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29 अक्तूबर 2012

कार्तिक स्नान आज से शुरू, जानिए महत्व और विधि



 

हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का आठवां महीना कार्तिक होता है। पुराणों में कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक महीने में किया गया स्नान व्रत भगवान विष्णु की पूजा के समान कहा गया है। इस बार कार्तिक मास का स्नान 29 अक्टूबर, सोमवार से प्रारंभ हो रहा है। कार्तिक मास में स्नान किस प्रकार किया जाए, इसका वर्णन शास्त्रों में इस प्रकार लिखा है-
तिलामलकचूर्णेन गृही स्नानं समाचरेत्।
विधवास्त्रीयतीनां तु तुलसीमूलमृत्सया।।
सप्तमी दर्शनवमी द्वितीया दशमीषु च।
त्रयोदश्यां न च स्नायाद्धात्रीफलतिलैं सह।।

अर्थात

कार्तिक व्रती (व्रत रखने वाला) को सर्वप्रथम गंगा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के जल में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद नाभिपर्यन्त (आधा शरीर पानी में डूबा हो) जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करना चाहिए परंतु विधवा तथा संन्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मृत्तिका(मिट्टी) को लगाकर स्नान करना चाहिए। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी को तिल एवं आंवले का प्रयोग वर्जित है।
इसके बाद व्रती को जल से निकलकर शुद्ध वस्त्र धारणकर विधि-विधानपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वाले को केवल नरकचतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) को ही तेल लगाना चाहिए। शेष दिनों में तेल लगाना वर्जित है।

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