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21 जुलाई 2012

ईद के चाँद को लेकर नियम का उलंग्घन क्यूँ

दोस्तों खुदा और खुदा की बनाई गयी कुदरत के नियमों का अनुशासित रूप से पालन ही एक मुसलमान का धर्म है और खुदा ने अपना फरमान ..नीति नियम कुरान मजीद ..हदीस ..सुन्नत और रिवायतों के जरिये आम मुसलमानों तक पहुंचा दिए है .....इनकी पालना हर मुसलमान के लियें जरूरी है और जो लोग इन नीति नियमों के पालन का प्रचार प्रसार करते है वोह आलिम लोग हुआ करते है ..बाक़ी और मामले तो अलग बात है लेकिन ईद और रमजान के चाँद और तारीख को लेकर कई इख्त्लाफत है..... वेसे तो हमारे देश में शरियत कानून लागू नहीं है ..लेकिन अंग्रेजों का बनाया हुआ काजी कानून १८६७ से आज तक चल रहा है ...हर जिले में एक काजी होते है जो ईद की नमाज़ भी पढ़ते है और शरियत के मसले मसाइल सुलझाते है .......काजी हो या इमाम वोह आम मुसलमानों का होता है लेकिन भाइयों मेरी समझ में नहीं आया के जयपुर में एक चीफ काजी है तो वोह किन के चीफ है और उन्हें चीफ काजी का दर्जा किन काजियों ने दिया यह किसी को पता नहीं है ..इसी तरह से दिल्ली के शाही इमाम नवाबों के शाही ठाठ चले गए लेकिन इमाम आज भी छोड़ गए अब यह लोग ईद और रमजान का फेसला जब अंग्रेजियत के हिसाब से टी वी की गवाही के हिसाब से करते है तो अफ़सोस होता है चाँद दिखने का फेसला काजी को केसे करना है यह शरियत में पाबंदी से लिखा है लेकिन यह सरकारी लोग सरकार के इन्तिजामं के नाम पर दबाव में आते है और कहीं भी दूर दराज़ टी वी की चन्द की शहादत को मानकर एलान कर देते है सीधी सी बात है जब कानून है तो फिर उसको तोड़ केसे सकते है या तो चाँद दिखे या फिर चाँद देखने वाले शहादत दें तभी यह फेसला हो सकता है लेकिन अंदाज़े के आधार पर यह फेसला क्या इस्लामिक कहा जा सकता है ..मशीने ..आअधुनिकिकरन चाहे कितना ही हो लेकिन इस्लाम का नियम कभी टूट नहीं सकता ..ज्जेसे एक मोहल्ले में तीन मस्जिदे है लेकिन वहः माइक पर एक मस्जिद की अज़ान ही सभी मस्जिदों में जाती है लेकिन इस अज़ान से दूसरी मस्जिद में नमाज़ नहीं होती उस मस्जिद की अज़ान अलग होई ऐसे ही चाँद का मसला है क्योंकि यही हमारा दिन हमारी तारीख और हमारे त्यौहार निर्धारित करता है तो फिर यह मनमानी सही है या गलत कोई तो बताओ ...............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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