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22 जुलाई 2012

'शरीयत और सूफीवाद के खिलाफ है फिल्म की सफलता की दुआ मांगना'

अजमेर.दरगाह ख्वाजा साहब के सज्जादानशीन सैयद जैनुअल आबेदीन ने फिल्मी कलाकारों, निर्माता और निर्देशकों द्वारा फिल्मों और धारावाहिकों की सफलता के लिए गरीब नवाज के दरबार में मन्नत मांगने को शरीयत और सूफीवाद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ करार देते हुए ऐसे कृत्यों को नाकाबिले बर्दाश्त बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों और शरीयत के जानकारों की खामोशी चिंताजनक है। इधर, खादिमों ने आबेदीन के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इस कृत्य को सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा करार दिया है।

दीवान आबेदीन ने बयान जारी कर बताया ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती आध्यात्मिक संत थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन कुरान और इस्लामी शरीयत को आत्मसात करके लोगों को कानूने शरीअत के मुताबिक जिंदगी बसर करने का संदेश दिया।

दीवान ने कहा कि इस्लाम में नाच गाने, चित्र, चलचित्र, अश्लीलता को हराम करार दिया गया है। गरीब नवाज ने लोगों को इन सामाजिक बुराइयों से दूर रहकर शरीयत के मुताबिक इबादत इलाही में व्यस्त रहने की हिदायत दी। आज गरीब नवाज के मिशन को दरकिनार करके उनके दरबार में इन गैर शरई कार्यो के लिए मन्नतें मांगी जा रही हैं । फिल्में रिलीज करने से पहले मजार पर पेश की जाकर फिल्म की कामयाबी के लिए दुआएं की जा रही हैं।

व्यवसायिकता, प्रचार के लिए इस्तेमाल

उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि इस पवित्र स्थल का इस्तेमाल आस्था और अकीदत के बजाय केवल व्यवसायिकता, प्रचार प्रसार और ख्याति प्राप्त करने के लिए किया जाना गलत एवं नाजायज है। इसलिए फिल्मी हस्तियों निर्माता और निर्देशकों को धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले ऐसे किसी भी कार्य से परहेज करना चाहिए।

नाजायज कार्यो के लिए नहीं मांगें दुआ

आबेदीन का कहना है कि वे बॉलीवुड कलाकारों या फिल्म कारोबार से जुड़े लोगों के खिलाफ नहीं हैं। फिल्मों की सफलता के लिए न सिर्फ ख्वाजा साहब की दरगाह पर बल्कि किसी अन्य मजहब के धर्म स्थल पर भी इस तरह मन्नतें नहीं मांगनी चाहिए, क्योंकि किसी भी धर्म में नाजायज करार दिए गए कार्यो के लिए इस तरह की इजाजत नहीं है।

सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा

-दरगाह दीवान का यह बयान सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा मात्र है। तीन चीजें हैं जो सबको स्पष्ट होना चाहिए। पहली बात यह कि जो भी जायरीन आता है उसके जियारत का हक केवल खादिमों को है। इसमें दीवान का कोई रोल नहीं होता। गरीब नवाज खुदा के वली हैं और उनका आस्ताना हर मजहब के लिए खुला है। जिसने भी जो भी मांगा यहां से मिला है।

तीसरा यह कि दीवान हमेशा अपने आपको दरगाह का हैड शो करना चाहते हैं, जबकि दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के मुताबिक खादिम, दरगाह दीवान और दरगाह कमेटी के अपने कार्यक्षेत्र हैं। एक्ट के मुताबिक दरगाह दीवान कमेटी के मुलाजिम हैं और 200 रुपए महीना उनका वेतन हैं। हैड सिर्फ ख्वाजा गरीब नवाज हैं।

बरसों से यहां सेलिब्रिटी, राजनीतिज्ञ और वीवीआईपी जियारत को आ रहे हैं। मशहूर अभिनेता राजकपूर अपनी फिल्म को रिलीज करने से पहले पेटी दरबार में लाते रहे हैं। दिलीप कुमार दरगाह कमेटी के सदस्य रह चुके हैं। महबूब ने अजमेर में ही कोठी बना ली थी। जब भी जियारत को आते वे यहां रुकते थे और अब ए आर रहमान ने भी यहां कोठी खरीद ली है। यह सब अकीदत के मामले हैं।

सैयद सरवर चिश्ती, पूर्व सचिव व विपक्षी गुट के अगुवा, अंजुमन सैयदजादगान

जायरीन की मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान दें

-ख्वाजा साहब का दरबार सभी 36 कौमों के लिए है। हर आदमी अपनी अकीदत से यहां आता है। उसकी मन्नत और दुआ पर आपत्ति सही नहीं है। दीवान को इस तरह के मुद्दे उठाने के बजाय जायरीन की मूलभूत सुविधाओं की ओर ध्यान देना चाहिए।

एस नसीम अहमद चिश्ती, सहसचिव, अंजुमन शेखजादगान

यहां भेदभाव नहीं

-ख्वाजा साहब के दरबार में कोई भेदभाव नहीं है। हर आने वाला अपनी मुराद लेकर आता है। यह दिल के मामले हैं और दिल पागल होता है। ये दीवान का मीडिया स्टंट मात्र है।

सैयद कुतुबुद्दीन सखी, खादिम

1 टिप्पणी:

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि
    खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम
    इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग
    भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.

    ..
    My webpage ; संगीत

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