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23 अगस्त 2012

पैदल यात्रा की ऐसी धुन सवार कि 17 साल से नहीं देखा अपने परिवार का मुंह



जयपुर.पिछले 17 साल से पैदल यात्रा कर रही टोली के 20 सदस्य अपने परिवारवालों का चेहरा तक नहीं देख पाए। वे अपनों से इंटरनेट और डाक के जरिए संपर्क करते हैं। यात्रा का मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, स्कूलों में छात्र-छात्राओं को विश्व शांति, विश्व एकता, भाई-चारा, सद्भावना का संदेश देना और दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं पर घरेलू हिंसा, भ्रष्टाचार, आतंकवाद सहित सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों को जागृत करना है।


उत्तर प्रदेश के लखनऊ से 15 जून 1995 से शुरू हुई सद्भावना यात्रा गुरुवार को गुलाबी नगर पहुंची। टोली अब तक 2.48 लाख किमी. चल चुकी है। अब उसका उद्देश्य 3 लाख किमी पैदल यात्रा कर गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्डस में नाम दर्ज कराना है।

यह यात्रा युवा जागृति जनजागरण अन्तर्वेद सेवा संस्थान के प्रबंध निदेशक महेंद्र प्रताप, जितेंद्र मिश्रा और सदस्य अवध बिहारी लाल के नेतृत्व में आयोजित की जा रही है। यात्रा में 20 युवा सदस्यों सहित तीन महिलाएं शामिल हैं। ये सभी अविवाहित हैं। जितेंद्र ने बताया कि 17 साल में बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत, वर्मा, नेपाल, चाइना सहित भारत के अधिकांश राज्य का यात्रा कर चुके हैं।

महेंद्र प्रताप मिश्रा ने बताया कि लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में पुस्तक दी ह्यूमन स्टोरी ऑफ लांगेस्ट पदयात्रा के नाम से दर्ज हो चुकी है। यात्रा डाक्यूमेंट्री फिल्म के माध्यम से डिसकवरी चैनल पर प्रकाशित हो चुकी है। यात्रा के दौरान लोगों और स्कूली छात्रों के माध्यम से 2 करोड़ पौधे लगा चुके हैं।

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