लगभग लुप्त हो चुकी इस प्रजाति को यहां भोजन, पानी की सुविधा के साथ प्राकृतिक माहौल मिल रहा है। दुर्लभ तोतों की नेस्टिंग होने से वंशवृद्धि होने लगी है। सीवी गार्डन में करीब 20 तोते नजर आए हैं, जो पेड़ की टहनियों व झुरमुटों में रहते हैं। दरा सेंचुरी में भी इस प्रजाति के तोते देखे आए हैं।
पहचान: यह विशेष प्रकार का तोता होता है जिसके पेट पर येलो ग्रीन पंख होते हैं। इसे पानी में नहाने का शौक होता है। मेल में गर्दन पर काला पट्टा व मादा में पट्टा नहीं होता है। चोंच लाल व पंख नीले हरे होते हैं।
सोने के पिंजरे में भेंट किया था हुमायू को
इतिहासविद् ललित शर्मा बताते हैं कि गुजरात के शासक बहादुरशाह ने हुमायूं को सोने के पिंजरे में गागरोनी तोता भेंट किया था। 15 वीं शताब्दी में अचलदास खींची के शासन में गागरोनी तोते बारूद की छोटी तोप तक चलाते थे। झालावाड़ के गागरोन किले के पीछे आमझर के जंगल में बड़ी संख्या में ये तोते पाए जाते थे। इंसान की तरह बोलने व दिखने में सुंदर होने से लोग कोटरों में से घर लाकर पालने लगे। पालने में अधिक रुचि होने से धीरे-धीरे इन पर संकट हो गया।
संकटग्रस्त प्रजाति विश्व में
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल र्सिोसेस न्यूयॉर्क (आईयूसीएन) ने अलेक्जेंडर पैराकीट (गागरोनी तोते) को संकटग्रस्त माना है। ऐसे में इन्हें बचाना जरुरी हैं। इसी तरह की प्रजाति के तोते देश में हैदराबाद व आंध्रप्रदेश में पाए जाते हैं।
अनुकूल हैं सीवी गार्डन व दरा
सीवी गार्डन व दरा सेंचुरी एरिया में इन्हें देखा गया है। पानी, भोजन सहित अन्य सुविधाओं के कारण यह जगह मुफीद है। एमएससी वाइल्ड लाइफ स्टूडेंट्स योगेश जांगिड़ ने बताया कि सीवी गार्डन में करीब 20 गागरोनी तोते हैं। इन्होंने यहां अपना बसेरा बना लिया है। डॉ. कृष्णोंद्रसिंह नामा ने बताया कि दरा सेंचुरी में लक्ष्मीपुरा, झामरा, कोलीपुरा, रावठा रामसागर में गागरोनी तोते हैं।
जानिए गागरोनी तोते को
: नाम अलेक्जेंडर पैराकीट
: खासियत इंसान की तरह बोलना
: नेस्टिंग दिसंबर से अप्रैल के बीच
: वैरायटी भारत में दो प्रकार की
: पंखों की लंबाई साढ़े 7 से 8 इंच
: पूंछ की लंबाई साढ़े 8 से 14 इंच
: वजन 200 से 300 ग्राम
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