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01 मई 2012

अदालतों में साढ़े तीन करोड़ पेंडिंग केसों का केसे निपटारा हो सकेगा

दोस्तों कन्द्रीय विधि आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में देश भर की निचली अदालतों में साढ़े तीन करोड़ मुकदमे चलना माना है ..इसके लियें विधि आयोग ने हाईकोर्टों को भी ज़िम्मेदार मानते हुए सुझाव दिया है के देश की हाईकोर्टों को निचली अदालतों की कार्यशेली और मुकदमों के निस्तारण के मामले में निगरानी समितियां बनाई चाहिए जो नहीं बनाई गयी है ,,,,,,,देश में हमेशा सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट निचली अदालतों के मुकदमों की संख्या की बाद करती है लेकिन खुद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के मुकदमों की संख्या और शीघ्र निस्तारण के बारे में कोई चर्चा नहीं होती ..विभिन्न राज्यों की हाईकोर्ट में कई जजों के पद रिक्त हैं निचली अदालतों में पद रिक्त है लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट प्रशासन और केंद्र व् राज्य्सर्कारें गंभीर नहीं है सरकारों ने सेठी आयोग की रिपोर्ट भी लागू नहीं की है ..एक तरफ तो निचली अदालतों में अधिकारी नहीं ..बेठने और फाइलें रखने के लियें सुविधाएं नहीं स्टाफ नहीं और फिर जो अधिकारी हैं उन पर आंकड़ों का दबाव तो कुछ समझ में नहीं आता ..निगरानी समितियां जो होना चाहिए जिनका कार्य तार्किक प्रबंधकीय हो वकील ऑफ़ बार कोंसिलें भी उसमे भागीदार हो तभी यह कार्य सम्भव है ...............निचली अदालतों में पक्षकारों ..वकीलों को जो मामूली सी असुविधाएं होती है उनमे से क्रमवार ससे पहले एक परेशानी पेश है ......................माननीय न्यायालयों में नक़ल विभाग में नक़ल के आवेदन के बाद अनेक न्यायालयों के सम्बंधित बाबुओं द्वारा आवेदन पत्र पहुंचने के बाद भी पत्रावली अकारण ही रोक ली जाती है और निर्धारित समयावधि में पत्रावली नहीं भेजी जाती अनेक बाबुओं द्वारा तो पत्रावली कोनसी मंगाई गई है उसकी जानकारी मिलने के बाद भी आवेदन पत्रों पर पत्रावली क्रमांक सही नहीं होने ..सीगा अंकित नहीं होने जेसे कई हास्यास्पद आपत्तियां दर्ज आर आवेदन पत्र वापस नकल विभाग में बिना पत्रावलियों के भेज दिए जाते है .......और इससे अनावश्यक वकीलों ..पक्षकारों ..नकल विभाग व् बाबुओं का कार्य बढ़ता है जिसकी वजह से दिक्क़तों का सामना करना पढ़ता है इसके लियें यथासम्भव संबधित बाबुओं को बिना किसी अटकल के निर्धारित समयावधि तय कर पत्रावली भिजवाने के निर्देश जारी करे ..और उक्त उलग्घन पर संबद्धित बाबुओं के खिलाफ कार्यवाही भी किये जाने का प्रावधान हो ताकि अनावश्यक परेशान नहीं किया जाए .इसी तरह से छोटे मामलों में पुलिस अनावश्यक प्राणघातक हमले का मुकदमा दर्ज कर लेती है अभियुक्त गिरफ्तार होता है सामान्य प्रक्रति की चोट होती है लेकिन अभियुक्त सेशन ट्रायल के नाम पर जेल भेजा जाता है दुसरे दिन उसकी जमानत होती है अदालत के अनावश्यक काम बढ़ते है ..पुलिस चालान पेश करती है ऐसे मामले सेशन ट्रायल होने की वजह से कमीत किये जाते है फिर यही मामले वापस डिस्चार्ज होकर निचली अदालतों में आते है इसमें अदालतों का काफी वक्त बर्बाद होता है साथ ही प्रथम बार चालान के वक्त दुबारा जमानत भरवाने का प्र्वव्धन भी काम को लम्बा करता है जबकि जमानत पुलिस पहले ही लेकर अभियुक्त को पेश करती है ऐसी कमी को दूर करने पर भी काफी अदालतों का वक्त बचाया जा सकता है और फिर अदालतों में अगर कमरे लगाये जाए जिसकी सी दी वकील या पक्षकार को देने का प्रावधान हो सुबह अदालत शुरू होने से अदालत बंद होने तक का रिकोर्ड उसमे हो तो इजलास में अधिकारी ..वकील रीडर टाइपिस्ट क्या कर रहा है सभी की पोल खुलने के दर से वोह लोग बहतर ओत्र तत्पर कार्य करेंगे ..............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. जरूरी बात उठाई गई है।
    वकील अक्सर हड़तालें करते हैं लेकिन न्यायालयों, न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने, आवश्यक सुविधाएँ बढ़ाने के लिए संघर्ष क्यों नहीं करते?

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