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10 मार्च 2012

अखिलेश के सामने हैं पांच चुनौतियां




नई दिल्ली. अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी के नवनिर्वाचित 224 विधायकों ने अपना नेता चुन लिया है। वे 15 मार्च को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। 38 साल के अखिलेश यादव राजनीतिक तौर पर देश के सबसे अहम सूबे के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन ऑस्ट्रेलिया से पढ़कर लौटे 'समाजवाद' की खुरदुरी राजनीतिक जमीन पर अपने राजनीतिक करियर की अब तक की सबसे बड़ी 'परीक्षा' देने जा रहे अखिलेश के लिए चुनौतियों का सिलसिला शुरू हो चुका है। आइए, उनके सामने सवाल के रूप में खड़ीं कुछ चुनौतियों पर नज़र डालें:
कानून व्यवस्था
समाजवादी पार्टी की विचारधारा भले ही सैद्धांतिक तौर पर लोहिया का 'समाजवाद' हो, लेकिन सच यही है कि पार्टी की आम लोगों के बीच छवि इससे मेल नहीं खाती है। सपा की धुर विरोधी मायावती हमेशा ही सपा को 'गुंडों' की पार्टी बताती रही हैं। इस्तीफा देने के तुरंत बाद मायावती ने राज्य की जनता को चेतावनी भी दे डाली है कि जल्द ही उन्हें सपा की सरकार बनवाने का पछतावा भी होगा। क्या ये आरोप पूरी तरह से निराधार हैं? शायद नहीं, क्योंकि 6 मार्च को नतीजे सामने आने के बाद सपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं, नवनिर्वाचित विधायकों के जीत के जुलूस में मारपीट, राजनीतिक विरोधियों की हत्या और कानून को हाथमें लेने की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। नतीजे आने के बाद अखिलेश यादव ने कहा था कि वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को अनुशासन में रहने की हिदायत दे चुके हैं। लेकिन उनकी हिदायत का अब तक कोई असर नहीं दिख रहा है। ऐसे में आपराधिक इतिहास वाले नेता डीपी यादव को अपनी पार्टी से अलग रखने का फैसला लेने वाले अखिलेश यादव की मौजूदा समय में सबसे बड़ी जिम्मेदारी न सिर्फ अपनी पार्टी के लोगों पर लगाम लगाना है बल्कि सूबे में कानून व्यवस्था का 'राज' कायम करना भी है ताकि उनके विरोधियों को यह कहने का मौका न मिले कि यह 'पुरानी' समाजवादी पार्टी है, जिसकी छवि 'गुंडागर्दी' से जुड़ती रही है। उन्हें अपनी कार्यशैली से इस मान्यता को तोड़ना होगा।
वादे पूरे करना
सपा ने घोषणापत्र में वादों की झड़ी लगा दी है। लगातार खस्ताहाल हो रहे उत्तर प्रदेश के सरकारी खजाने पर उनकी घोषणाएं भारी लग रही हैं। अखिलेश लगातार कह रहे हैं कि उनकी पार्टी सभी वादेपूरी करेगी। लेकिन करीब 19 हजार करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे वाले उत्तर प्रदेश पर अखिलेश के वादे आने वाले पांच सालों में करीब 66 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार डालेंगे। ऐसे में अखिलेश यादव के सामने यह भी बड़ी चुनौती है कि वे सूबे की जनता से किए अपने वादे पूरे करें।

भूमि अधिग्रहण का मुद्दा
मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव के सामने भूमि अधिग्रहण का भी सवाल होगा। उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार की कई योजनाएं भूमि अधिग्रहण के विवाद में फंस गईं। मायावती को मजबूरी में भूमि अधिग्रहण को लेकर नया कानून बनाना पड़ा। लेकिन उनके नए कानून से भी प्रदेश के कई किसान खुश नहीं हैं। गंगा एक्सप्रेस वे, नोएडा एक्सटेंशन जैसी योजनाएं अटकी पड़ी हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश के सामने इन मुद्दों का जल्दी से निस्तारण और ऐसा हल खोजना बड़ी चुनौती होगी, जिससे किसान, बिल्डर और आम निवेशक-तीनों के हित प्रभावित न हों।

तजुर्बा न होना
अखिलेश यादव प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रचने जा रहे हैं। लेकिन जहां एक तरह उनका युवा होना उनका सबसे मजबूत पक्ष माना जा रहा है, वहीं जानकार यह भी मानते हैं कि देश के सबसे बड़े सूबे के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री के तौर पर लोगों की उम्मीदें पूरी करना बेहद मुश्किल है। सपा के 20 सालों के इतिहास में यह सबसे पहला मौका है, जब पार्टी को अपने बलबूते पर बहुमत मिला है। ऐसे में अखिलेश से लोगों की उम्मीदें भी बहुत ज़्यादा हैं। अखिलेश आज तक किसी पद पर नहीं रहे हैं। वे सपा के सांसद और प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर काम करते रहे हैं। उनके पास किसी तरह का प्रशासनिक अनुभव नहीं है। ऐसे में बिल्कुल न के बराबर तजुर्बा रखने वाले अखिलेश के लिए जनता उम्मीदों का बोझ उठाना आसान नहीं होगा। सपा की संभावित कैबिनेट में कुछ ही मंत्री होंगे जो अखिलेश यादव से कम उम्र के होंगे। कैबिनेट के ज़्यादातर मंत्री उनसे ज़्यादा उम्र के और राजनीति का लंबा तजुर्बा रखने वाले होंगे। ऐसे में सबके साथ तालमेल बिठाकर चलना और सरकार चलाना अपने आप में बड़ी चुनौती होगी।

पार्टी में स्वीकार्यता
अखिलेश यादव को सपा के विधायकों ने अपना नेता चुन लिया है। शनिवार को आजम खान और शिवपाल यादव जैसे नेताओं ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा और उसका समर्थन किया। मुख्यमंत्री पद के लिए अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव की 'जगह' ले ली है। लेकिन क्या वे पार्टी में भी वैसे ही 'सर्वमान्य' नेता बन सकेंगे जैसे मुलायम सिंह यादव हैं? पार्टी में अखिलेश को लेकर ऊहापोह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजम खान और शिवपाल यादव ने अब तक अखिलेश यादव के यूपी का अगला सीएम बनने को लेकर खुलकर अपनी राय नहीं रखी है। शनिवार से पहले तक आजम खान से जब भी अखिलेश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मुलायम सिंह यादव को ही अपना नेता बताया और कहा कि पार्टी इस बात पर फैसला करेगी कि अखिलेश मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं। यानी साफ है कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने अखिलेश का बतौर मुख्यमंत्री खुलकर समर्थन नहीं किया है। जबकि राम गोपाल यादव ने ऐसे ही सवाल के जवाब में कहा था कि अगर अखिलेश मुख्यमंत्री बनते हैं तो उन्हें सबसे ज़्यादा खुशी होगी। ऐसे में पार्टी के युवा नेताओं और पार्टी के पुराने 'समाजवादियों' को साथ लेकर चलना अखिलेश का सामने बड़ी चुनौती है।

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