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24 नवंबर 2012

ये न वोट देते हैं न टैक्स, इनका अपना ही ‘राष्ट्रपति’




गुजरात के डांग और पंचमहाल जिले के 22 गांवों में चुनाव प्रचार नहीं हो रहा है। पार्टियों को पता है कि यहां के लोगों ने कभी किसी को वोट दिया ही नहीं। ऐसा इसलिए नहीं कि वे देश या राज्य की सरकार से नाराज हैं। बल्कि उनके लिए  उनका मुखिया ही राष्ट्रपति है। वे न तो सरकार से कोई सुविधा मांगते हैं और न ही टैक्स देते हैं। इन गांवों से ओपी सोनी की रिपोर्ट..
 
 
 
गुजरात में सूरत से 125 किलोमीटर दूर गांवों में आदिवासी सतिपति संप्रदाय के लोग रहते हैं। गांव के मुखिया हैं कुंवर रवींद्र सिंह। 55 साल के सिंह ही इस इलाके की सरकार हैं। उनकी अपनी मुहर है। जिस कागज पर लग जाए, वह सरकारी दस्तावेज हो जाता है। 
 
रवींद्र सिंह कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने यहां राज किया है। गांव वाले अब भी उसी राज को मानते हैं। हमने इसी को ध्यान में रखकर यहां कायदे बना लिए हैं। जिसमें लोगों की जरूरत पूरी हो जाती है। और फिर किसी बाहरी व्यवस्था की जरूरत नहीं पड़ती। गांव वालों का भी कहना है कि यहां हमारे मुखिया निर्णय ही आखिरी है। 
 
समाजशास्त्री डॉ. किरण देसाई कहते हैं पूरा मामला लोगों की मान्यता से जुड़ा हुआ है। इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई इसलिए नहीं हो पाती, क्योंकि ये किसी भी अपराध में लिप्त नहीं हैं। 
 
सरकारी सुविधाओं और टैक्स के सवाल पर सिंह ने कहा कि सरकार चाहे तो हमारे इलाके में दी गई सुविधाएं हटा ले। क्योंकि उसका न तो लोगों को फायदा है और न ही वे उस पर आश्रित हैं। सरकार ने कुछ पानी की टंकियां बनवाई थीं जो अब बेकार हो गई हैं। सामुदायिक केंद्र है और इसी में अस्पताल। लेकिन डॉक्टर कभी-कभार ही दिखता है। सरकारी स्कूल में भी ताला ही रहता है। क्योंकि लोगों की पढ़ाई में रुचि नहीं है। वे खेती में ही खुश हैं। इसलिए वे न किसी को वोट देना चाहते हैं और न ही टैक्स।
 
चुनाव समुदाय में रहकर नहीं
 
किसी को अगर समुदाय से बाहर जाना है तो वह जा सकता है। उसे रोकने के लिए दबाव नहीं बनाते। रवींद्र सिंह का भतीजा राजेंद्र सिंह कटाचवाण गांव से भाजपा के टिकट पर सरपंच रह चुका है। लेकिन इसके लिए उसे समाज से बाहर होना पड़ा।
 
द. गुजरात से मप्र सीमा तक 
 
डांग से पंचमहाल जिले के धर्मपुर, वासंदा, कपराडा, पाहवा, सेलवास, दिव, दमण, वापी, उछल्ल, निग्र, बालोड़, ब्यारा, मांडवी, बाडौली, कामरेग, फलसाणा, राजपीपला, छोटा उदेपुर, वारदा, धुलदा, सति और सोनगिर में रहने वाले इसी व्यवस्था को मानते हैं।
 
सरकारी सुविधा नामंजूर
 
सरकार ने यह स्कूल बनवाया, हैंडपंप लगवाया लेकिन गांव वाले इसका उपयोग नहीं करते। कहते हैं कि न कोई सुविधा लेंगे, न टैक्स देंगे।

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