पुणे। महाराष्ट्र के भंडारा जिले में एक गांव है जिसे खैरलांजी
के नाम से जाना जाता है। 29 सितम्बर 2006 तक इस नाम से शायद ही कोई परिचित
था।
यह एक ऐसी तारीख है जिसे भारतीय इतिहास के उन दिनों में शामिल किया जा
सकता है जो मानव सभ्यता के विकास पर एक ऐसा कलंक है जो किसी भी भारतीय का
सिर शर्म से झुका दे।
इस गांव में दलित सम्प्रदाय का भोतमंगे परिवार खेती कर अपना जीवन
गुजार रहा था। 29 सितम्बर को गांव के कुछ लोगों ने अचानक इस परिवार पर हमला
कर दिया। उस वक़्त घर का मुखिया नहीं था। लेकिन उसकी पत्नी, एक बेटी और दो
बेटे मौजूद थे।
भीड़ ने उस पूरे परिवार को घर से बाहर घसीटा। दोनों महिलाओं के साथ
सामूहिक बलात्कार किया (हालांकि, सीबीआई ने अपनी जांच में बलात्कार की
पुष्टि नहीं की)।
फिर पूरे परिवार को निर्वस्त्र कर गांवभर में घुमाया और सबके सामने उन
चारों के अंग तब तक एक-एक कर काटे गए जब तक कि उन सबकी मौत नहीं हो गई।
इस पूरी वारदात को इसी गांव के राजनीतिक रूप से दबंग एक परिवार ने
अंजाम दिया। चौंकाने वाली बात ये है कि इस भयंकर नरसंहार को देश के किसी भी
बड़े मीडिया संस्थान ने तवज्जो नहीं दी।
सामूहिक हत्या की इस घटना ने उस इलाके में दंगे भड़का दिए। तब जाकर
मीडिया को इस वारदात की गंभीरता का पता चला। मामले की गंभीरता को देखते हुए
सरकार ने इस हत्याकांड की जांच का काम सीबीआई को सौंपा।
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