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10 जून 2012

बदल सकता था महाभारत का अंत अगर न चली गई होती एक चाल!

बात उस समय की है जब पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध चल रहा था। उस समय भीम के पुत्र घटोत्कच व नाग कन्या अहिलवती के पुत्र बर्बरीक ने अपनी मां से इस युद्ध में भाग लेने की अनुमति मांगी। बर्बरीक की मां ने उसे युद्ध में भाग लेने की अनुमति देते हुए कहा कि वह युद्ध में उस पक्ष का साथ देगा जो निर्बल होगा।अपनी माता से आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध के लिए निकल गए। उस समय उसके तरकश में मात्र तीन ही बाण थे जो कि उन्हें भगवान शिव से वरदान स्वरुप मिले थे।वे इन तीनो बाणों से तीन लोक जीत सकते थे।

जब बर्बरीक युद्ध के लिए चले जा रहे थे तभी उन्हें ब्राह्मण वेशधारी भगवान कृष्ण मिले और उन्होंने सवाल किया कि वे सिर्फ तीन बाण लेकर युद्ध में क्या करेंगे, इस पर बर्बरीक ने कहा कि वे इन तीन बाणों से ही सारे ब्रह्माण्ड को हिलाने का हौसला रखते हैं। तब भगवान कृष्ण ने परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक पीपल के पेड़ की और इशारा करते हुए कहा- यदि ऐसा है तो वे इस पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक ही बाण से भेद कर दिखाएं। बर्बरीक ने बाण चलाया और सभी पत्तों को भेद दिया, पेड़ के सभी पत्तों को भेदने के बाद वह बाण कृष्ण के पैर के चक्कर लगाने लगा। बर्बरीक समझ गए कि कृष्ण के पैर के नीचे पीपल का पत्ता दबा हुआ है, उन्होंने कृष्ण से कहा- आप अपना पैर हटा लीजिये नहीं तो वह घायल जो जाएगा।

भगवान कृष्ण इस वीर की वीरता देखकर प्रसन्न हुए और पूछा कि वे युद्ध में किसकी ओर से भाग लेंगे, बर्बरीक ने कहा माता ने कहा है जो पक्ष निर्बल होगा उसी का साथ देना। उस समय कौरव युद्ध हार रहे थे, कृष्ण यह सोचकर चिंता में पड़ गए कि यदि बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया तो पांडव हार जायेंगे और उन्होंने बिना समय गंवाए बर्बरीक से उसका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक ने हंसते हुए अपना शीश काटकर कृष्ण को दे दिया। शीश देने से पहले बर्बरीक ने कहा कि वे इस युद्ध को पूरा देखना चाहते हैं तब कृष्ण ने बर्बरीक का शीश युद्ध स्थल के पास सबसे ऊंचे स्थान पर रख दिया। कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वे कलयुग में खाटू श्याम के नाम से पूजे जाएंगे और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करेंगे।


राजस्थान के सीकर जिले में खाटूश्याम का मंदिर इसी वीर बर्बरीक का है जहां दूर-दूर से भक्त आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ती के लिए मन्नत मांगते हैं।ऐसा कहा जाता है खाटूश्याम जी का यह स्थान वही है जहां भगवान कृष्ण ने युद्ध देखने के लिए बर्बरीक का शीश रखा था।

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