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04 जून 2012

आर्थिक बदहाली के पांच सुबूत: मनमोहन ने बजाई खतरे की घंटी

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नई दिल्ली. देश की खराब आर्थिक हालत मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के गले की फांस बन गई है। यही वजह है कि यूपीए सरकार चिंतित है और मौजूदा खस्ता हालत से बाहर निकलने का रास्ता तलाशने की कोशिश कर रही है। इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री ने मंत्रियों की बैठक बुलाई है। सोमवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश मुश्किल आर्थिक दौर से गुजर रहा है। बैठक में कांग्रेस के कई नेताओं ने बढ़ती महंगाई पर चिंता जाहिर की।

देश की खस्ता आर्थिक हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश की विकास दर 9 फीसदी से घटकर 5.3 फीसदी पर पहुंच गई है। सरकार के खर्च का एक बड़ा हिस्सा कर्ज का ब्याज देने (2.8 खरब रुपये), रक्षा पर खर्च (1.8 खरब) और सब्सिडी (2.2 खरब रुपये) के तौर पर होता है। फिक्की के अध्यक्ष आरके कनोरिया ने कहा कि ऐेसी हालत में बढ़ते सरकारी घाटे के मद्देनजर देश की विकास की रफ्तार सुस्त पड़नी तय है।

दूसरी तरफ, मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने सोमवार को कहा कि खराब आर्थिक हालत और यूपीए सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते अगले आम चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई वाली इस सरकार का हारना तय है। अपनी बात को मजबूती देने के लिए उन्होंने कहा, '1975 में शुरू हुए आपातकाल के दौरान जब महंगाई और भ्रष्टाचार चरम पर था, सत्ता में परिवर्तन में हुआ था। 1987-89 में भी ऐसी ही स्थिति थी और तब भी सत्ता में परिवर्तन हुआ था। महंगाई और भ्रष्टाचार चरम पर है और सरकार बदलनी तय है। ऐसे में 2014 में भी ऐसा ही होगा।'

प्रधानमंत्री को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा, 'अर्थशास्त्री होने के बावजूद मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर नहीं ला सके। अनिर्णय और नीतियां बनाने और उनका पालन न होने के चलते भारत के विकास की कहानी खत्म हो गई। कारोबारियों की अगुवाई के चलते भारत ने जबर्दस्त आर्थिक तरक्की की थी। देश के विकास की दर 9 फीसदी तक पहुंचाने में भारतीय उद्योगपतियों की कामयाबी का अहम योगदान था। लगातार खराब होती देश की माली हालत सिर्फ यही संकेत देती है कि आने वाला समय देश के लिए कैसा होगा। यूपीए ने देश की आर्थिक तरक्की का गला घोंट दिया।'

लेकिन राहत की उम्मीद भी!
मौद्रिक नीति के मोर्चे पर आम लोगों के लिए राहत की उम्मीद दिख रही है। रिजर्व बैंक ने आज संकेत दिया है कि ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है। बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने कहा, 'आर्थिक विकास दर में गिरावट और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की गिरती कीमत के चलते ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है। विकास दर में गिरावट का महंगाई पर सीधा असर पड़ सकता है, जिससे इसमें गिरावट आ सकती है।'

मौजूदा अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए फिक्की ने एक्शन प्लान सुझाया है। इसके अहम बिंदु हैं:
-डीजल और अन्य उत्पादों के दाम पर से सरकारी नियंत्रण खत्म हो।
-एफडीआई पर नीति में बदलाव को लागू करो। इसे मल्टी ब्रैंड रिटेल, सिविल एविएशन जैसे क्षेत्रों में लागू किया जाए।
-भूमि अधिग्रहण बिल को मौजूदा स्वरूप में पास हो।
-मौद्रिक नीति में परिवर्तन कर ब्याज दर में 200 बीपीएस और सीआरआर 100 बीपीएस की कटौती हो।
-जीएसटी को जल्द से जल्द लागू करने की कोशिश की जाए।

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