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15 अगस्त 2012

रमजान मुबारक में शबे कद्र की फजीहत



कुंदरकी: रमजान मुबारक के अंतिम अशरे में शबे कद्र की बेहत फजीलत है। उलेमा-ए-इस्लाम के मुताबिक शबे कद्र की एक शब रात की इबादत हजार महीनों की इबादत से अफजली है।

रमजान मुबारक में दस-दस दिन के तीन अशरे होते हैं। प्रत्येक अशरे की अलग फजीलत है। जुमा अलविदा भी तीसरे और अंतिम अशरे में आता है। इसके अलावा शबे कद्र भी इसी अशरे में है। अल्लाहताला ने अपने बंदों की हिदायत के लिए कुरआने पाक भी शबे कद्र में ही नाजिल किया है।

अहले सुन्नत बल जमाअत के इमाम कारी अब्दुल हफीज ने बताया कि रमजान मुबारक की 21वीं शब, 23वीं शब, 25वीं शब, 27वीं शब और 29वीं शब, शबे कद्र की शबे मानी जाती हैं। मगर इनमें भी 27 वीं शब की खास फजीलत बयान की गई है। कारी हफीज के अनुसार शबे कद्र की रातों की फजीलत का कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इसलिए इन रातों में इबादत करना, कुरआने पाक की तिलावत करना और गुनाहों से तौबा करना चाहिए।

इसके अलावा इसी अशरे में मौलाए कायनात हजरत अली का यौमे शहादत भी है। 19 रमजान को मौला अली को नमाज की हालत में तलवार से व्याप्त कर दिया था। उनकी 21 रमजान को शहादत हो गई थी। शिया समुदाय में शबे कद्र की इबादत के साथ ही मौला अली की शहादत पर तीन दिवसीय शोक भी मनाया जाता है।

रमजान के अंतिम अशरे में एतकाफ की भी फजीलत है। अनेक व्यक्ति दुनियादारी छोड़कर पूरा अशरा मस्जिद में ही रहकर गुजारते हैं। केवल जरूरी हाजत के लिए बाहर आते हैं। यह एतकाफ चांदरात तक चलता है। अनेक महिलाएं भी घर के कमरे में एतकाफ में बैठ जाती हैं।

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