आज का समय रफ्तार और भाग-दौड़ से भरा है। शास्त्रों में युगों पहले लिखी बातों का भी सार यही है कि कलियुग में कामनाओं का बोलबाला होगा। ऐसा देखा गया है कि जरूरत, अपेक्षा, महत्वाकांक्षा, स्वार्थ व अनेक रूपों में इच्छाएं मन-मस्तिष्क पर सवार होती हैं। इन कामनाओं को पूरा करने के लिए ही तन व मन गतिशील रहते हैं। इच्छापूर्ति सुखी व शांत रखती है, तो अभाव दोष पैदा करता है।
बहरहाल, आज के दौर पर गौर करें तो अधूरी इच्छाओं से पैदा कुंठा या कलह ही इंसान पर हावी दिखाई देता है, जिससे निराशा और असफलता में डूबा इंसान खुद को सबसे बदनसीब या दु:खी मानने लगता है। ऐसी मनोदशा से बचना या बाहर निकलने के लिए शास्त्रों में कुछ ऐसे सवाल बताए गए हैं, जिनको पढ़कर कोई भी इंसान व्यावहारिक जीवन को समझने और जीने के तरीके में हो रही चूक को जान तनावों की कई वजहों को खुद-ब-खुद दूर कर सकता है। जानें और सीखें क्या हो जीवन के प्रति नजरिया?
लिखा गया है कि -
कस्य दोष: कुले नास्ति व्याधिना को न पीडित:।
केन न व्यसनं प्राप्तं श्रिय: कस्य निरन्तरा:।।
कोर्थं प्राप्य न गर्वितो भुवि नर: कस्यापदो नागता:
स्त्रीभि: कस्य न खण्डितं भुवि मन: को नाम राज्ञां प्रिय:।
क: कालस्य न गोचरान्तरगत: कोर्थी गतो गौरवं
को वा दुर्जनवागुरानिपतित: क्षेमेण यात: पुमान्।।
इन श्लोको में बताए सवाल व्यर्थ तनाव व दबावों से बाहर निकाल जीने का हौंसला देते हैं। इसलिए खुद से पूछें ये सवाल, कि -
- किसका कुल दोषरहित है?
- कौन रोगमुक्त है?
- किसकी धन-संपदा स्थायी है?
- कौन धनवान बनने पर अहं से बचा रहता है?
- किस पर संकट नहीं आए?
- स्त्रियां किसके मन को विचलित करने या कलह का कारण नहीं बनी?
- राजाओं या सत्ता का कौन प्यारा रहा?
- कौन काल से बचा रहता है?
- किसका स्वाभिमान नष्ट नहीं हुआ?
- कौन दुर्जन के अधीन रहकर आसानी से और दक्षतापूर्वक आजीविका प्राप्त कर सकता है?
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