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14 नवंबर 2012

क्या आप जानते हैं दीपावली पर क्यों खाते हैं खील-बताशे?



 

दीपावली पर मां लक्ष्मी को तरह-तरह के पकवान तो भोग में रखे जाते हैं लेकिन खील-पताशे (धानी और बताशे) भी चढ़ाए जाते हैं। इसे ही लक्ष्मी का प्रमुख प्रसाद माना जाता है और सभी दीपावली पर खील-बताशे जरूर खाते हैं। आखिर सारे गरिष्ठ और तरह-तरह के पकवानों के बीच सूखी सी खील और पताशे देवी लक्ष्मी को क्यों चढ़ाते हैं? क्या खील-पताशों का कोई महत्व होता है? क्या इसका स्वास्थ्य से भी कोई संबंध है?
दीपावली धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति का त्योहार है। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन कर जीवनभर धन-संपत्ति की कामना की जाती है। खील-पताशे का प्रसाद किसी एक कारण से नहीं बल्कि उसके कई महत्व है, व्यवहारिक, दार्शनिक, स्वास्थ्य और ज्योतिषीय ऐसे सभी कारणों से दीपावली पर खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। खील यानी धान मूलत: धान (चावल) का ही एक रूप है। यह चावल से बनती है और उत्तर भारत का प्रमुख अन्न भी है। दीपावली के पहले ही इसकी फसल तैयार होती है, इस कारण लक्ष्मी को फसल के पहले भाग के रूप में खील-बताशे चढ़ाए जाते हैं।
स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो भी यह काफी लाभप्रद है। श्राद्ध में सोलह दिन तक खीर-पुरी और अन्य पकवानों के बाद नवरात्रि में नौ दिन उपवास से हमारा हाजमा प्रभावित होता है, खील सुपाच्य होती है। इसकी कमजोर हाजमा ठीक होता है। खील बताशों का ज्योतिषीय महत्व भी होता है। दीपावली धन और वैभव की प्राप्ति का त्योहार है और धन-वैभव का दाता शुक्र ग्रह माना गया है। शुक्रग्रह का प्रमुख धान्य धान ही होता है। शुक्र को प्रसन्न करने के लिए हम लक्ष्मी को खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाते हैं।

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