रावण विश्वविजेता बनना चाहता था लेकिन वह जानता था कि बिना वरदान के यह संभव नहीं है। तब उसने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की। इतने पर भी जब ब्रह्माजी नहीं आए तो उसने अपने मस्तक काटने शुरु कर दिए। यह देखकर ब्रह्माजी को उसके समझ आना ही पड़ा। ब्रह्मीजी ने रावण को वरदान मांगने के लिए कहा। तब रावण ने वरदान मांगा कि- हम काहू के मरहिं न मारैं अर्थात हम किसी के हाथ नहीं मरें।
तब ब्रह्माजी ने कहा- ऐसा तो नहीं हो सकता, मृत्यु तो आएगी ही। रावण बोला - देना हो तो यही दीजिए अन्यथा कुछ भी नहीं। बहुत समझाने पर रावण बोला- हम काहू के मरहिं न मारैं, बानर, मनुज जाति दोइ बारैं अर्थात मनुष्य और बंदरों को छोड़कर कोई भी मेरा वध न कर सके।बस यहीं रावण से सबसे बड़ी भूल हो गई क्योंकि वह तो मानव और बंदरों को अपना भोजन मानता था। ब्रह्माजी ने भी उसे वरदान दे दिया।
यहीं रावण सबसे बड़ी भूल कर गया कि वो जिन मानव और बंदरों को अपना भोजन मानता था उन्हीं के कारण उनकी उसकी मृत्यु हो गई। सार यह है कि किसी भी प्राणी को अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए क्योंकि एक चींटी भी हाथी का मृत्यु का कारण बन सकती है।
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