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22 जनवरी 2013

सिमी ने कांग्रेस को बताया आरएसएस से ज्‍यादा खतरनाक

 
आजमगढ़/लखनऊ. केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के बयान और बीजेपी के वि‍रोध और इस्‍तीफे की मांग के साथ ही एक बार फि‍र से आतंकवाद पर बहस शुरू हो गई है। गृहमंत्री ने कहा कि  कि भाजपा और आरएसएस के कैंप में हिंदू आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा है। ( इसके बाद भाजपा की तरफ से रवि‍शंकर प्रसाद ने कहा है कि जब सिमी और इंडियन मुजाहिदीन पर प्रतिबंध लगाया गया, तब हमने कभी कहा कि यह मुस्लिम आतंकवाद है। आतंकी हमेशा आतंकी है, चाहे उसकी आस्‍था कोई भी हो। स्‍टूडेंट्स इस्‍लामि‍क मूवमेंट ऑफ इंडि‍या (सि‍मी) फि‍लहाल बैन है और इसके पूर्व अध्‍यक्ष डा.शाहि‍द बद्र फलाह अदालत में खुद पर से बैन हटाने का मुकदमा लड़ रहे हैं। आतंकवाद को लेकर कांग्रेस और भाजपा का नजरि‍या सामने आ चुका है। इस मौके पर सि‍मी का नजरि‍या खासा मौजूं है। दैनि‍क भास्‍कर डॉट कॉम ने डा.शाहि‍द बद्र फलाही से आतंकवाद, केंद्र व प्रदेश सरकार, कोर्ट, पाकि‍स्‍तान और कसाब जैसे कई मुददों पर बात की।
आपकी नजर में आतंकवादी कौन है।
सि‍मी भारत राष्‍ट्र को कि‍स नजरि‍ये से देखता है। ये वो बाते हैं जो बार बार हर मौके से कही जाती हैं। इसकी पहले परि‍भाषा तय कर लें। क्‍या है ये आतंकवाद और आतंकवादी हैं कौन? इसमें काफी कन्‍फ्यूजन है। जैसे कहीं धमाका हुआ, भले मंदि‍र में हो या मस्‍जि‍द में हो, हमसे पूछा जाता है। संकटमोचन वाराणसी में धमाका हो, हमसे पूछा जाता है। अजमेर दरगाह में धमाका होता है, हमसे पूछा जाता है। ट्रेन में धमाका हो, हमसे पूछा जाता है। कभी ये राज ठाकरे से नहीं पूछा जाता या पी चि‍दंबरम से नहीं पूछा जाता है। इसका मतलब है कि‍ बैक ऑफ दि माइंड ये बात है कि‍ आतंकवादी जो भी होगा, वो मुसलमान होगा। बेचारा मुसलमान गला फाड़कर कहता है कि मुसलमानों का आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है और कि‍सी आतंकवादी का धर्म या मजहब नहीं होता। इतना सब चि‍ल्‍लाने के बाद जब वह कोर्ट में पेश होते हैं तो लोग उन्‍हें मारते हैं, वकील उनकी दाढ़ी नोचने लगते हैं। कोई वकील उनका केस लड़ने को तैयार नहीं होता। तारि‍क आजमी कोर्ट में पेश होते हैं तो वकील उन्‍हें घसीट-घसीट कर मारते हैं। कोई शोएब एडवोकेट अगर खड़ा होता है तो उन्‍हें भी मारा जाता है। वहीं, अगर प्रज्ञा ठाकुर पेश होती हैं या कर्नल पुरोहि‍त पेश होता है तो उनका फूल माला से स्‍वागत होता है। कि‍सी को मंगल पांडेय का खि‍ताब दि‍या जाता है। ये इसी मुल्‍क में हो रहा है। हमारे यहां बैक ऑफ द माइंड है, जि‍सकी वजह से  मुसलमान भले लाख सफाई दे, कोई सुनने वाला नहीं है। मेरा मानना है कि‍ हर वो काम जो सामने वाले को दबाने, डराने और धमकाने के लि‍ए, चाहे वो हाथ से हो या कि‍सी और तरीके से, वो आतंकवाद की श्रेणी में आता है। 
 
इस्‍लाम कहता है कि‍ सजा देने का अख्‍ति‍यार कि‍सी इंसान को नहीं। सजा देने का हक ज्‍यूडिशि‍यरी को है। अगर पुलि‍स वाले कि‍सी को मार भी दें, तो यह भी आतंकवाद की ही श्रेणी में आता है। सजा देने का हक सिर्फ ज्‍यूडिशि‍यरी का है, अदलि‍या का काम कानून-व्‍यवस्‍था बनाए रखना है और दोषी को ज्‍यूडिशि‍यरी के सामने ले जाकर हाजि‍र कर देना है। हम देख रहे हैं कि लोग अलग-अलग आतंकवाद का शि‍कार हैं। हम हुकूमती आतंकवाद का खुद शिकार हैं। सि‍मी पर बैन हुकूमती आतंकवाद की सबसे बड़ी मि‍साल है। इस बहाने से मुसलमानों को टेरराइज करने की कोशि‍श हो रही है। यह भी आतंकवाद की श्रेणी में आता है। चाहें उसमें 
का इस्‍तेमाल हो चाहे कि‍सी और का।
सि‍मी भारत राष्‍ट्र को कि‍स नजरि‍ए से देखता है?
इस मुल्‍क में जि‍सने ज्‍यादा कुर्बानी दी, उसका ज्‍यादा हक होना चाहि‍ए। इति‍हास गवाह है कि इस मुल्‍क में सबसे ज्‍यादा कुर्बानी मुसलमानों ने दी। प्‍लासी में नवाब सि‍राजुद्दौला की शक्‍ल में हम लड़े। आज भी उस युद्ध का पि‍लर वहीं लगा है। उस वक्‍त अंग्रेजों की चापलूसी कौन कर रहे थे, कौन अंग्रेजों के वि‍रोध में था, इति‍हास हर एक चीज का गवाह है। दक्षि‍ण में टीपू सुल्‍तान अंग्रेजों से शेर बनकर लड़े और जान दी। अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते आखि‍री मुगल बादशाह को हिंदुस्‍तान की चंद गज जमीन भी नसीब न हुई। पर उसी समय कि‍सने थोड़े-थोड़े फायदे के लि‍ए चापलूसी की। आरएसएस ने खुद कभी कोई कुर्बानी इस देश के लि‍ए नहीं दी, पर हक पहले जताते हैं। जि‍न्‍होंने कुर्बानि‍यां दी हैं, उन्‍हीं से पूछा जाता है कि आपकी क्‍या राय है। हम तो कहते हैं, 'इस चमन को जब भी खूं की जरूरत पड़ी, सबसे पहले ये गर्दन हमारी कटी, फि‍र भी कहते हैं हमसे ये अहले चमन, ये चमन है हमारा, तुम्‍हारा नहीं।'
 
जि‍सने कुर्बानी देकर हिंदुस्‍तान को आजाद कराया, उससे पूछते हो कि हिंदुस्‍तान से कि‍तना प्‍यार है। हमने तराना दि‍या, 'सारे जहां से अच्‍छा, हिंदुस्‍तान हमारा।' पर इति‍हास जानता है कि बकिंम चटर्जी कौन थे, आनंद मठ क्‍यों लि‍खा गया। अंग्रेजों की चापलूसी में लि‍खा गए आनंद मठ के गाने को राष्‍ट्रगान बनाने की जि‍द है। जब भी कभी वंदे मातरम को राष्‍ट्रगान बनाने की बात होती है, हमें लगता है कि ये हमारे जले पर नमक छि‍ड़कना है।

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