आर्किलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया उत्तरी क्षेत्र के निदेशक मुहम्मद केके ने बताया कि इस इमारत को सबसे ज्यादा नुकसान 18वीं सदी में हुआ। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर तो इस मकबरे का पुनर्निर्माण होना चाहिए, जिससे इस इमारत की आयु को बढ़ाया जा सके। जानकारी हो कि अकबर के नावरत्नों में शामिल रहीम का यह मकबरा मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल में बनाया गया था और 18वीं सदी में इसके बलुआ पत्थर और संगमरमर को निकालकर सफदरजंग के मकबरे में लगा दिया गया था। इस वजह से इसके इतिहास और पुनर्निर्माण को लेकर अटकलें हमेशा बनी रहीं।
इस विषय पर शिक्षाविद् फिरोज बख्त अहमद का कहना है कि ऐसी बातें कह कर एएसआई अपनी जिम्मेदारियों से बच रही है। उन्होंने कहा कि इन स्थलों पर साल में एक बार कवि की याद में कार्यक्रम होने की अनुमति हो तो इन स्थलों के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ेगी और यहां साफ सफाई के साथ लोगों का आना-जाना भी होगा। उन्होंने कहा कि गालिब की तुलना में इन फनकारों के साथ हमेशा से भेदभाव किया जा रहा है। रहीम के मकबरे के समीप ही सूफी संत ख्वाजा निजामुद्दीन ऑलिया की दरगाह, उनके शिष्य कवि और संगीतज्ञ अमीर खुसरो की मजार, उर्दू के नामचीन शायर मिर्जा गालिब की मजार और देश में तैमूर शैली का एकमात्र स्थापत्य मौजूद है।
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