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25 अगस्त 2012

बिहार में बच्चेदानी घोटाला




पटना. बिहार में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत फर्जी गर्भाशय निकालने के बड़े घोटाले से परदा उठ गया है। समस्तीपुर जिला प्रशासन ने राज्य सरकार को रिपोर्ट भेजी है कि गर्भाशय निकालने के 1300 ऑपरेशन ऐसे किये गये जो संदेहास्पद हैं। करीब 489 ऑपरेशन ऐसे हुए जिसकी जरूरत ही नहीं थी। यानी वे फर्जी थे। योजना के तहत राज्य में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 73 लाख परिवारों को स्मार्ट कार्ड जारी किये गये हैं। इस घोटाले का संज्ञान लेते हुए मानवाधिकार आयोग ने भी नोटिस जारी कर दिया है।

समस्तीपुर की घटना एक बानगी भर है। इस मुतल्लिक पूरे राज्य से रिपोर्ट आनी बाकी है। अगर एक जिले से इतनी संख्या में फर्जी गर्भाशय निकाले गये तो पूरे राज्य में हुई इस गड़बड़ी की गहराई समझी जा सकती है। मधुबनी और छपरा में सैकड़ों कम उम्र महिलाओं के गर्भाशय निकाले जाने का मामला सामने आया है।

डीएम की रिपोर्ट के अनुसार समस्तीपुर जिले में पिछले साल से अब तक कुल आठ हजार मरीजों के ऑपरेशन किये गये। फर्जी गर्भाशय निकालने की बात सामने आने पर मामले की छानबीन करायी गयी। 2600 मरीजों की दोबारा जांच हुई। इनमें 1300 के ऑपरेशन संदेहास्पद थे। कई ऑपरेशन कागज पर हुए। इस योजना का संचलान श्रम संसाधन विभाग से होता है।

अनवांटेड ऑपरेशन हुएः डीएम

समस्तीपुर के डीएम कुंदन कुमार ने भास्कर डाट कॉम को बताया कि छानबीन में गड़बडि़यां पायी गयी हैं। कई महिलाओं और लड़कियों के ऑपरेशन बिना जरूरत कर दिये गये। संबंधित एजेंसियों के खिलाफ नोटिस जारी किया गया है। सरकार को हमने रिपोर्ट भेज दी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एक कम उम्र की लड़की की बच्चेदानी भी निकाली गयी है।

पूरे देश में निकाली जा रही बच्चादानीः मंत्री
श्रम संसाधन विभाग के मंत्री जनार्दन सिंह सिग्रीवाल से जब फर्जी बच्चादानी निकाले जाने के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था- ऐसा सिर्फ बिहार में ही नहीं, पूरे देश में हो रहा है। पूरे राज्य में हम इसकी जांच करा रहे हैं रिपोर्ट मांगी गयी है। किसी भी दोषी को नहीं छोड़ेंगे।

क्या है योजना

केंद्र सरकार ने इसे बीपीएल परिवारों के लिए लागू किया है। इसके लिए परिवारों को स्मार्ट कार्ड दिये जाते हैं। एक कार्ड पर पांच सदस्यों के इलाज पर खर्च की अधिकतम राशि 30 हजार सालाना है। इसके लिए बीमा कंपनियों के साथ सरकार समझौता करती है। बीमा कंपनियां ही प्राइवेट नर्सिंग होम या क्लिनिक को सूचीबद्ध करती हैं।
मरीजों को इलाज के एवज में पैसा नहीं देना है। बीमा कंपनियां ही संबंधिक हेल्थ सेंटर और क्लिनिक को मरीजों के इलाज के आधार पर पैसों का भुगतान करती हैं। मनोपॉज की अवस्था में पहुंचीं बीपीएल महिलाएं बच्चादानी निकलवा सकती हैं ताकि वे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से बच सकें। अलग-अलग बीमारियों के लिए अलग-अलग खर्च के पैकेज है। हालांकि इस योजना में ओपीडी इलाज का प्रावधान नहीं होना हैरान करने वाला है। इसका अर्थ हुआ कि ऑपरेशन से जुड़े इलाज ही होंगे।

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