जयपुर.एसएमएस अस्पताल में भर्ती मरीजों के स्वाइन फ्लू जैसी अज्ञात
बीमारी के लिए गए सैंपल में स्क्रब टाइफस मिला है। यह खुलासा एसएमएस मेडिकल
कॉलेज की माइक्रो-बायलॉजी लैब में 9 सैंपल की जांच के बाद हुआ। इनमें से
पांच टेस्ट पॉजिटिव आए हैं।
पिछले 20 दिन से आ रहे मरीजों के लक्षण स्वाइन फ्लू जैसे दिख रहे थे, लेकिन उनके टेस्ट से बीमारी का पता नहीं चल रहा था। इसके बाद एसएमएस के डॉक्टरों ने सैंपल भेजने के साथ ही नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणो और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल दिल्ली के विशेषज्ञों से फोन पर संपर्क किया। उन्होंने स्क्रब टाइफस की जांच की भी सलाह दी।
अस्पताल अधीक्षक डॉ.वीरेंद्र सिंह ने बताया कि स्क्रब टाइफस के पॉजिटिव आने के बाद डॉक्टरों को सचेत रहने और हाई रिस्क निमोनिया के मरीजों के ब्लड सैंपल की जांच के निर्देश दे दिए है। मेडिकल कॉलेज की माइक्रो-बायलॉजी लैब में गुरुवार से जांच शुरू हो जाएगी, जिसका शुल्क 700 रुपए रखा गया है। 21 सैंपल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) पुणो भेजे जाएंगे। डाटा बेस तैयार किया जा रहा है। भास्कर में सोमवार के अंक में खबर प्रकाशित होने के बाद अस्पताल प्रशासन जागा। सवाई मानसिंह अस्पताल में अलवर ( राजगढ़, बानसूर व लक्ष्मणगढ़), दौसा एवं करौली क्षेत्र के ज्यादा मरीज भर्ती हुए हैं।
200 से ज्यादा मरीज सामने आए, 12 की तो मौत भी हो चुकी है।
डॉक्टरों को पता क्यों नहीं चला?
स्क्रब टाइफस बीमारी में शरीर पर लाल दाने बन जाते हैं, लेकिन एसएमएस के मरीजों में इस तरह के लक्षण नहीं मिले हैं। स्क्रब टाइफस अधिकतर जंगली झाड़ियों वाले इलाकों में होता है, जबकि यहां आ रहे मरीज शहरी क्षेत्र के थे। (इसी कारण अभी भी कुछ डॉक्टरों में मतभेद है कि ये स्क्रब टाइफस है या नहीं)
स्क्रब टाइफस : कारण क्या..फैलता कैसे है?
इस बीमारी का कारण है जंगलों और शहरों झाड़ियों में मिलने वाली चिगर्स नाम की माइट (पिस्सू)। यह सबसे पहले व्यक्ति को काटता है और एक रिकेट्सिया त्सूत्सूगामुशी (आरटी) नाम का सूक्ष्मजीवी खून में छोड़ देता है। रक्त जांच में इसकी पुष्टि की जा सकती है। यह बीमारी ज्यादातर बारिश के बाद फैलती है।
आरटी के खून में जाने के बाद यह 10-12 दिन तक बढ़ता रहता है। बाद में संक्रमित व्यक्ति को सिरदर्द, आंखों में इन्फेक्शन, तेज बुखार और हरारत होने लगती है। ज्यादातर मामलों में डॉक्टर माइट के काटने का काला निशान शरीर पर ढूंढ़ते हैं। समय रहते इलाज मिले तो इसे साधारण दवाओं से खत्म किया जा सकता है। लापरवाही के कारण हुए न्यूमोनाइटिस, एनसेफेलाइटिस और सर्कुलेटरी फेल्योर जैसे कॉम्पलीकेशन से जान भी जा सकती है।
पिछले 20 दिन से आ रहे मरीजों के लक्षण स्वाइन फ्लू जैसे दिख रहे थे, लेकिन उनके टेस्ट से बीमारी का पता नहीं चल रहा था। इसके बाद एसएमएस के डॉक्टरों ने सैंपल भेजने के साथ ही नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणो और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल दिल्ली के विशेषज्ञों से फोन पर संपर्क किया। उन्होंने स्क्रब टाइफस की जांच की भी सलाह दी।
अस्पताल अधीक्षक डॉ.वीरेंद्र सिंह ने बताया कि स्क्रब टाइफस के पॉजिटिव आने के बाद डॉक्टरों को सचेत रहने और हाई रिस्क निमोनिया के मरीजों के ब्लड सैंपल की जांच के निर्देश दे दिए है। मेडिकल कॉलेज की माइक्रो-बायलॉजी लैब में गुरुवार से जांच शुरू हो जाएगी, जिसका शुल्क 700 रुपए रखा गया है। 21 सैंपल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) पुणो भेजे जाएंगे। डाटा बेस तैयार किया जा रहा है। भास्कर में सोमवार के अंक में खबर प्रकाशित होने के बाद अस्पताल प्रशासन जागा। सवाई मानसिंह अस्पताल में अलवर ( राजगढ़, बानसूर व लक्ष्मणगढ़), दौसा एवं करौली क्षेत्र के ज्यादा मरीज भर्ती हुए हैं।
200 से ज्यादा मरीज सामने आए, 12 की तो मौत भी हो चुकी है।
डॉक्टरों को पता क्यों नहीं चला?
स्क्रब टाइफस बीमारी में शरीर पर लाल दाने बन जाते हैं, लेकिन एसएमएस के मरीजों में इस तरह के लक्षण नहीं मिले हैं। स्क्रब टाइफस अधिकतर जंगली झाड़ियों वाले इलाकों में होता है, जबकि यहां आ रहे मरीज शहरी क्षेत्र के थे। (इसी कारण अभी भी कुछ डॉक्टरों में मतभेद है कि ये स्क्रब टाइफस है या नहीं)
स्क्रब टाइफस : कारण क्या..फैलता कैसे है?
इस बीमारी का कारण है जंगलों और शहरों झाड़ियों में मिलने वाली चिगर्स नाम की माइट (पिस्सू)। यह सबसे पहले व्यक्ति को काटता है और एक रिकेट्सिया त्सूत्सूगामुशी (आरटी) नाम का सूक्ष्मजीवी खून में छोड़ देता है। रक्त जांच में इसकी पुष्टि की जा सकती है। यह बीमारी ज्यादातर बारिश के बाद फैलती है।
आरटी के खून में जाने के बाद यह 10-12 दिन तक बढ़ता रहता है। बाद में संक्रमित व्यक्ति को सिरदर्द, आंखों में इन्फेक्शन, तेज बुखार और हरारत होने लगती है। ज्यादातर मामलों में डॉक्टर माइट के काटने का काला निशान शरीर पर ढूंढ़ते हैं। समय रहते इलाज मिले तो इसे साधारण दवाओं से खत्म किया जा सकता है। लापरवाही के कारण हुए न्यूमोनाइटिस, एनसेफेलाइटिस और सर्कुलेटरी फेल्योर जैसे कॉम्पलीकेशन से जान भी जा सकती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)