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25 दिसंबर 2012

दिल्ली पुलिस पीडिता के मामले को गंभीरता से ले चार्जशीट के पहले साड़ी खामिया दूर कर ले वरना बदनाम हो जायेगी

दोस्तों दिल्ली लाठीचार्ज का एक हास्यास्पद सा जवाब भीड़ पर आतंकवादी हमले का खतरा था इसलियें लाठीचार्ज करना पढ़ा .....एक  निर्दोष पुलिसकर्मी जिसकी संदिग्ध मोत  चश्मदीद कहता है के वोह भागते भागते गुरे इर साँसे थम गयी पोस्ट मार्टम हुआ या नहीं लेकिन हत्या का मुकदमा जरूर दर्ज किया गया है अगर भीड़ ने हिंसा फेलाई है तो मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी जरूरी है लेकिन इस भीड़ को उकसाया किसने आतंकवादी हमले की खबर अगर थी तो पहले भीड़ को क्यूँ नहीं  रोक हर बार दिल्ली पुलिस की लाठीचार्ज के पीछे आतंकवादी हमले की दासता होती है पहले रामदेव बाबा जी के आन्दॉन में लाठीचार्ज जवाब आतंकवादी हमले का खतरा बताया गया ..दिल्ली पुलिस भी  खूब है आम दिनों में आतंकवादी खतरा नहीं होता एना के आन्दोलन में आतंकवादी खतरा नहीं होता बस भीड़ एकत्रित होती है और आतंकवादी हमले का खतरा शुरू हो जाता है .....इधर दिल्ली में पुलिस ने जिस त्वरितता और सुझबुझ से अपराधियों को गिरफ्तार किया वोह काबिले तारीफ़ है ..एक अज्ञात बस में बलात्कर की रिपोर्ट पर दिल्ली पुलिस ने सी सी टीवी कमरे और दूसरी जानकारियों के आधार पर बस की पहचान की और फिर दोषी लोगों  को गिरफ्तार कर लिया यह दिल्ली पुलिस के लियें गोरव की बात है इसके लियें जो अधिकारी इस अनुसन्धान में शामिल रहे है उन्हें पुरस्कर्त भी करना चाहिए ..अब विवाद खड़ा हुआ है पीडिता के ब्यान पर पहले तो मिडिया ने भारतीय संस्क्रती और दंडात्मक कानून के उलंग्घन में पीडिता की पहचान उजागर कर दी लेकिन पुलिस ने ऐसे लोगों के खिलाफ 228 सी आर पी सी में मुकदमा दर्ज नहीं किया दुसरे पीडिता के मजिस्ट्रेट के समक्ष बयानों को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है उसका फायदा अभियुक्तों को मिलेगा ....न्यायिक मजिस्ट्रेट को जो  बयान लेना चाहिए थे वोह बयान कार्यपालक मजिस्ट्रेट से लिवाये  गए और अब जब बयानों में खामिया उजागर हुईं तो फिर दुबारा उसी पीडिता के बयान हो रहे है सार देश जानता है के दोहरे बयानों से अनुसन्धान शंकित होता है और इसका फायदा अभियुक्त को मिलता है इस मामले में भी अगर मिद्या ट्रायल नहीं होती फेसला जज्बात के स्थान पर पेपर जस्टिस होता तो शायद अभियुक्तों को इस दोहरे बयानों का फायदा मिलता अभी चार्जशीट पेश नहीं हुई है अभी भी वक्त है के जो कमिया अनुसन्धान में है उसे पूरी की जाएँ ..मेडिकल एफ एस एल ...चश्मदीद गवाह ..परिस्थितिजन्य साक्ष्य जो भी हो वोह सब पेश किये जाए और पीडिता जब तक पूरी तरह स्वस्थ न हो जाए चार्जशीट नहीं पेश की जाए क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट आधी अधूरी अगर रही तो फिर इसका लाभ अभियुक्त को मिल सकता है .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
 

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