नागरिक आत्म अनुशासित थे, वह शास्त्रो व वेदों के नियमों का पालन करते थे। जिनसे वह निरोग, भय, शोक और रोग से मुक्त होते थे।
- सभी नागरिक दोष और विकारों से मुक्त थे यानि वह काम, क्रोध, मद से दूर थे।
- नागरिकों का एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या या शत्रु भाव नहीं था। इसलिए सभी को एक-दूसरे से अपार प्रेम था।
- सभी नागरिक विद्वान, शिक्षित, कार्य कुशल, गुणी और बुद्धिमान थे।
- सभी धर्म और धार्मिक कर्मों में लीन और निस्वार्थ भाव से भरे थे।
- रामराज्य में सभी नागरिकों के परोपकारी होने से सभी मन और आत्मा के
स्तर पर शांत ही नहीं बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी शांति और सुकून से रहते
थे।
- रामराज्य में कोई भी गरीब नहीं था। रामराज्य में कोई मुद्रा भी नहीं
थी। माना जाता है कि सभी जरूरत की चीजों का बिना कीमत के लेन-देन होता था।
अपनी जरूरत के मुताबिक कोई भी वस्तु ले सकता था। इसलिए बंटोरने की
प्रवृत्ति रामराज्य में नहीं थी।
- मान्यता यह भी है कि पर्वतों ने अपने सभी संपत्ति मणि आदि और सागर
ने रत्न, मोती रामराज्य के लिए दे दिये। इसलिए वहां के नागरिक शौक-मौज के
जीवन की लालसा नहीं रखते थे बल्कि कर्तव्य परायण और संतोषी थे।
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