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15 जुलाई 2012

क्या सांप लेते हैं बदला? जानिए कितना है सच


हिन्दू धर्म में सावन माह शिव भक्ति का शुभ काल है। इस काल में शिव और उनके नाम, स्वरूप और शक्तियों का अलग-अलग रूपों, तरीकों से स्मरण किया जाता है। भगवान शिव को कालों का काल भी माना गया है। शंकर के गले में नाग का हार पहनना और कंठ में विष उतार नीलकंठ बन जाना इस बात का प्रमाण है। सर्प भी काल का ही रूप माना गया है।

यही कारण है कि सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी के पुण्य काल में नागपंचमी (23 जुलाई) पर नागों को देवता रूप में पूजकर सुख-शांति की कामना की जाती है। यह दिन नाग जाति के जन्म का भी माना गया है। नाग भक्ति की प्राचीन परंपरा में वक्त के बदलाव के साथ कुछ किवदंतियों, घटनाओं, लोक मान्यताओं और दुष्प्रचार के चलते नाग जाति के व्यवहार से जुड़ी कुछ भ्रांतियां और अंधविश्वास भी जुड़े।

इन बातों से पैदा भय ने जहां एक तरफ नाग जाति के प्रति हिंसा को बढ़ावा दिया, बल्कि भय की वजह से नाग पूजा पर प्रश्रचिन्ह भी लगाए।

सांपों से ही जुड़ी एक प्रचलित लोक मान्यता है कि सांप अपने साथी की मौत का बदला लेते हैं। यह भी कहा जाता है कि नाग को मारने पर नागिन की आंखों में मारने वाले की तस्वीर उभर आती है, जिसके जरिए वह संबंधित को ढूंढकर डसती है। क्या वाकई सर्प बदला लेते हैं? जानिए विज्ञान के नजरिए से इससे जुड़ा सच-

असल में, सांपों की ध्राण शक्ति यानी सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है। प्राकृतिक रूप से भी सर्प अपने शरीर से एक खास तरह की गंध वाला पदार्थ छोड़ते हैं, जिसे फेरामोन नाम से भी जाना जाता है। सूंघने की तेज क्षमता व गंध के प्रति संवेदनशील होने के कारण काफी दूर से आ रही इस गंध को सूंघकर वह सांप साथी से संपर्क या पहचान कर उस स्थान पर जा सकता है।

चूंकि सावन माह में बारिश का मौसम सांपो के मिलन और सक्रियता का काल होता है। वहीं मानव भी इसी वक्त दैनिक कामकाज या खेतीबाड़ी के चलते सांपो का सामना करता है। यही वजह है कि सांप साथी को आकर्षित करने के लिए या फिर मानव द्वारा भय के कारण हमला करने पर शरीर से विशेष गंधयुक्त पदार्थ छोड़ते हैं।

इस तेज और विशेष गंध के द्वारा दूसरा सर्प संबंधित स्थान पर या उस साधन तक पहुंच सकता है, जिसके द्वारा सर्प को मारा गया है। सर्प के इसी व्यवहार को कालान्तर में बढ़ा-चढ़ाकर सांप के बदला लेने की भावना से जोड़ दिया गया। वैज्ञानिक शोध भी इस तरह की भावना मानसिक धरातल पर सरिसर्प जाति में संभव नहीं मानता।

वहीं मानव भावनाओं और मानसिक स्तर पर सांप से कही अधिक विकसित है। इसलिए उसका यह कर्तव्य है कि सांप को अपनी ही तरह कुदरत का हिस्सा मानकर धामिक भावनाओं को कायम रखने के साथ यथासंभव सर्प जाति की प्राण रक्षा का संकल्प ले, न कि अंधविश्वास में डूबकर स्वयं के साथ पर्यावरण को असंतुलित करे।

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