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09 अगस्त 2012

माहे रमजान का जुमा अलविदा अलविदा

जी हाँ दोस्तों मेरे भाइयों बुजुर्गों और बहनों इस साल माहे रमजान का जुमा आज है और आज ही के दिन इबादत के साथ इस जुमे को अलविदा कहना है अलविदा इसलियें के वक्त लोट कर नहीं आता और खुदा ने हमे वक्त दिया है इबादत के लियें इसलियें आओ इबादत करो खुदा की इतात करो ..खुदा और उसके रसूल के बताये हुए रस्ते पर चल कर दुनिया में नेकियाँ फेलाओ ..इंसानियत कायम करों एक जन्नत तुम्हे तुम्हारे अखलाक से बनाने के लियें खुदा ने कहा है और दूसरी आखेरत की जन्नत तुहारी इबादत और अखलाक के तराजू में तुलने के बाद तुम्हे खुद मिल जायेगी रोजा मुबारक ..जुम्मा और खासकर अलविदा का जुमा मुबारक ......

हुजूर ने फरमाया कि 'रमजान के महीने में एक ऐसी रात है, जो हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है।' इस रात से मुराद लैलतुल कद्र है। जैसा कि खुद कुरआन मजीद में है कि 'हमने इस कुरआन को शब-ए-कद्र में नाजिल किया है और तुम क्या जानो कि शब-ए-कद्र क्या चीज है। शब-ए-कद्र हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है।' कुरआन इंसान की भलाई और हिदायत का रास्ता दिखाने वाली किताब है।


सच्ची बात तो यह है कि इंसान के लिए इससे बढ़कर कोई दूसरी नेमत हो ही नहीं सकती। इसीलिए कहा गया है कि इंसानी तारीख में कभी हजार महीनों में भी इंसानियत की भलाई के लिए वह काम नहीं हुआ, जो इस एक रात में हुआ है। इस रात की अहमियत के अहसास के साथ जो इसमें इबादत करेगा, वह दरअसल यह साबित करता है कि उसके दिल में कुरआन मजीद की सही कदर और कीमत का अहसास मौजूद है।

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