लखनऊ. पूर्वांचल में गुटखे के बढ़ते उपयोग से युवाओं पर कैंसर का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। सैकड़ों सालों से अपने औषधिय गुणों के लिए जाने जाने वाली हल्दी और तुलसी के मिलन से इस युवा पीढी को मुंह के कैंसर से बचाया जा सकता है।
बीएचयू के डेंटल साईंस में हाल ही में की गयी एक पाईलेट स्टडी में यह उजागर हुआ है कि तुलसी और हल्दी के ग्लिसरीन में कराये गए संगम से मुंह के कैंसर से बचा जा सकता है। शोध के अनुसार अत्यधिक गुटखा खाने की वजह से ओरल सब म्यूकोसो फाईब्रोसिस (ओऐसएम्ऍफ़) युवाओं में बढ़ते जा रहे हैं। ओऐसएमऍफ़ को मुंह के कैंसर का गेटवे कहा जाता है।
40-50 ओऐसएमऍफ़ के युवा मरीजों पर कराये गए तीन महीने के शोध मे पाया गया है कि अगर ओऐसएमऍफ़ के घाव पर लंबे समय तक तुलसी की पट्टी और हल्दी चूर्ण के ग्लिसरीन में कराये गए संगम को दिन में दो बार लगाया जाए तो आरंभिक स्टेज का ओऐसएमऍफ़ जड़ से ख़त्म हो सकता है। जबकि तीसरे और चौथे स्टेज में भी ये इलाज सर्जरी के साथ बेहद कारगर हो सकता है।
बीएचयू के डेंटल साईंस विभाग के हेड और डीन प्रोफसर टी पी चतुर्वेदी के अनुसार इस शोध से यह भी साबित होता है कि अगर शुरुआत में ही ओऐसएमऍफ़ का इलाज हल्दी-तुलसी से कराया जाये तो इस रोग को कैंसर में तब्दील होने से रोका जा सकता है।
यह शोध चतुर्वेदी के नेतृत्व में असिस्टैंट प्रोफैसर्स डॉ आदित और डॉ राहुल अग्रवाल ने किया है। ओऐसएमऍफ़ वह बीमारी है जिसमे अत्यधिक गुटखा या तम्बाकू उपयोग करने की वजह से गाल के फाईबर मोटे होने लगते हैं और धीमे-धीमे मुंह का पूरी तरह खुलना भी लगभग बंद हो जाता है। अगर इसका समय रहते इलाज ना कराया जाए तो ये जानलेवा मुंह के कैंसर का भी रूप ले सकता है।
मुंह का कैंसर देश में सर्वाधिक होने वाला कैंसर है। इसके 25 लाख से भी अधिक नए केसेस हर साल रिपोर्ट होते हैं और समय से सही इलाज न मिलने की हालत में ये जानलेवा भी होता है।
बीएचयू के डेंटल साईंस में हाल ही में की गयी एक पाईलेट स्टडी में यह उजागर हुआ है कि तुलसी और हल्दी के ग्लिसरीन में कराये गए संगम से मुंह के कैंसर से बचा जा सकता है। शोध के अनुसार अत्यधिक गुटखा खाने की वजह से ओरल सब म्यूकोसो फाईब्रोसिस (ओऐसएम्ऍफ़) युवाओं में बढ़ते जा रहे हैं। ओऐसएमऍफ़ को मुंह के कैंसर का गेटवे कहा जाता है।
40-50 ओऐसएमऍफ़ के युवा मरीजों पर कराये गए तीन महीने के शोध मे पाया गया है कि अगर ओऐसएमऍफ़ के घाव पर लंबे समय तक तुलसी की पट्टी और हल्दी चूर्ण के ग्लिसरीन में कराये गए संगम को दिन में दो बार लगाया जाए तो आरंभिक स्टेज का ओऐसएमऍफ़ जड़ से ख़त्म हो सकता है। जबकि तीसरे और चौथे स्टेज में भी ये इलाज सर्जरी के साथ बेहद कारगर हो सकता है।
बीएचयू के डेंटल साईंस विभाग के हेड और डीन प्रोफसर टी पी चतुर्वेदी के अनुसार इस शोध से यह भी साबित होता है कि अगर शुरुआत में ही ओऐसएमऍफ़ का इलाज हल्दी-तुलसी से कराया जाये तो इस रोग को कैंसर में तब्दील होने से रोका जा सकता है।
यह शोध चतुर्वेदी के नेतृत्व में असिस्टैंट प्रोफैसर्स डॉ आदित और डॉ राहुल अग्रवाल ने किया है। ओऐसएमऍफ़ वह बीमारी है जिसमे अत्यधिक गुटखा या तम्बाकू उपयोग करने की वजह से गाल के फाईबर मोटे होने लगते हैं और धीमे-धीमे मुंह का पूरी तरह खुलना भी लगभग बंद हो जाता है। अगर इसका समय रहते इलाज ना कराया जाए तो ये जानलेवा मुंह के कैंसर का भी रूप ले सकता है।
मुंह का कैंसर देश में सर्वाधिक होने वाला कैंसर है। इसके 25 लाख से भी अधिक नए केसेस हर साल रिपोर्ट होते हैं और समय से सही इलाज न मिलने की हालत में ये जानलेवा भी होता है।
अख्तरजी नमस्कार। मैं यह जानना चाहता हूँ कि यदि हम इस पचड़े में न पड़ें कि ओएसएमएफ कैंसर में तब्दील हुआ है या नहीं और जैसी भी परिस्थिति है, उसी का इलाज शुरू कर दें तो? मेरा मुँह नहीं खुलता है, लेकिन मैंने कभी कैंसर की जाँच नहीं करवाई है। कृपया मार्गदर्शन दीजिएगा। मेरा नंबर है 09998953281
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