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21 अगस्त 2012

भाडभूत मेला, चमत्कार के लिए यहां 1 करोड़ लोग मांगेगे मन्नत!


भरूच (गुजरात)। 18 साल में एक बार लगने वाले भाडभूत लोक मेले का श्रीगणोश हो गया है। यह लोकमेला दक्षिण गुजरात का मिनी कुंभ कहलाता है। भाडभूत से पवित्र नर्मदा मैया का अरबसागर में मिलन होता है। भाडभूत में भारेश्वर शिवलिंग है। मान्यता है कि यहां श्रद्घा-भक्तिभाव से पूजा-अनुष्ठान दर्शन करने से भोग-मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं। इस साल स्थानीय प्रशासन भाडभूत मेले में एक करोड़ लोगों के पहुंचने का अनुमान है। पिछली बार साल 1993 में 64 लाख लोगों ने भारेश्वर महादेव के दरबार में पहुंच कर धर्मलाभ अर्जित किया था। शनिवार से आरंभ हुए लोकमेले में अब तक तीन लाख से अधिक श्रृद्घालु दर्शन कर चुके हैं।

रेवाखंड में है महिमागान

वायु पुराण के रेवा खंड के 170वें अध्याय में भारभूतेश्वर महादेव का वर्णन है। यहां विष्णुशर्मा नामक धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था। विष्णुशर्मा के यहां स्वयं भोले शंकर बटुक (बालरूप) में आकर वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था। वे जब वेदों के ज्ञान के लिए ब्राह्मण के यहां पहुंचे थे, वह लोंद की साल का भाद्रपक्ष था। इसलिए जब भी पंचाग गणना के अनुसार लोंद की साल में दो भादों आते हैं, यहां लोकमेला लगता है। यह क्रम 18 साल बाद आता है।

नर्मदा में डुबो दिए थे सहपाठी

कहा जाता है कि ब्राह्मण विष्णुशर्मा के यहां विद्या अध्ययन के लिए आने वाले हर बटुक को सभी काम करने होते थे। काम का बंटवारा नंबर के अनुसार होता था। इसी क्रम में बटुक रूप में आए भोले का नंबर रसोई तैयार करने का आया। उन्होंने रसोई में जाकर कामधेनु का स्मरण कर चुटकियों में रसोई तैयार कर दी। तत्पश्चात अन्य सहपाठी जहां नर्मदा तट पर थे, वहां जा पहुंचे। यह देख अन्य सहपाठी नाराज हो गए बोले, यदि रसोई तैयार नहीं हुई तो तुम्हें नर्मदा में फेंक देंगे।


यह सुन भोले बाबा ने कहा कि यदि रसोई तैयार हो गई होगी तो भी तुम सबके साथ ऐसा ही करूंगा। इसके बाद सभी बटुक आश्रम लौटे, रसोई तैयार देख प्रेम से पेटपूजा की। अगले दिन तय शर्तो के अनुसार बटुक रूप भोले ने अन्य सहपाठी बटुकों को बांध-बांध कर नर्मदा मैया की गोद में फेंक दिया। यह जानकर गुरु विष्णु शर्मा नाराज हुए।
भोले बाबा ने बटुक रूप में नदी तट पर जाकर सभी सहपाठियों को नदी से निकाल कर तट के किनारे रख दिया और ऊपर घास-फूस डाल दी। बाद में घास-फूस के नीचे से सभी सहपाठी बटुक सही सलामत जीवित निकले। बाद में इसी स्थान पर स्वयं-भू शिवलिंग प्रगट हुआ। तभी भोले बाबा ने प्रगट होकर कहा कि जहां मैंने घास-फूस रखी, वहां शिवलिंग प्रगट हुआ है। यह भारभूतेश्वर के नाम से विख्यात होगा। यहां जो श्रृद्घा-भक्तिभाव से पूजन करेगा उसे भोग-मोक्ष दोनों की प्राप्ति होगी।

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