जयपुर.‘मां अकेले थोड़े रहेगी, मैं अपने पास रखूंगी, मेरे पापा के लिए बेटा ही तो हूं, पापा मुझे ही तो जिम्मेदारी देकर गए हैं। जब तक जीऊंगी, पिता के हर सपने, उनकी हर जिम्मेदारी को निभाऊंगी।’
ये शब्द ज्योति माथुर के हैं, जिसके सिर पिता की पगड़ी बंधी। मंगलवार को महेश नगर अवधपुरी प्रथम में ज्योति के ससुराल में पगड़ी की रस्म हुई। पिता मुकेश बिहारी माथुर की मृत्यु के बारह दिन पूरे होने पर इकलौती बेटी ज्योति के सिर पगड़ी बांधी गई। इस दौरान ज्योति के परिजन, ननिहाल पक्ष, ससुराल पक्ष व कई समाजबंधु कार्यक्रम में शामिल हुए।
दस अगस्त को लंबी बीमारी के बाद मुकेश बिहारी माथुर की मृत्यु के बाद ज्योति ने न केवल मुखाग्नि दी, बल्कि पगड़ी बंधवाकर परिवार के पोषण की जिम्मेदारी भी अपने सिर ओढ़ ली। मेरठ से आए ज्योति के मामा सुभाष, विनोद, प्रमोद व दिनेश ने परंपरागत तरीके से पगड़ी की रस्म पूरी की।
ज्योति को इसकी प्रेरणा उसकी मां सरोज कुमारी, पति भास्पेंद्र माथुर, ससुर नरेंद्र बिहारी माथुर, ताऊ चांद बिहारी व ताऊजी की बेटी निशा माथुर से मिली। ज्योति के पिता सादुलपुर में रेलवे में टीसीएम के पद पर कार्यरत थे। पिछले चार माह से वे कैंसर से पीड़ित थे। ज्योति ही पिता को चूरू से जयपुर लाई और अपने ससुराल में रहते हुए पिता की दिन रात सेवा की। ज्योति माथुर संस्कृत में एमए तक पढ़ी हैं।
बेटों के बराबर आई बेटियां
संभवत जयपुर में यह पहला मौका रहा, जब किसी बेटी ने मुखाग्नि से लेकर पगड़ी तक की रस्म अदा की। हिंदू परंपरानुसार पिता की मौत के बाद मुखाग्नि देने और पगड़ी का हकदार सिर्फ पुत्र ही होता है, पर अब ऐसा नहीं है। पुत्र नहीं तो पुत्र के समान पली बढ़ी बेटियां पीछे नहीं रहेंगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)