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02 अगस्त 2012

नमाज़ की अहमियत

नमाज फारसी शब्द है, जो उर्दू में अरबी शब्द सलात का पर्याय है। कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है और प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष को नमाज पढ़ने का आदेश ताकीद के साथ दिया गया है। इस्लाम के आरंभकाल से ही नमाज की प्रथा और उसे पढ़ने का आदेश है। यह मुसलमानों का बहुत बड़ा कर्तव्य है और इसे नियमपूर्वक पढ़ना पुण्य तथा त्याग देना पाप है।


पाँच नमाजें

प्रत्येक मुसलमान के लिए प्रति दिन पाँच समय की नमाज पढ़ने का विधान है।

  • नमाज -ए-फजर (उषाकाल की नमाज)-यह पहली नमाज है जो प्रात: काल सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है।
  • नमाज-ए-जुह्ल (अवनतिकाल की नमाज) यह दूसरी नमाज है जो मध्याह्न सूर्य के ढलना शुरु करने के बाद पढ़ी जाती है।
  • नमाज -ए-अस्र (दिवसावसान की नमाज)- यह तीसरी नमाज है जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है।
  • नमाज-ए-मगरिब (पश्चिम की नमाज)- चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है।
  • नमाज-ए-अशा (रात्रि की नमाज)- अंतिम पाँचवीं नमाज जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है।

विधि

नमाज पढ़ने के पहले प्रत्येक मुसलमान वुजू (अर्धस्नान) करता है अर्थात् कुहनियों तक हाथ का धोता है, मुँह व नाक साफ करता है, पूरा मुख धोता है। यदि नमाज किसी मस्जिद में हो रही है तो "अजाँ" भी दी जाती है। नमाज तथा अजाँ के बीच में लगभग 15 मिनटों का अंतर होता है। उर्दू में अजाँ का अर्थ पुकार है। नमाज के पहले अजाँ इसलिए दी जाती है कि आस-पास के मुसलमानों को नमाज की सूचना मिल जाए और वे सांसारिक कार्यों को छोड़कर कुछ मिनटों के लिए मस्जिद में खुदा का ध्यान करने के लिए आ जाएँ। नमाज अकेले भी पढ़ी जाती है और समूह के साथ भी। यदि नमाज साथ मिलकर पढ़ी जा रही है तो उसमें एक मनुष्य सबसे आगे खड़ा हो जाता है, जिसे इमाम कहते हैं और बचे लोग पंक्ति बाँधकर पीछे खड़े हो जाते हैं। इमाम नमाज पढ़ता है और अन्य लोग उसका अनुगमन करते हैं।

नमाज पढ़ने के लिए मुसलमान मक्का की ओर मुख करके खड़ा हो जाता है, नमाज की इच्छा करता है और फिर "अल्लाह अकबर" कहकर तकबीर कहता है। इसके अनंतर दोनों हाथों को कानों तक उठाकर छाती पर नाभि के पास बाँध लेता है। वह बड़े सम्मान से खड़ा होता है। वह समझता है कि वह खुदा के सामने खड़ा है और खुदा उसे देख रहा है। कुछ दुआ पढ़ता है और कुरान शरीफ से कुछ लेख पढ़ता है, जिसमें फातिह: (कुरान शरीफ का पहला बाब) का पढ़ना आवश्यक है। ये लेख कभी उच्च तथा कभी मद्धिम स्वर से पढ़े जाते हैं। इसके अनंतर वह झुकता है, फिर खड़ा होता है, फिर खड़ा होता है, फिर सजदा में गिर जाता है। कुछ क्षणों के अनंतर वह घुटनों के बल बैठता है और फिर सिजदा में गिर जाता है। फिर कुछ देर के बाद खड़ा हो जाता है। इन सब कार्यों के बीच-बीच वह छोटी-छोटी दुआएँ भी पढ़ता जाता है, जिनमें अल्लाह की प्रशंसा होती है। इस प्रकार नमाज की एक रकअत समाप्त होती है। फिर दूसरी रकअत इसी प्रकार पढ़ता है और सिजदा के उपरांत घुटनों के बल बैठ जाता है। फिर पहले दाईं ओर मुँह फेरता है और तब बाईं ओर। इसके अनंतर वह अल्लाह से हाथ उठाकर दुआ माँगता है और इस प्रकार नमाज़ की दो रकअत पूरी करता है अधिकतर नमाजें दो रकअत करके पढ़ी जाती हैं और कभी-कभी चार रकअतों की भी नमाज़ पढ़ी जाती है। पढ़ने की चाल कम अधिक यही है।

नमाजों की अहमियत

कुरान अपनी एक आयत मे बयान फर्माता है:

"वस्तअ-ईनू बिस्सबरे वस्स्लात"


ऐ ईमान वालों सब्र और नमाजों से काम लो

साफ् जाहिर है नमाज खालिस बन्दे की आसानी के लिए अल्लाह की नेमत है। ५ नमाजों की मिसाल ऐसी है,मानो आपके द्वार पर ५ पवित्र नहरे॥ दिन मे ५ बार आप उनमे स्नान कर के क्या अपवित्र रह सकते हैं? वैसे ही आप अपने मन को इन नहरों मे स्नान करवा दुनिया द्वारा दी गई कलिख और मैल को धो डालते हैं। अल्लाह का डर और उसकी मदद आप को कामयाब इन्सान बनाने में मदद देतें हैं।

अन्य नमाजें

प्रति दिन की पाँचों समय की नमाज़ों के सिवा कुछ अन्य नमाज़ें हैं, जो समूहबद्ध हैं। पहली नमाज़ जुम्मअ (शुक्रवार) की है, जो सूर्य के ढलने के अनंतर नमाज़ जुह्र के स्थान पर पढ़ी जाती है। इसमें इमाम नमाज़ पढ़ाने के पहले एक भाषण देता है, जिसे खुतबा कहते हैं। इसमें अल्लाह की प्रशंसा के सिवा मुसलमानों को नेकी का उपदेश दिया जाता है। दूसरी नमाज ईदुलफित्र के दिन पढ़ी जाती है। यह मुसलमानों का वह त्योहार है, जिसे उर्दू में ईद कहते हैं और रमजान के पूरे महीने रोजे (दिन भर का उपवास) रखने के अनंतर जिस दिन नया चंद्रमा (शुक्ल द्वितीया का) निकलता है उसके दूसरे दिन मानते हैं। तीसरी नमाज़ ईद अल् अजा के अवसर पर पढ़ी जाती है। इस ईद को कुर्बानी की ईद कहते हैं। इन दिनों के अवसरों पर निश्चित नमाज़ों का समय सूर्योदय के अनंतर लगभग बारह बजे दिन तक रहता है। ये नमाज़ें सामान्य नमाज़ों की तरह पढ़ी जाती हैं। विभिन्नता केवल इतनी रहती है कि इनमें पहली रकअत में तीन बार और दूसरी रकअत में पुन: तीन बार अधिक कानों तक हाथ उठाना पड़ता है। नमाज़ के अनंतर इमाम खुतबा देता है, जिसमें नेकी व भलाई करने के उपदेश रहते हैं।

कुछ नमाजें ऐसी भी होती हैं जिनके न पढ़ने से कोई मुसलमान दोषी नहीं होता। इन नमाजों में सबसे अधिक महत्व तहज्जुद नमाज़ को प्राप्त है। यह नमाज़ रात्रि के पिछले पहर में पढ़ी जाती है। आज भी बहुत से मुसलमान इस नमाज़ को दृढ़ता से पढ़ते हैं।

इस्लाम धर्म में नमाज़ जिनाज़ा का भी बहुत महत्व है। इसकी हैसिअत प्रार्थना सी है। जब किसी मुसलमान की मृत्यु हो जाती है तब उसे नहला धुलाकर श्वेत वस्त्र से ढक देते हैं, जिसे कफन कहते हैं और फिर जिनाज़ा को मस्जिद में ले जाते हैं। वहाँ इमाम जिनाज़ा के पीछे खड़ा होता है और दूसरे लोग उसके पीछे पंक्ति बाँधकर खड़े हो जाते हैं। नमाज़ में न कोई झुकता है और न सिजदा करता है, केवल हाथ बाँधकर खड़ा रह जाता है तथा दुआ पढ़ता है।

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