कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहते
हैं। इस दिन बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस बार यह
पर्व 26 नवंबर, सोमवार को है।
ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शंकर को सौंप देते हैं। इन चार मासों में सृष्टि का संचालन शिव ही करते हैं। चार मास सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शंकर सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंपते हैं। इस दिन पूजन व व्रत इस प्रकार करना चाहिए-
व्रत विधि
इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर दिनभर व्रत रखना चाहिए और रात में भगवान विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करना चाहिए, इसके बाद भगवान शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
रात समाप्ति के बाद दूसरे दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा पर शिवजी का पुन: पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता और भगवान विष्णु तथा शिव के ऐक्य का प्रतीक है।
ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शंकर को सौंप देते हैं। इन चार मासों में सृष्टि का संचालन शिव ही करते हैं। चार मास सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शंकर सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंपते हैं। इस दिन पूजन व व्रत इस प्रकार करना चाहिए-
व्रत विधि
इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर दिनभर व्रत रखना चाहिए और रात में भगवान विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करना चाहिए, इसके बाद भगवान शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
रात समाप्ति के बाद दूसरे दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा पर शिवजी का पुन: पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता और भगवान विष्णु तथा शिव के ऐक्य का प्रतीक है।
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