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06 अगस्त 2012

धर्म के रीतिरिवाज किसी विशेष धर्म के अनुयाइयों की बपोती नहीं ..आशामल्लाह तीन सालों से पुरे रोज़े रख कर उदाहरण पेश कर रही हैं


दोस्तों धर्म मजहब और धर्मों से जुड़े रीतिरिवाज विधि नियम किसी व्यक्ति विशेष या धर्म के गुलाम नहीं यह तो होसलों और भाईचारे का पैगाम है ..जी हाँ दोस्तों अपने धर्म के सभी निति नियमों को बरकरार रखते हुए यह समाजसेविका आशा कुमारी मल्लाह रोज़े में जब किसी को दिन भर इस्लामिक निति नियमों पर चलता हुआ देखती है तो यह उनकी इस निति का अनुसरण करती है .मुस्लिम धर्म के मुताबिक रमजान के महीने में रोज़े रखना फर्ज़ है ..यह सही है के मुस्लिम धर्म से जुड़े कई लोग रोज़े पुरे नहीं रखते है लेकिन आशा जी है के पिछले तीन सालों से लगातार बिना किसी चुक के रोज़े रख रही है ..एक पीर बाबा के सम्पर्क में आने के बाद उन्होंने जाना के रोज़े से सुकून मिलता है जबकि दुसरे की भूख के दर्द का अहसास होता है ..उनका मन्ना है के रोज़े से खुद का दिली सुकून जीवन शेली का अनुशासन और इश्वर की प्रशंसा सभी एक साथ हो जाते है ........आशा जी अदालत परिसर कोटा में स्टाम्प विक्रेता है वोह सभी से भाईचारे सद्भावना के माहोल में हसंते खेलते अपने सभी काम करते हुए दिन गुजार देती है और नियमित रूप से सुबह सहरी के बाद रोज़े की नियत करती है फिर दिन भार न काहू से दोस्ती न काहू से बेर ..न किसी की आलोचना ना किसी की बुराई ..न बुरा कहना न बुरा देखना बस ख़ामोशी से खुद के काम में समर्पण भाव से लगे रहना फिर इफ्तार के वक्त अजान का इन्तिज़ार वही इफ्तार की दुआ और रोज़ा इफ्तार यही दिन चर्या आशा जी की नियमित है ..आशा जी इन दिनों कुरान ख्वानी करवाती है ..मिलाद शरीफ पड़वाती है .दुसरे धर्म करम करती है कुछ लोगों को साथ रोजा खुलवाती है और ख़ुशी हासिल करती है ..लगातार तीन साल से रोज़े रख रही आशा जी का कहना है के में किसी के लियें नहीं खुदा के लियें और मेरे दिली सुकून के लियें रोज़े रख रही हूँ जमाना क्या सोचता है इससे मुझे मतलब नहीं मेरे इश्वर मेरे अल्लाह के बीच में कोई तीसरा क्यूँ ..उनका कहना है के धर्म सभी एक जेसे होते है मान्यताये एक जेसी होती है प्रार्थना और नमाज़ के तरीके अलग हो सकते है व्रत और रोज़े के तरीके अलग हो सकते है लेकिन मिलते जुले कार्यक्रम और परम्पराएँ तो है उनका कहना है के वोह साल में जो दो नवरात्री आते है वोह पुरे विधि नियमों के तहत रखती है पूजा पाठ करती है ..उपवास रखती है लेकिन रोज़े भी उसी शिद्दत के साथ रख कर खुदा के दरबार में अपना सर झुकाती है ...........आशा जी कामकाजी महिला भी है और समाजसेविका भी लेकिन उनके सर्वधर्म भाव और काहू से दोस्ती ना काहू से बेर की फितरत के कारण ही उनका होसला बुलंद है और कामयाबी की सीड़ियों पर वोह लगातार बुलंदियों पर चढ़ रही है ........आशा जी के आलावा एक समाज सेवक भाई देवेन्द्र पाठक जो रोज़े पुरे तो नहीं रखते लेकिन उनका संकल्प कई वर्षों से है वोह पहला और आखरी रोजा पुरे निति नियमों से रखते है वोह जनेऊ भी डालते है तो उस जनेऊ के साथ अपने गले पीर बाबा की दी हुई तस्बीह भी गले से लगाते है ..तो दोस्तों मन्दिर में अज़ान और मस्जिद में घंटी की आवाज़ सुनने सुनाए के वक्त शुरू हो गए है ..नियत साफ़ तो सब ठीक धर्म कर्म दिखावे से नहीं मन से होता है और आत्मा ..रूह मन की शुद्धिकरण सर्वधर्म भाव से होता है परस्पर मेल जोल से होता है भाईचारे सद्भावना से होता है धर्म तो एक जानवर जेसा व्यवहार करने वाले व्यक्ति को इंसान बनता है मानव बनाता है आत्मीयता मानवता सिखाता है तो आओ दोस्तों कुछ ऐसा किया जाए के रोते हुए को हंसाया जाए और इबादत का कोई मजहब कोई ज़ात कोई धर्म न हो ऐसा कुछ विधि विधान बनाया जाए ...........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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