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15 सितंबर 2012

चित्रों में करें अद्भुत देवी के दर्शन, न मूर्ति है न रूप, पर करती हैं सबका भला!


सेन्हा. झारखंड के लोहरदगा जिला स्थित सेन्हा प्रखंड के प्रसिद्ध सती मंदिर में आस्थाओं की जीवन शैली लोक संस्कृति की अनूठी परम्परा बन गई है। नयी फसल या घर बनाने से लेकर हर छोटे बड़े काम के लिए पहली चढ़ौती मंदिर की दहलीज तक जाती है। यही वजह है कि मंदिर सदियों से अपनी आस्था के लिए ईंट गारो के ढांचे से आगे निकलकर दिलों में रच बस गया है। इसके मूल में कहानी यह है कि जीवन भर जनकल्याण करने वाली मरने के बाद भी लोगों की भलाई ही कर रही है, एक जमाने में सती हुई मां बेटी। लोगों को नाम पता तो नहीं मालूम, लेकिन उनके प्रति आस्थाएं दिलों में शिलालेख बन चुकी हैं।
न कोई मूर्ति, न कोई आकार लेकिन उनकी मौजूदगी का भाव बोध शिरोधार्य कर लोग भक्ति में लीन रहते हैं। शादी विवाह से लेकर झोपड़ी बनाने और नयी फसल घर में लाने से पहले सती मां को अर्पित करना कम से कम तीन सदियों की परम्परा का हिस्सा है। बुजुर्गों से यह पता चलता है कि तीन चार सौ साल पहले यहां पर कोई राजा थे जो हर क्षण जनता की भलाई में तत्पर रहते थे। उनके पास जंजीरों से बंधे हुए दो सोने के गोपाल हंडें थे। दैवी शक्ति वाले इन हंडो के जरिए ही वह जनता की भलाई करते थे।
दुर्भाग्य से उनके पुरोहित गुरू ने गुरू दक्षिणा में गोपाल हंडें मांग लिए। जनता को समर्पित राजा ने गोपाल हंडे को तालाब में डालकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। बाद में उनकी पत्नी और बेटी ने भी जान दे दी। जनकल्याण के लिए समर्पित मां बेटी की याद में ही यह सती मंदिर परम्परा का केन्द्र बन गया है। उनकी गुमनामी के बावजूद आस्था की जीवंतता यहां सदियों बाद भी धरोहर हैं। इस देवी मंदिर में सिंदूर भी नहीं चढ़ता। जो भी काम करना हो, यानी फसल की पहली बोहनी, मकान बनने से पहले नींव की पहली ईंट भी देवी मां के दहलीज पर आर्शीर्वाद के लिए आती हैं।
मंदिर के भीतर कोई मूर्ति नहीं सिर्फ आस्थाओं की समाधि लोगों के समर्पण का शिलाखंड बन चुकी है। 1972 में वीरू साहू और कलश देवी ने पक्का मंदिर बनवा दिया था लेकिन समाधि स्थल आज भी शुरूआती अस्तित्व में ही है। नर्मदेश्वर पाठक अपनी कई पीढियों से यहां सेवा कर रहे हैं।
हाल ही में कुछ भक्तों ने मंदिर के सामने चबूतरे का पक्की करण कराया है। मंदिर की प्राचीनतम और इतिहास समय की यात्रा के खांचे से आगे निकल चुके हैं। लोक संस्कृति और परंपराओं वाली आस्था ही यहां सबकुछ है।

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