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20 मई 2012

कौन थी सावित्री, यमराज के कैसे लाई अपने पति के प्राण?


ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वटसावित्री व्रत करने का विधान है। इस दिन सावित्री व सत्यवान की कथा सुनने का विशेष महत्व है। यह कथा इस प्रकार है-

किसी समय मद्रदेश में अश्वपति नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी कन्या का नाम सावित्री था। सावित्री जब बड़ी हुई तो उसने पिता के आज्ञानुसार पति के रूप में राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को चुना। राजा द्युमत्सेन का राज-पाठ जा चुका था और वे अपनी आंखों की रोशनी भी खो चुके थे। वे जंगल में रहते थे। जब यह बात नारदजी को पता चली तो उन्होंने अश्वपति को आकर बताया कि सत्यवान गुणवान तो है लेकिन इसकी आयु अधिक नहीं है। यह सुनकर अश्वपति ने सावित्री को समझाया कि वह कोई और वर चुन ले लेकिन सावित्री ने मना कर दिया।

तब अश्वपति ने विधि का विधान मानकर सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया। सावित्री अपने पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगी। नारदजी के कहे अनुसार सत्यवान की मृत्यु का समय निकट आ गया तो सावित्री व्रत करने लगी। नारदजी ने जो दिन सत्यवान की मृत्यु का बताया था उस दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल में गई। जंगल में लकड़ी काटते समय सत्यवान की मृत्यु हो गई और यमराज उसके प्राण हर कर जाने लगे। तब सावित्री भी उनके पीछे चली।

सावित्री के पतिव्रत को देखकर यमराज ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब सावित्री ने अपने अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति, ससुर का खोया हुआ राज्य आदि सबकुछ मांग लिया। इसके बाद सावित्री ने यमराज से सत्यवान के सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान भी मांग लिया। वरदान देकर यमराज ने सत्यवान की आत्मा को मुक्त कर दिया और सत्यवान पुन: जीवित हो गया।

इस तरह सावित्री के पतिव्रत से सत्यवान फिर से जीवित हो गया और उसका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया। वटसावित्री व्रत के दिन सभी सुहागिनों को यह कथा अवश्य सुननी चाहिए।

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