तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
07 मार्च 2012
फेस बुक से जुड़े आग के अंगारे
होली आई रे होली आई रे .......
दोस्तों आज की सुबह होली की हुडदंग में महिला दिवस के जोश को छुपा रहा था
बहुत चमत्कारी है ये मामूली बांसुरी, पढ़ें और जानें कितने कमाल की है
आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि बांसुरी कितने कमाल की है। वैसे तो कई तरह की बांसुरियां होती है जो अलग अलग असर दिखाती है लेकिन बांस से बनी बांसुरी और चांदी की बांसुरी विशेष असर दिखाने वाली और कमाल की होती है।
- चांदी की बांसुरी अगर आपके घर में होगी तो उस घर में पैसों से जूड़ी कोई परेशानी नहीं होगी।
- सोने की बांसुरी घर में रखने से उस घर में लक्ष्मी रहने लग जाती है और ऐसे घर में पैसा ही पैसा होता है।
- बाँस के पौधे से बनी होने के कारण लकड़ी की बांसुरी शीघ्र उन्नतिदायक प्रभाव देती है अत: जिन व्यक्तियों को जीवन में पर्याप्त सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही हो, अथवा शिक्षा, व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो, तो उसे अपने बैडरूम के दरवाजे पर दो बाँसुरियों को लगाना चाहिए।
- यदि घर में बहुत ही अधिक वास्तु दोष है, या दो से अधिक दरवाजे एक सीध में है, तो घर के मुख्यद्वार के ऊपर दो बांसुरी लगाने से लाभ मिलता है तथा वास्तु दोष धीरे धीरे समाप्त होने लगता है।
- घर का कोई सदस्य अगर बहुत दिनों से बीमार हों या अकाल मृत्यु का डर या अन्य कोई स्वास्थ्य से सम्बन्धित बड़ी समस्या हो, तो प्रत्येक कमरें के बाहर और बीमार व्यक्ति के सिरहाने पर बांसुरी का प्रयोग करना चाहिए इससे बहुत जल्दी असर होने लगेगा।
- चांदी या बांस से बनी बांसुरी के बारे में एक जबरदस्त कमाल की बात ये है कि जब ऐसी बांसुरी को हाथ में लेकर हिलाया जाता है, तो बुरी आत्माएं दूर हो जाती है और जब इसे बजाया जाता है, तो ऐसी मान्यता है कि घरों में शुभ चुम्बकीय प्रवाह का प्रवेश होता है।
पूजन में शहद का उपयोग क्यों किया जाता है?
शिव का अभिषेक हो या किसी और देवता की पूजा, पूजन सामग्री में शहद का उपयोग पंचामृत के एक हिस्से के रूप में किया जाता है। विशेषतौर पर भगवान शिव के अभिषेक में इसका उपयोग सबसे ज्यादा होता है। शहद में ऐसे कौन से गुण होते हैं जिनके कारण यह इतना खास माना गया है?
वास्तव में शहद को उसके गुणों के कारण ही पूजा में उपयोग किया जाता है। शहद तरह होकर भी पानी में नहीं घुलता है। जैसे संसार में रहकर भी अलग रहने के भाव का प्रतीक है। यह घी या तेल की तरह पानी में बिखरता भी नहीं है। यह पंच तत्वों में आकाश तत्व का प्रतीक भी माना गया है। शहद में कई औषधीय गुण भी होते हैं। इसे आयुर्वेद में भी स्थान दिया गया है। शहद ऐसा पदार्थ होता है जिसे पेट और शारीरिक कमजोरी संबंधी सभी बीमारियों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी तासिर ठंडी होती है।
एकदार्शनिक कारण यह भी है कि शहद ही ऐसा तत्व है जो जिसके लिए इंसान को प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ता है, इसे कृत्रिम रूप से नहीं बनाया जा सकता। मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया गया एकदम शुद्ध पदार्थ होता है। जिसके निर्माण में कोई मिलावट नहीं हो सकती। शहद को भगवान को इसी भाव से चढ़ाया जाता है कि हमारे जीवन में भी शहद की तरह ही पवित्र और पुण्य कर्म हों। चरित्र और व्यवहार में शहद जैसा ही गुण हो, जो संसार में रहकर भी उसमें घुले मिले नहीं, उसमें रहे भी और उससे अलग भी हो।
एक श्राप में छुपा सबसे बड़ा 'रहस्य', इसलिए है ब्रह्मा का दुनिया में एक मंदिर
अजमेर/जयपुर.राजस्थान के पुष्कर में बना भगवान ब्रह्मा का मंदिर अपनी एक अनोखी विशेषता की वजह से न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है, यह ब्रह्मा जी एकमात्र मंदिर है। भगवान ब्रह्मा को हिन्दू धर्म में संसार का रचनाकार माना जाता है।
क्या है इतिहास इस मंदिर का
ऐतिहासिक तौर पर यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था, लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर लगभग 2000 वर्ष प्राचीन है।संगमरमर और पत्थर से बना यह मंदिर पुष्कर झील के पास स्थित है जिसका शिखर लाल रंग से रंग हुआ है। इस मंदिर के केंद्र में भगवान ब्रह्मा के साथ उनकी दूसरी पत्नी गायत्री कि प्रतिमा भी स्थापित है। इस मंदिर का यहाँ की स्थानीय गुर्जर समुदाय से विशेष लगाव है। मंदिर की देख-रेख में लगे पुरोहित वर्ग भी इसी समुदाय के लोग हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी गायत्री भी गुर्जर समुदाय से थीं।
कैसे नाम पड़ा 'पुष्कर'
हिन्दू धर्मग्रन्थ पद्म पुराण के मुताबिक धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। ब्रह्मा जी ने जब उसका वध किया तो उनके हाथों से तीन जगहों पर पुष्प गिरा, इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बनी। इसी घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ा। इस घटना के बाद ब्रह्मा ने यज्ञ करने का फैसला किया। पूर्णाहुति के लिए उनके साथ उनकी पत्नी सरस्वती का साथ होना जरुरी था लेकिन उनके न मिलने की वजह से उन्होंने गुर्जर समुदाय की एक कन्या 'गायत्री' से विवाह कर इस यज्ञ को पूर्ण किया, लेकिन उसी दौरान देवी सरस्वती वहां पहुंची और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं।
उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी, हालाँकि बाद में इस श्राप के असर को कम करने के लिए उन्होंने यह वरदान दिया कि एक मात्र पुष्कर में उनकी उपासना संभव होगी। चूंकि विष्णु ने भी इस काम में ब्रह्मा जी की मदद की थी इसलिए देवी सरस्वती ने उन्हें यह श्राप दिया कि उन्हें अपनी पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। इसी कारण उन्हें मानवरूप में राम का जन्म लेना पड़ा और 14 साल के वनबास के दौरान उन्हें पत्नी से अलग रहना पड़ा था।
चेतावनीः सूर्यास्त के बाद न जाना वहां, वरना मौत पक्की...!
गौर करने वाली बात है जहाँ पुरात्तव विभाग ने हर संरक्षित क्षेत्र में अपने ऑफिस बनवाये है वहीँ इस किले के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग ने अपना ऑफिस भानगढ़ से किमी दूर बनाया है। जयपुर और अलबर के बीच स्थित राजस्थान के भानगढ़ के इस किले के बारे में वहां के स्थानीय लोग कहते हैं कि रात्रि के समय इस किले से तरह तरह की भयानक आवाजें आती हैं और साथ ही यह भी कहते हैं कि इस किले के अन्दर जो भी गया वह आज तक वापस नहीं आया है,लेकिन इसका राज क्या है आज तक कोई नहीं जान पाया।
मिथकों के अनुसार भानगढ़ एक गुरु बालू नाथ द्वारा एक शापित स्थान है जिन्होंने इसके मूल निर्माण की मंज़ूरी दी थी लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी दी थी कि महल की ऊंचाई इतनी रखी जाये कि उसकी छाया उनके ध्यान स्थान से आगे ना निकले अन्यथा पूरा नगर ध्वस्त हो जायेगा लेकिन राजवंश के राजा अजब सिंह ने गुरु बालू नाथ की इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और उस महल की ऊंचाई बढ़ा दी जिससे की महल की छाया ने गुरु बालू नाथ के ध्यान स्थान को ढंक लिया और तभी से यह महल शापित हो गया।
एक अन्य कहानी के अनुसार राजकुमारी रत्नावती जिसकी खूबसूरती का राजस्थान में कोई सानी नहीं था।जब वह विवाह योग्य हो गई तो उसे जगह जगह से रिश्ते की बात आने लगी। एक दिन एक तांत्रिक की नज़र उस पर पड़ी तो वह उस पर कला जादू करने की योजना बना बैठा और राजकुमारी के बारे में जासूसी करने लगा।
एक दिन उसने देखा कि राजकुमारी का नौकर राजकुमारी के लिए इत्र खरीद रहा है,तांत्रिक ने अपने काले जादू का मंत्र उस इत्र की बोतल में दाल दिया,लेकिन एक विश्वशनीय व्यक्ति ने राजकुमारी को इस राज के बारे में बता दिया। राजकुमारी ने वह इत्र की बोतल को चट्टान पर रखा और तांत्रिक को मारने के लिए एक पत्थर लुढ़का दिया,लेकिन मरने से पहले वह समूचे भानगढ़ को श्राप दे गया जिससे कि राजकुमारी सहित सारे भानगढ़ बासियों की म्रत्यु हो गई। इस तरह की और और भी कई कहानियां हैं जो भानगढ़ के रहस्य पर प्रकाश डालती हैं लेकिन हकीकत क्या है वह आज भी एक रहस्य है।
15 के बाद हो सकती है राज्यसभा चुनाव प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा!
सूत्रों के अनुसार दोनों नेताओं की यह मुलाकात सिविल लाइंस स्थित वसुंधरा राजे के निवास परहुई। करीब दो घंटे की इस मुलाकात के दौरान दोनों ने प्रदेश में संगठनात्मक परिस्थितियों, सरकार की विफलताओं पर चर्चा की।इन चुनाव में भाजपा के खाते में एक ही सीट आने की संभावना है।
इस एक सीट के लिए सांसद रामदास अग्रवाल, ओंकारसिंह लखावत, प्रदेशाध्क्ष अरुण चतर्वेदी, ललित किशोर चतुर्वेदी, सांसद जसवंतसिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह,पूर्व प्रदेशाध्यक्ष महेश शर्मा, दिल्ली से नजमा हेपतुल्ला समेत सहित कई लोग टिकट के दावेदार हैं। विपक्ष की नेता के नाते पूरा पावर गेम वसुंधराराजे के हाथ में है।
माना जा रहा है कि अभी दिल्ली में पार्टी के वरिष्ठ नेता कुछ दिन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के विश्लेषण में व्यस्त रहेंगे। संभवतः 15 मार्च के बाद ही राज्यसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के नामों पर चर्चा होगी।
रालेगण से लाइव: धोती दागदार हुई तो अनशन पर बैठ गए अन्ना
रालेगण-सिद्धि के मंदिर परिसर के अन्ना जी के कक्ष में उनकी टीम के सदस्य पहुंचे, तो वे विश्राम कर रहे थे। अतिथियों को देखा तो उठकर बैठ गए। केजरीवाल ने कहा, अन्ना, तबीयत तो ठीक है न? आप लेटे हुए थे। अन्ना बोले, ठीक है, लेकिन यूपी जाने लायक नहीं है। रिजल्ट यहीं बैठकर देखेंगे-सुनेंगे। खेत की ओर घूमकर आने के बाद थक गया था, इसीलिए लेटा था। कुमार विश्वास ने कहा, वह तो ठीक है अन्ना, लेकिन होली के दिन आप ऐसी उजली धोती और कुरते में कैसे हैं।
अन्ना ने पहले तो नारा लगाया, ‘भारत मात की जै! फिर बोले, अपने लोगों का वस्त्र तो साफ-सुथरा ही रहने का। दाग और दागी चाहिए, तो दिल्ली चले जाओ। कहीं से फ्लाइट पकड़ लो। कुमार विश्वास ने कहा- कल शाम को दिल्ली में ही था। होली की पूर्व संध्या पर आयोजित कवि सम्मेलन में भाग लेने गया था। क्या सुनाया वहां? हम लोगों को भी सुना दो, होली का आनंद आ जाएगा। अन्ना ने आग्रह किया।
पूरी कविता तो याद नहीं है, डायरी भी साथ नहीं है। कुछ पंक्तियां सुनाता हूं :
एक बार ही एक बरस में होली का हुड़दंग मचे
एक बार ही एक बरस में दीपों की होलिका सजे
दिन को होली, रात दीवाली, रोज मनाते हैं नेता
धवल वस्त्र तन पर राजे, पर मन में मुजरा रोज बजे ये दागी हैं। ये रागी हैं, ये बागी हैं, नेता हैं ये बहार में, ये बिहार में, ये तिहाड़ में, नेता हैं पांच बरस में एक बार ही दर्शन देने आते हैं वादों का अंबार लगाते, फिर बिसराते, नेता हैं एक टर्म भी जीत गए तो जीवन भर इतराते हैं नीली-पीली फिल्म देखने, फिर भी न शरमाते हैं शिलाजीत-सेवन से यौवन, स्वर्ग-गमन तक बना रहे
सुप्रीमो की चरण-वंदना, भजन उन्हीं के गाते हैं।
कुमार विश्वास सांस लेने को रुके। अन्ना खुश हो गए, भारत माता की जै! कविता तो ठीक है, मगर केजरीवाल से पूछ लीजिए कि संसद ने विशेषाधिकार-हनन की नोटिस थमा दी तो क्या करोगे। अन्ना हंसे, वंदे मातरम्।
केजरीवाल ने कहा, मैंने तो सरकारी आंकड़े बता दिए हैं। डरिएगा मत विश्वास जी। मैंने तो सोचा था कि इस होली में दिल्ली में रहूं। वहां दिग्विजयी राजा, उनके वेणिग्रंथित सखा, राजा के उत्तराधिकारी आदि के साथ होली खेलूं, फिर उत्तर प्रदेश जाकर मुलायम-कठोर भाई-बहनों को होली का प्रणाम कहूं।
लेकिन इनके तन-बदन पर भ्रष्टाचार के इतने रंग पहले से ही लगे हैं, इसलिए आइडिया ड्रॉप कर दिया। सोच रहा हूं, दोपहर की फ्लाइट से दिल्ली जाकर बेईमानों से घिरे ईमानदार- दुर्बल वृद्ध के चरणों पर अबीर रखकर कहूं कि अगर सचमुच देश की फिक्र है, तो कुछ कीजिए सर! जबानी जमा खर्च से कुछ नहीं होने वाला
विश्वास बोले, आइडिया बढ़िया है। मुझको तो मुंबई के एक कवि-सम्मेलन में आज रात शामिल होना है, अन्यथा मैं भी चलता।
अन्ना के चरणों पर विश्वास और केजरीवाल ने अबीर रखकर प्रणाम किया और बोले, अन्ना हमें आशीर्वाद और बल दीजिए कि भ्रष्टाचार मिटाने में हम सफल हों। होली शुभ हो अन्ना।
अन्ना प्रसन्न हुए, माता की जै। आप अवश्य सफल होंगे। इन लोगोंका नाम ही जबान पर न लाएं। इससे जिह्वा ही नहीं, आत्मा भी कलुषित होती है।
तो हम लोग चले अन्ना, आप आराम कीजिए। अन्ना केजरीवाल उठने ही को थे कि उत्तर भारतीय जैसे दिखने वाले लोगों का एक हुजूम हवा के झोंके की तरह आया और रंग-बिरंगी बाल्टी अन्ना पर उझल दी
अन्ना के वस्त्र भी दागदार हो गए। होली है, कहते हुए वह टोली भागी नहीं, दरवाजे पर बैठकर ढोल-मजीरे पर फाग गाने लगी
होली खेलैं रघुवीरा, अवध में होली खेलैं रघुवीरा। केकरा हाथ कनक-पिचकारी, केकरा हाथे अबीरा! केकरा हाथे अबीरा, अवध में होली खेलैं रघुवीरा। अन्ना बोले, सीबीआई होली खेलने की तैयारी कर रही है और ये यहां हम लोगों पर रंग डालकर दागदार बनाने आए हैं। इनकी साजिश के खिलाफ मैं यहीं आमरण अनशन पर बैठ रहा हूं। अन्ना जमीन पर पलथी लगाकर बैठ गए, भारत माता की जै।
विश्वास और केजरीवाल गिड़िगिड़ाए, ऐसा मत कीजिए अन्ना, आपका स्वास्थ्य इसकी इजाजत नहीं देता। किसी तरह से आप थोड़े-बहुत ठीक होकर लौटे हैं। अन्ना ने कहा, आप लोगों की बात मानकर फिलहाल अनशन त्याग देता हूं। आप लोग रुकिए, संतरे का जूस मंगाता हूं। आप लोग भी पीकर जाएं और मुझको भी अपने हाथों जूस पिला दें, ताकि विधिवत अनशन समाप्त कर सकूं। वंदे मातरम्!
बारात का अयोध्या लौटना और अयोध्या में आनंद
रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥4॥
अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत॥343॥
झाँझि बिरव डिंडिमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥1॥
निज निज सुंदर सदन सँवारे। हाट बाट चौहटपुर द्वारे॥2॥
बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना॥3॥
लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी॥4॥
सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि॥344॥
मंगल सगुन मनोहरताई। रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई॥1॥
देखन हेतु राम बैदेही। कहहु लालसा होहि न केही॥2॥
सकल सुमंगल सजें आरती। गावहिं जनु बहु बेष भारती॥3॥
कौसल्यादि राम महतारीं। प्रेमबिबस तन दसा बिसारीं॥4॥
प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि॥345॥
राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं॥1॥
हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मंगल मूला॥2॥
छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए॥3॥
रचीं आरतीं बहतु बिधाना। मुदित करहिं कल मंगल गाना॥4॥
चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात॥346॥
सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं॥1॥
प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि॥2॥
सुर सुगंध सुचि बरषहिं बारी। सुखी सकल ससि पुर नर नारी॥3॥
सुमिरि संभु गिरिजा गनराजा। मुदित महीपति सहित समाजा॥4॥
बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ॥347॥
जय धुनि बिमल बेद बर बानी। दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी॥1॥
बने बराती बरनि न जाहीं। महा मुदित मन सुख न समाहीं॥2॥
करहिं निछावरि मनिगन चीरा। बारि बिलोचन पुलक सरीरा॥3॥
सिबिका सुभग ओहार उघारी। देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी॥4॥
मुदित मातु परिछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार॥348॥
भूषन मनि पट नाना जाती। करहिं निछावरि अगनित भाँती॥1॥
पुनि पुनि सीय राम छबि देखी। मुदित सफल जग जीवन लेखी॥2॥
बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा। नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा॥3॥
देत न बनहिं निपट लघु लागीं। एकटक रहीं रूप अनुरागीं॥4॥
बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत॥349॥
तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे। सादर पाय पुनीत पखारे॥1॥
बारहिं बार आरती करहीं। ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं॥2॥
पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृतु लहेउ जनु संतत रोगीं॥3॥
मूक बदन जनु सारद छाई। मानहुँ समर सूर जय पाई॥4॥
भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु॥350 क॥
मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसुकाहिं॥350 ख॥
सबहि बंदि माँगहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥1॥
भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे॥2॥
पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥3॥
सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना॥4॥
तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ॥351॥
भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी॥1॥
आदर दान प्रेम परिपोषे। देत असीस चले मन तोषे॥2॥
कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी। रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी॥3॥
पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी॥4॥
पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु॥352॥
नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा। आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा॥1॥
बिप्रबधू सब भूप बोलाईं। चैल चारु भूषन पहिराईं॥1॥
नेगी नेग जोग जब लेहीं। रुचि अनुरूप भूपमनि देहीं॥3॥
देव देखि रघुबीर बिबाहू। बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू॥4॥
कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ॥353॥
जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे। सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे॥1॥
बधू सप्रेम गोद बैठारीं। बार बार हियँ हरषि दुलारीं॥2॥
कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू। सुनि सुनि हरषु होत सब काहू॥3॥
बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी। रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी॥4॥
भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति॥।354॥
अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्रग सुगंध भूषित छबि छाए॥1॥
प्रेम प्रमोदु बिनोदु बड़ाई। समउ समाजु मनोहरताई॥2॥
सो मैं कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी॥3॥
बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई॥4॥
अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ॥355॥
सुभग सुरभि पय फेन समाना। कोमल कलित सुपेतीं नाना॥1॥
रतनदीप सुठि चारु चँदोवा। कहत न बनइ जान जेहिं जोवा॥2॥
अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही। निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही॥3॥
मारग जात भयावनि भारी। केहि बिधि तात ताड़का मारी॥4॥
मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु॥356॥
मख रखवारी करि दुहुँ भाईं। गुरु प्रसाद सब बिद्या पाईं॥1॥
कमठ पीठि पबि कूट कठोरा। नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा॥2॥
सकल अमानुष करम तुम्हारे। केवल कौसिक कृपाँ सुधारे॥3॥
जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें॥4॥
सुमिरि संभु गुरु बिप्र पद किए नीदबस नैन॥357॥
घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं॥1॥
सुंदर बधुन्ह सासु लै सोईं। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोईं॥2॥
बंदि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए॥3॥
जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति संग द्वार पगु धारे॥4॥
प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ॥358॥
नवाह्नपारायण, तीसरा विश्राम
देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी॥1॥
सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे॥2॥
मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ठ बिपुल बिधि बरनी॥3॥
सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू॥4॥
उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति॥359॥
नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं॥1॥
दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह महामुनिराऊ॥2॥
नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी॥3॥
अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न बानी॥4॥
रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे पहुँचाई॥5॥