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26 नवंबर 2012

हाईकोर्ट बैंच जयपुर क्या गई 64 साल में भी नहीं मिला हक



 
कोटा. सुलभ और आसान तरीके न्याय दिलाने की बातें खूब होती रही हैं, लेकिन हाईकोर्ट की बैंच यहां नहीं होने से भी भी पक्षकारों को जयपुर के फेरे लगाने पड़ते हैं।

कोटा से जयपुर आने- जाने में लगभग एक हजार रुपए का खर्चा आता है। निजी साधनों से तो यह खर्चा कई गुना ज्यादा है। फिर हाईकोर्ट में सुनवाई नहीं हो पाने और तारीख मिल जाने से ये फेरे बढ़ जाते हैं।

हाईकोर्ट में स्थानीय पक्षकार की दरख्वास्त मंजूर हो पाना भी आसान नहीं होता। यानी, इंसाफ चाहने के लिए समय और रुपए का बार-बार खर्चा होता है, फिर भी समय पर न्याय मिल जाए और नतीजा पीडि़त पक्ष को राहत दे पाए, यह भी कम बोझिल नहीं होता।

इसकी मुख्य वजह एक ही है कि हमारे यहां हाईकोर्ट की बैंच नहीं है, जबकि प्रदेश में यह व्यवस्था केवल जयपुर- जोधपुर में ही है। इसके विपरीत क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान से छोटा होने के बावजूद मप्र में तीन शहरों में हाईकोर्ट है।
64 साल पहले स्टेट टाइम में राजस्थान हाईकोर्ट की बैंच के फैसले कोटा में ही होते थे, लेकिन 1950 में राजस्थान की राजधानी बनने के बाद कोटा से हाईकोर्ट बैंच जयपुर चली गई। संभाग से करीब 40 प्रतिशत केस हाईकोर्ट बैंच में जाते हैं।

यहां के वकीलों ने बैंच के लिए 2009 में 4 माह तक लंबा आंदोलन भी किया, लेकिन कोरे आश्वासन के बाद वकीलों को आंदोलन स्थगित करना पड़ा। आज भी वकीलों द्वारा हर शनिवार को हाईकोर्ट की बैंच कोटा में खोलने की मांग को लेकर हड़ताल की जाती है। इसके बावजूद सरकार व स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर कोई असर नहीं हो रहा है।

स्टेट के जमाने में राजस्थान हाईकोर्ट की बैंच, जिला जज, मुंसिफ सहित अन्य कोर्ट झाला हाउस में लगती थी। मुख्य पीठ उदयपुर में थी। उस समय एक फौजदारी मुकदमा 6 माह के भीतर निबट जाया करता था। जनसंख्या बढ़ी तो न्यायालय का विस्तार होता गया।

हाईकोर्ट बैंच झाला हाउस से कलेक्ट्रेट चौराहे के पास आ गई। इसी बिल्डिंग में हाईकोर्ट के पूर्व जज जवानसिंह राणावत एवं दुर्गाशंकर दवे ने प्रकरणों पर सुनवाई की। कोटा स्टेट के जमाने में जज लाला दयाकिशन, टोपा साहब एवं भगत साहब भी हाईकोर्ट में सुनवाई कर चुके हैं।

जयपुर राजस्थान की राजधानी बनने के बाद हाईकोर्ट की मुख्य पीठ उदयपुर से जोधपुर तथा कोटा से हाईकोर्ट बैंच जयपुर चली गई।

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