'मेरा स्टेशन आ गया था और मैं मेट्रो का दरवाजा बंद होने से पहले बाहर निकलने की जद्दोजहद कर रही थी। एक पुरुष ने मेरा टॉप खींच दिया जिससे करीब 15 सेकेंड तक मेरे वक्ष दिखते रहे और इसी बीच किसी ने मेरे पिछले हिस्से को दबोच लिया। जैसे तैसे मैं मेट्रो के बाहर आ गई। प्लेटफॉर्म पर पहुंचते ही मैं उन 5-6 लोगों पर जोर से चिल्लाई जो दरवाजे पर खड़े थे। मैंने उन्हें वो गालियां दी जो शायद ही कोई भारतीय लड़की देने की सोचे। लेकिन मेरे लिए सबसे दुखदायी उन पुरुषों की प्रतिक्रिया थी। वो मुझे घूरते हुए हंसते रहे। वो हंसते रहे और मेरा गुस्सा बढ़ता गया। मैं हमेशा सोचा करती थी कि यदि कभी मेरा सामना ऐसे लोगों से हुआ तो मैं पीट-पीट कर उनका बुरा हाल कर दूंगी लेकिन उस वक्त मैं सिर्फ उन्हें देख रही थी। मेरी गालियां भी उन्हें हंसाने का जरिया ही बनकर रह गई थीं।' यह आपबीती है दिल्ली विश्वविद्यालय की एक लड़की की। उसने दिल्ली मेट्रो में सफर के दौरान अपने साथ घटी घटना अपने ब्लॉग पर बयां की है।
लड़की ने आगे लिखा, 'यदि दिल्ली के पुरुषों की कुंठा इतनी अधिक बढ़ गई है तो उन्हें वहां जाना चाहिए जहां सेक्स पैसे देकर मिल जाता है। मेरा शरीर मेरा अपना है और मैंने किसी पुरुष को इसे छूने का अधिकार नहीं दिया है। यह लेख सिर्फ मेरे बारे में नहीं है, यह उस मनोवैज्ञानिक चोट के बारे में है जिसके साथ अब मुझे जीवन भर जीना पड़ेगा। किस तरह रोज ऐसी ही घटनायें घटती हैं और कोई उन पर बात तक करना पसंद नहीं करता। मैं नहीं जानती की यह लिखकर कुछ बदलेगा या नहीं लेकिन यह जरूर जानती हूं कि बहुत सी चीजों से मेरा विश्वास टूट गया है।'
यह आपबीती दिल्ली और देश के दूसरे शहरों में पब्लिक ट्रांस्पोर्ट से सफर करने वाली लाखों महिलाओं की आपबीती है। बाकी खामोशी से सह लेती हैं, लेकिन इस लड़की ने सबको बताने का साहस दिखाया है और पुरुषों को आईना भी दिखाया है। उसने बताया है कि उसके साथ इतना सब कुछ होने के बावजूद सारे यात्री खामोश रहे। न ही किसी ने उसकी मदद की कोशिश की और न ही पुलिस को घटना की जानकारी देना बेहतर समझा।
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