रांची। दुनिया को स्वर्ग और नरक के अस्तित्व पर विश्वास हो न हो, पर
आज से करीब 18 लाख साल पहले त्रेतायुग में लंकाधिपति रावण ने धरती से
स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने का काम शुरू किया था। अगर सीढ़ी बनाने में राक्षसराज
कामयाब हो जाता तो फिर स्वर्ग जाने के लिए अच्छे कर्मों और पुण्यप्रताप की
जरूरत नहीं पड़ती। बहरहाल, हम बात कर रहे हैं उस जगह की जहां से सोने की
लंका के मालिक रावण ने इस प्रोजेक्ट की शुरूआत की थी। भले ही यह प्रोजेक्ट
बीच में ही रोक दिया गया हो पर सीढ़ियां बनाने के लिए लगाए गए चट्टान आज भी
उसकी गवाही दे रहे हैं।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
26 नवंबर 2012
बैकुंठ चतुर्दशी आज: इस आसान विधि से करें पूजन व व्रत
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहते
हैं। इस दिन बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस बार यह
पर्व 26 नवंबर, सोमवार को है।
ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शंकर को सौंप देते हैं। इन चार मासों में सृष्टि का संचालन शिव ही करते हैं। चार मास सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शंकर सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंपते हैं। इस दिन पूजन व व्रत इस प्रकार करना चाहिए-
व्रत विधि
इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर दिनभर व्रत रखना चाहिए और रात में भगवान विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करना चाहिए, इसके बाद भगवान शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
रात समाप्ति के बाद दूसरे दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा पर शिवजी का पुन: पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता और भगवान विष्णु तथा शिव के ऐक्य का प्रतीक है।
ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शंकर को सौंप देते हैं। इन चार मासों में सृष्टि का संचालन शिव ही करते हैं। चार मास सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शंकर सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंपते हैं। इस दिन पूजन व व्रत इस प्रकार करना चाहिए-
व्रत विधि
इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर दिनभर व्रत रखना चाहिए और रात में भगवान विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करना चाहिए, इसके बाद भगवान शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
रात समाप्ति के बाद दूसरे दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा पर शिवजी का पुन: पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता और भगवान विष्णु तथा शिव के ऐक्य का प्रतीक है।
हाईकोर्ट बैंच जयपुर क्या गई 64 साल में भी नहीं मिला हक
कोटा. सुलभ और आसान तरीके न्याय दिलाने की बातें खूब होती रही
हैं, लेकिन हाईकोर्ट की बैंच यहां नहीं होने से भी भी पक्षकारों को जयपुर
के फेरे लगाने पड़ते हैं।
कोटा से जयपुर आने- जाने में लगभग एक हजार रुपए का खर्चा आता है। निजी साधनों से तो यह खर्चा कई गुना ज्यादा है। फिर हाईकोर्ट में सुनवाई नहीं हो पाने और तारीख मिल जाने से ये फेरे बढ़ जाते हैं।
हाईकोर्ट में स्थानीय पक्षकार की दरख्वास्त मंजूर हो पाना भी आसान नहीं होता। यानी, इंसाफ चाहने के लिए समय और रुपए का बार-बार खर्चा होता है, फिर भी समय पर न्याय मिल जाए और नतीजा पीडि़त पक्ष को राहत दे पाए, यह भी कम बोझिल नहीं होता।
इसकी मुख्य वजह एक ही है कि हमारे यहां हाईकोर्ट की बैंच नहीं है, जबकि प्रदेश में यह व्यवस्था केवल जयपुर- जोधपुर में ही है। इसके विपरीत क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान से छोटा होने के बावजूद मप्र में तीन शहरों में हाईकोर्ट है।
64 साल पहले स्टेट टाइम में राजस्थान हाईकोर्ट की बैंच के फैसले कोटा में ही होते थे, लेकिन 1950 में राजस्थान की राजधानी बनने के बाद कोटा से हाईकोर्ट बैंच जयपुर चली गई। संभाग से करीब 40 प्रतिशत केस हाईकोर्ट बैंच में जाते हैं।
यहां के वकीलों ने बैंच के लिए 2009 में 4 माह तक लंबा आंदोलन भी किया, लेकिन कोरे आश्वासन के बाद वकीलों को आंदोलन स्थगित करना पड़ा। आज भी वकीलों द्वारा हर शनिवार को हाईकोर्ट की बैंच कोटा में खोलने की मांग को लेकर हड़ताल की जाती है। इसके बावजूद सरकार व स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर कोई असर नहीं हो रहा है।
स्टेट के जमाने में राजस्थान हाईकोर्ट की बैंच, जिला जज, मुंसिफ सहित अन्य कोर्ट झाला हाउस में लगती थी। मुख्य पीठ उदयपुर में थी। उस समय एक फौजदारी मुकदमा 6 माह के भीतर निबट जाया करता था। जनसंख्या बढ़ी तो न्यायालय का विस्तार होता गया।
हाईकोर्ट बैंच झाला हाउस से कलेक्ट्रेट चौराहे के पास आ गई। इसी बिल्डिंग में हाईकोर्ट के पूर्व जज जवानसिंह राणावत एवं दुर्गाशंकर दवे ने प्रकरणों पर सुनवाई की। कोटा स्टेट के जमाने में जज लाला दयाकिशन, टोपा साहब एवं भगत साहब भी हाईकोर्ट में सुनवाई कर चुके हैं।
जयपुर राजस्थान की राजधानी बनने के बाद हाईकोर्ट की मुख्य पीठ उदयपुर से जोधपुर तथा कोटा से हाईकोर्ट बैंच जयपुर चली गई।
कोटा से जयपुर आने- जाने में लगभग एक हजार रुपए का खर्चा आता है। निजी साधनों से तो यह खर्चा कई गुना ज्यादा है। फिर हाईकोर्ट में सुनवाई नहीं हो पाने और तारीख मिल जाने से ये फेरे बढ़ जाते हैं।
हाईकोर्ट में स्थानीय पक्षकार की दरख्वास्त मंजूर हो पाना भी आसान नहीं होता। यानी, इंसाफ चाहने के लिए समय और रुपए का बार-बार खर्चा होता है, फिर भी समय पर न्याय मिल जाए और नतीजा पीडि़त पक्ष को राहत दे पाए, यह भी कम बोझिल नहीं होता।
इसकी मुख्य वजह एक ही है कि हमारे यहां हाईकोर्ट की बैंच नहीं है, जबकि प्रदेश में यह व्यवस्था केवल जयपुर- जोधपुर में ही है। इसके विपरीत क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान से छोटा होने के बावजूद मप्र में तीन शहरों में हाईकोर्ट है।
64 साल पहले स्टेट टाइम में राजस्थान हाईकोर्ट की बैंच के फैसले कोटा में ही होते थे, लेकिन 1950 में राजस्थान की राजधानी बनने के बाद कोटा से हाईकोर्ट बैंच जयपुर चली गई। संभाग से करीब 40 प्रतिशत केस हाईकोर्ट बैंच में जाते हैं।
यहां के वकीलों ने बैंच के लिए 2009 में 4 माह तक लंबा आंदोलन भी किया, लेकिन कोरे आश्वासन के बाद वकीलों को आंदोलन स्थगित करना पड़ा। आज भी वकीलों द्वारा हर शनिवार को हाईकोर्ट की बैंच कोटा में खोलने की मांग को लेकर हड़ताल की जाती है। इसके बावजूद सरकार व स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर कोई असर नहीं हो रहा है।
स्टेट के जमाने में राजस्थान हाईकोर्ट की बैंच, जिला जज, मुंसिफ सहित अन्य कोर्ट झाला हाउस में लगती थी। मुख्य पीठ उदयपुर में थी। उस समय एक फौजदारी मुकदमा 6 माह के भीतर निबट जाया करता था। जनसंख्या बढ़ी तो न्यायालय का विस्तार होता गया।
हाईकोर्ट बैंच झाला हाउस से कलेक्ट्रेट चौराहे के पास आ गई। इसी बिल्डिंग में हाईकोर्ट के पूर्व जज जवानसिंह राणावत एवं दुर्गाशंकर दवे ने प्रकरणों पर सुनवाई की। कोटा स्टेट के जमाने में जज लाला दयाकिशन, टोपा साहब एवं भगत साहब भी हाईकोर्ट में सुनवाई कर चुके हैं।
जयपुर राजस्थान की राजधानी बनने के बाद हाईकोर्ट की मुख्य पीठ उदयपुर से जोधपुर तथा कोटा से हाईकोर्ट बैंच जयपुर चली गई।
शहीदों के सम्मान के मौके पर नेताओं ने किया शर्मसार!
मुंबई। हमले के शहीदों-मृतकों को संसद समेत देशभर में सोमवार
को श्रद्धांजलि दी गई। लेकिन इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार
शिंदे, कृषि मंत्री शरद पवार, राज्यपाल के शंकरनारायणन और सीएम पृथ्वीराज
चव्हाण जूते उतारना भी मुनासिब नहीं समझे।
मुंबई अब भी असुरक्षित: कविता
श्रद्धांजलि कार्यक्रम में शहीद हेमंत करकरे की पत्नी कविता ने
कहा-आतंक के खिलाफ लड़ाई अभी शुरू ही हुई है। मुंबई अब भी असुरक्षित है।
26/11 के बाद भी पुणो और अन्य जगहों में बम विस्फोट हुए हैं। पुलिस को
अत्याधुनिक हथियार नहीं मिले हैं। बुलेट प्रूफ जैकेट घोटाले का मामला अभी
तक नहीं सुलझा है।’
मुंबई हमले में 166 लोग मारे गए थे। इनमें तत्कालीन एटीएस प्रमुख
हेमंत भी थे। हमले की चौथी बरसी से पांच दिन पहले मुख्य आरोपी कसाब को
फांसी दी गई थी। इससे शहीदों के परिजनों में खुशी तो दिखी लेकिन अपनों को
खोने का गम साफ नजर आया। कविता ने कहा, ‘मैं खुश हूं। लेकिन कसाब को फांसी
देने से मेरे पति या दिव्या के पिता तो वापस नहीं आएंगे।’
उन्होंने साथ ही कहा, ‘मुंबई अब भी असुरक्षित है। 26/11 के बाद भी
पुणो और अन्य जगहों में बम विस्फोट हुए हैं। पुलिस विभाग को अभी तक
अत्याधुनिक हथियार नहीं मिले हैं। बुलेट प्रूफ जैकेट घोटाले का मामला अभी
तक नहीं सुलझा है।’
पार्टी लॉन्च होते ही सामने आया टीम केजरीवाल का 'धोखा'!
नई दिल्ली. अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को अपनी राजनीतिक पार्टी 'आम आदमी पार्टी' की औपचारिक लांचिंग
कर दी। लेकिन इसी के साथ टीम अन्ना और फिर टीम केजरीवाल के सक्रिय सदस्य ,
कवि कुमार विश्वास का 'धोखा' भी सामने आ गया। कुछ महीने पहले पार्टी का
घोषणापत्र जारी किए जाने के मौके पर विश्वास ने कहा था कि यह मंच पर उनका
आखिरी दिन है। उन्होंने पार्टी से दूर रहने की बात कही थी। लेकिन वह न
केवल पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने, बल्कि पार्टी लांच
किए जाने के मौके पर उन्होंने मंच से भाषण भी दिया।
जंतर-मंतर पर जुटी भीड़ को संबोधित करते हुए केजरीवाल के सहयोगी मनीष सिसौदिया ने पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी बताया।
सिसौदिया ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 23 सदस्यों के नामों की घोषणा भी
की। इसमें मनीष सिसौदिया, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, दिनेश वाघेला, संजय
सिंह, गोपाल राय आदि शामिल हैं। (
दिनेशा वाघेला ने बताया, 'केजरीवाल पार्टी के राषट्रीय संयोजक होंगे,
पंकज गुप्ता राष्ट्रीय सचिव और कृष्ण कांत पार्टी का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष
होंगे।' पार्टी लांच करने से पहले अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों ने
राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि पर प्रार्थना भी की। उन्होंने बी आर
अंबेडकर को भी श्रद्धांजलि दी। केजरीवाल ने 26 नवंबर को पार्टी की लांचिंग
का दिन इसलिए चुना क्योंकि इसी दिन 1949 में भारत के संविधान को अपनाया गया
था।
केजरीवाल की पार्टी लॉन्च होने के साथ ही कई सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। क्या कांग्रेस और बीजेपी जैसी बड़ी पार्टियों के इतर केजरीवाल और
उनमें यकीन करने वाले लोग देश में कोई स्थायी तीसरा विकल्प दे पाएंगे?
क्या उनकी पार्टी राजनीति के मौजूदा मुहावरों को बदल पाएगी? क्या वे जनता
के बीच से, जनता के लिए और जनता के द्वारा की जाने वाली राजनीति का सपना
पूरा कर सकेंगे?
भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी और आईआईटी जैसे संस्थान के छात्र रहे अरविंद केजरीवाल पिछले डेढ़ सालों से लगातार सुर्खियों में हैं। सूचना के अधिकार को लेकर सक्रिय रहे केजरीवाल मैगसेसे पुरस्कार जीत चुके हैं। अरविंद केजरीवाल की
शख्सियत में ऐसी कई खास बातें हैं, जो उनमें कई लोगों को उम्मीद और आस्था
रखने के लिए आकर्षित करती हैं। लेकिन दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं
है जो उनमें कई खामियां भी देखते हैं। आलोचकों का मानना है कि उनकी कमियां
उनके उद्देश्य की राह में बड़ा रोड़ा हैं।
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