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15 दिसंबर 2012

'मैं कांग्रेस का सिपाही हूं, लेकिन गहलोत को अपना कमांडर नहीं मानता'



 

जयपुर.कांग्रेस विधायक और असंतुष्ट खेमे के प्रमुख नेता कर्नल सोनाराम ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस को निजी संगठन में बदल लिया। सोनाराम ने कहा : मैं कांग्रेस का सिपाही हूं, लेकिन गहलोत को अपना कमांडर नहीं मानता। 
 
उन्होंने प्रदेश में जाट मुख्यमंत्री नहीं बनने के लिए प्रमुख जाट नेताओं को भी जिम्मेदार बताया। एक बार जब जाट मुख्यमंत्री बनने का मौका आया तो हमारे एक प्रमुख जाट नेता हरिदेव जोशी के समर्थन में चले गए। उन्होंने साफगोई से माना कि वे कोशिशें करके भी गहलोत को कांग्रेस में कमजोर नहीं कर पाए। उनसे बेबाक बातचीत :
 
सरकार ने 4 साल पूरे कर लिए। आपका का क्या कहना है?
 
>अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास एक साल का समय रह गया है। वे गलतियों को सुधार सकते हैं। जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं का मन जीतें। मतभेद खत्म करें। 
 
आप सरकार को कितने नंबर देते हैं?  
 
>यह मेरी सरकार है। इसलिए नंबर देना तो ठीक नहीं ..लेकिन उम्मीद है अशोक गहलोत अच्छी मेहनत करेंगे, टीम में बदलाव लाएंगे और कामकाज की शैली सुधारेंगे तो पास हो जाएंगे ..मंत्रिमंडल में कुछ को छोड़कर ज्यादातर के पास काम ही नहीं है।
 
क्या सरकार ने कुछ अच्छा काम किया है?  
 
>योजनाएं अच्छी बनाई हैं। सोशल सेक्टर में बहुत अच्छा काम किया है। फ्री मेडिसिन वाली योजना अच्छी है, लेकिन ग्राउंड पर इन योजनाओं की कोई मॉनिटरिंग नहीं है। 
 
कांग्रेस संगठन की हालत क्या है?  
 
>जो मंत्रिमंडल की है वैसी ही संगठन की। चंद्रभान ईमानदार हैं। सच बोल दिया कि चुनाव में सीटें कम आएंगी तो पीछे पड़ गए। उनको हटाया तो ठीक नहीं होगा। जाट पहले ही नाराज हैं ..ये अशोक गहलोत जो सोशल इंजीनियरिंग कर रहे हैं, वे जाट वर्सेज अदर कास्ट की कर रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि जाट भी जाएं और अदर भी हाथ नहीं आएं! ..पिछली बार सोशल इंजीनियरिंग की तो हम 156 से 56 पर आ गए थे। 
 
आपके विरोध की वजह?
 
>मुझे 2004 में दो लाख से ज्यादा वोटों से हरवा दिया था ..गहलोत जब सीएम थे तो उन्होंने जाटों और मुसलमानों के समीकरण को बिगाड़ दिया। 98 में गहलोत और मैं एक साथ एमपी बने थे। मैं पहले से उनके साथ था। 97 में पीसीसी के चुनाव हुए तो मैं और अब्दुल हादी गहलोत के साथ थे। हम परसराम मदेरणा के साथ नहीं थे। वजह यह भी कि मदेरणा और नाथूराम मिर्धा की बनती नहीं थी। 
 
गहलोत सीएम बने तो ढाई साल तक उनके साथ रहे ..इनका काम करने का तरीका मुझे पसंद नहीं है। कुछ को छोड़कर मंत्रियों के पास काम नहीं है। पीसीसी इनकी है। राजनीतिक नियुक्तियों में इनके आदमी बनाए गए हैं। पीसीसी में सारे इनके लोग भरे गए हैं। आज राजस्थान में कांग्रेस आई को कांग्रेस ए यानी कांग्रेस अशोक गहलोत ही बना दिया है। 
 
 
विधायक लोग हाईकमान से शिकायत करने तो गए थे? 
 
>हां, हम गए थे। हम कोई पिकनिक मनाने तो गए नहीं थे। शिकायत करने ही गए थे। गए तो थे 27 एमएलए, लेकिन मिले मैं, आंजना, सीएल प्रेमी, दौलतराज और गंगासहाय। हम सोनिया, राहुल, अहमद पटेल आदि सबसे मिले। सब कुछ बताकर आए थे। 
 
मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने आपको भेजा था!  
 
>हम किसी की कठपुतली हैं क्या, जो कहने से जाएंगे! हम अपने हिसाब से गए थे। हम किसी के पिट्ठू नहीं हैं। सीएम के यह कहने से उनका अहंकार झलकता है। 
 
आपके और गहलोत के रिश्ते में दरार क्यों आई?  
 
>मुझे इनकी कार्यशैली पसंद नहीं आई। वे ऑटोक्रेटिक हैं। सेल्फ सेंटर्ड हैं। अपनी टीम अलग रखते हैं। मेरा उनसे कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है। मैंने कहा था कि आप चीजें खराब कर रहे हो। नतीजा यह निकला कि हम पांच साल सत्ता से बाहर  हो गए। सिर्फ चार महीने बाद चुनाव हुए तो हमारे सिर्फ चार एमपी जीते.. इन्होंने पूरी जाट लीडरशिप को साइडलाइन कर दिया। 
 
और क्या नाराजगी है आपकी?  
 
>मैंने जिम्मेदारी मांगी, मुझे नहीं दी। लोकसभा का टिकट मांगा तो नहीं दिया। रघुवीर मीणा को दिया तो मुझे भी दे सकते थे। मैं चौथी बार सांसद होता और आज केंद्र में मेरे पास कोई जिम्मेदारी होती। मुझे जिम्मेदारी कहां मिली है! 
 
नेता के तौर पर गहलोत की ताकत और कमजोरी क्या है?
 
>वे अपने आसपास मजबूत आदमी को नहीं चाहते। उनके ऑफिसर देख लो। पीसीसी देख लो। मंत्रिमंडल देख लो। पर्सनल टीम देख लो। वे मजबूत कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हैं। लेकिन यह मानना होगा कि वे बहुत हार्डवर्कर हैं। स्कीमें बहुत अच्छी लाते हैं, लेकिन ग्राउंड पर नहीं उतार पाते। उनका पॉलिटिकल मैनेजमेंट स्ट्रांग है, लेकिन ब्यूरोक्रेसी पर उनकी पकड़ नहीं है। उन्होंने जाट अफसरों को अच्छी पोस्टिंग नहीं दी है। वे तो मजबूत जाटों को छोड़कर ..कैसे-कैसे लोग न जाने कहां से खोजकर ले आते हैं। 
 
मुख्यमंत्री का चयन जाति के आधार पर होना चाहिए? 
 
>एक जाट से न तो कांग्रेस हारती और न जीतती, लेकिन यह एक बड़ी जाति है। मुख्यमंत्री बनाना किसी एक जाति के बस में नहीं, लेकिन राजनीति का गणित देखो तो हर बार लगभग आठ जाट एमपी और 35 से ज्यादा एमएलए इस जाति से हैं। प्रदेश में राजपूत सीएम बन चुका, ब्राह्मण बन चुका, मुस्लिम, माथुर और माली बन चुका तो जाट कब बनेगा? लोगों में भावना है कि जाट सीएम बने! मैंने यह भावना जब से व्यक्त की है, वे तो मेरे पीछे ही पड़ गए। 
 
किसी जाट विधायक का नाम बताएं जो सीएम पद का दावेदार बन सके?
जब मौका आएगा तो यह नाम भी सामने आ जाएगा ..इतिहास में कई चीजें होती हैं ..एक बार जब रामनिवास मिर्धा का मुख्यमंत्री बनना तय हो गया था तो हमारे एक बड़े नेता ..एक दूसरी जाति के नेता के समर्थन में चले गए थे और वे मुख्यमंत्री बन गए ..अब क्या कहें ..बहुत सी बातें कहने और सुनने की तो हैं, लेकिन छापने की नहीं! 
 
..तीनों मिले हुए हैं। इनकी लॉबिंग मजबूत है। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन तोड़ नहीं पाया। कांग्रेस में देर है, अंधेर नहीं।
 
 
प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक को लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
 
वे नौ साल से हैं। इतने लंबे समय तक काम कर लेने के बाद इनसान की कुछ लाइकिंग-डिस्लाइकिंग हो जाती है। बदलाव हमेशा अच्छा रहता है!.

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