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04 जून 2012

जेके लोन कोटा : आठ माह में 331 नवजात शिशुओं की मौत

जेके लोन:कोटा माह में 331 नवजात शिशुओं की मौत

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कोटा. संभाग के सबसे बड़े शिशु अस्पताल जेकेलोन में बीते आठ महीने (सितंबर 2011 से अप्रैल 2012) में 331 नवजात शिशुओं की मौत हुई है। राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी जननी शिशु सुरक्षा योजना को शुरू हुए इतना ही वक्त हुआ है। यही नहीं, इस वर्ष के शुरुआती चार माह में ही 154 शिशु मौत के मुंह में जा चुके हैं।

यह आंकड़ा बीते वर्षो में हुई मौतों से थोड़ा ही कम है। वर्ष 2009 में 375 तथा 2010 में 186 नवजात शिशुओं की मौत जेके लोन अस्पताल में हुई थी। सवाल उठता है कि जब इस साल के चार महीनों का आंकड़ा 154 है तो सालभर यही सिलसिला चला तो मौतों का आंकड़ा 450 से 500 के बीच बैठेगा।
सितंबर 2011 23
अक्टूबर 35
नवंबर 65
दिसंबर 54
जनवरी 2012 28
फरवरी 33
मार्च 51
अप्रैल 42
(वर्ष 2012 के चार माह में 154 नवजात की मौत, आठ माह में कुल 331 मौत)
वर्ष 2009 की स्थिति
जनवरी 27
फरवरी 23
मार्च 33
जून 44
जुलाई 28
अगस्त 42
सितंबर 42
अक्टूबर 39
नवंबर 31
दिसंबर 20
( वर्ष 2009 में कुल 375 नवजात शिशुओं की मौत)
वर्ष 2010 में हुई मौत
जनवरी 19
फरवरी 9
मार्च 14
अप्रैल 10
मई 14
जून 19
जुलाई 18
अगस्त 17
सितंबर 25
अक्टूबर 13
नवंबर 16
दिसंबर 12
( वर्ष 2010 में कुल 186 नवजात शिशुओं की मौत)

प्री मैच्योर डिलीवरी, कम वजन, गंभीर रैफर बच्चे

जेके.लोन अस्पताल के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. आरके.गुलाटी ने बताया कि संभाग के चारों जिलों व सीमावर्ती क्षेत्रों से गंभीर स्थिति में बच्चों का रेफर होकर आना, प्रीमेच्योर डिलीवरी, जन्म के तुरंत बाद श्वास नहीं आना, मिकोनियम एस्पिरेशन सिंड्रोम, सेप्टीसिमिया नवजात शिशुओं की मौत के प्रमुख कारण हैं।

बैड व नर्सिग स्टाफ की कमी

जेके.लोन अस्पताल के अधीक्षक डॉ.आरपी रावत का कहना है कि जननी शिशु सुरक्षा योजना लागू होने के बाद जहां एक और आउटडोर में 40 से 50 प्रतिशत तथा इनडोर में 8 से 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन बैड व नर्सिग स्टाफ नहीं बढ़ा है। इसके कारण वार्डो में भर्ती मरीजों की सारसंभाल पर असर पड़ता है। बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण गंभीर स्थिति में बच्चों को रैफर करना है।
यह होना चाहिए
जेके लोन में करीब 15 सीनियर डॉक्टर हैं। इतने ही जूनियर डॉक्टर की जरूरत है।
शिशु विभाग के वार्डो के लिए लगभग 23 नर्सिगकर्मी हैं, जबकि होने लगभग 50 चाहिए।
संक्रमण को रोकने के लिए दो बच्चों के बीच दूरी पर्याप्त हो।
रात्रि में एमओ व रेजीडेंट के साथ सीनियर डॉक्टरों की भी ड्यूटी लगे।
इमरजेंसी वार्ड अलग से बनाया जाए, जिसमें वेंटीलेटर, आईसीयू, ओपन केयर सिस्टम, इन्फ्यूजन पंप, मल्टी पेरा मॉनीटर, पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड, डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ होना चाहिए।

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