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18 मई 2012

जुम्मे की नमाज़ में क्या ऐसा अनुशासन .........अनुशासन कहलाता है

दोस्तों अस्स्लामोअलेकुम आज जुम्मा था जुम्मा मुबारक हो शुक्रवार था इसलियें खुदा का शुक्रिया भी अदा क्या है ..में अपनी बात कहाँ से शुरू करूँ और कहा खत्म करूँ समझ नहीं आता .मुझे यह भी समझ नहीं आता के इस सच से कितने लोग मुझसे नाराज़ होंगे और कितने लोग मुझ से इत्तिफाक रख कर मेरी बात को आगे बढ़ाएंगे लेकिन डरना तो सिर्फ खुदा से डरना अपनों और परायों का क्या इन्हें तो मना लेंगे इसलियें माफ़ी के साथ निहायत ही अदब से अर्ज़ है के आज जुम्मे की नमाज़ पढने हम एक मस्जिद में थे ..नमाज़ शुरू हो गई थी कुछ लोग देरी से तो कुछ लोग बहुत देरी से आये .खुतबा शुरू हुआ फर्ज़ पढ़े और मोलाना दुआ करवाते इसके पहले ही कई लोग हमेशा की तरह इमाम के पीछे नमाज़ की नियत बांध कर भी अपनी अलग नमाज़ पढ़ रहे थे इधर इमाम साहब फर्ज़ के बाद दुआ की तकमील कर रहे थे और इधर कुछ लोग अपनी नमाज़ अलग पढ़ रहे थे कुछ बच्चे भी मस्जिद में थे ..बच्चे तो बच्चे होते है वोह अपनी तरह से समझते है एक ने देर से आने वाले पर टिप्पणी की देख लो खुदा पर अहसान करने आ गये देर से ही सहे आ तो गए ..दुसरे ने अपनी नमाज़ अलग पढ़कर जल्दी जाने वालों पर टिपण्णी की ,,,,,,,इन लोगों के टाटा ..बिडला ..से भी बढ़ी बिजनेस है इनमे कोई तो उद्द्योग्पति है कोई भारत का प्रधानमंत्री कोई राष्ट्रपति है अगर यह इमाम के साथ नमाज़ पढने में दो मिनट ज्यादा दे देंगे तो देश बर्बाद हो जाएगा इसलियें इन्हें तो जल्दी है तो यह तो बेचारे इमाम साहब के पीछे होकर भी उनके पीछे नमाज़ नहीं पढ़कर खुद की अलग से नमाज़ पढ़ कर जा रहे है ...एक नमाज़ी ने कहा के बच्चे तो बच्चे होते है मन के सच्चे होते है उनकी बात में दम तो है ....में सोचने लगा के सही तो है एक जुम्मा जो फर्ज़ है जिसका कुरान में विशिष्ठ हुक्म है वोह भी इमाम के पीछे सही वक्त पर अगर हम पहुच कर नहीं पढ़ सकें ..इमाम के पीछे उसके साथ अनुशासित तरह से नमाज़ पढने में हमे एतराज़ हो हम दो मिनट पहले जाने के लियें अगर बिना किसी ख़ास वजह के इस अनुशासन को तोड़े तो शायद यह इस्लाम की निगाह में अपराध है अनुशासन को तोडना है ..मेने यह भी देखा के मस्जिद में नमाज़ पढने के बाद जहां पहले कई सालों पहले मस्जिदों में आने जाने वालों की एक दुसरे से दुःख दर्द पर चर्चा होती थी मदद की बातें होती थी तबादले ख्याल होते थे वोह सब बंद बस नमाज़ पढ़ी मोटरसाइकल या कर उठाई और छूमंतर शायद इसे हम रस्म सी समझने लगे है ..मुझे पता नहीं के इस तरह के नमाजियों को केसे समझाएं वोह सही है या गलत ....लेकिन इस मामले में कुरान और हदीस में मसले तलाशे तो बहुत कुछ मिला बहुत कुछ नहीं भी मिला इस खोज खबर के लियें में किसी मुफ्ती जानकार का भी सहारा लूँगा लेकिन मेने सोचा मेरे पास तो मेरे अपनों की अपने ज्ञानियों की जानकारों की एक दुनिया है ऐसी खुबसूरत दुनिया जिनके पास हर सवाल का जवाब है तो फिर इस दुनिया से इस सवाल का जवाब क्यूँ ना मांग लूँ तो दोस्तों इस सवाल के जवाब की तलाश में में आपको भी तकलीफ दे रहा हूँ अगर मिले तो प्लीज़ मसलों सहित बताने की महरबानी करे .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. Akhtar bhai, ismein kai soch hai... Masjid mein chande ke kaaran imaam saahab kuchh der dua ke liye ruk jaatey hain.... Jise aksar log sahi nahi maantey.... Aur aagey ki namaaz shuru kar dete hain... Jo ki galat bhi nahi hai... Kyonki farz namaaz ke baad chandey ke liye rukne ka mazhab se koi talluk nahi hai...

    Dusri or aksar naukri karne walo ko office ya factory se itna time nahi milta hai, ki intzaar kiya jaa sakey... Isliye voh dua ki jagah apni namaaz puri karne lagtey hain.... Fir namaaz chhodne se aise padhna zyada behtar hai...

    Mere khayaal se aapko to chup rahne ki jagah bachcho ko samjhana chahiye tha...

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