होली का त्योहार अपने अंदर अनेक विविधताओं को समेटे हुए हैं। भारत के हर प्रदेश, क्षेत्र व स्थान पर होली के त्योहार की एक अलग परंपरा है। कुछ स्थानों पर होली के पांच दिन बाद यानि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंगपंचमी खेलने की परंपरा भी है। धुरेड़ी पर गुलाल लगाकर होली खेली जाती है तो रंगपंचमी पर रंग लगाया जाता है। इस बार रंगपंचमी का पर्व 12 मार्च, सोमवार को है।
महाराष्ट्र में इस दिन विशेष भोजन बनाया जाता है, जिसमें पूरनपोली अवश्य होती है। मछुआरों की बस्ती में इस त्योहार का मतलब नाच, गाना और मस्ती होता है। ये मौसम रिश्ते(शादी) तय करने के लिये उपयुक्त होता है, क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक दूसरे के घरों में मिलने जाते हैं और काफी समय मस्ती में व्यतीत करते हैं।
मध्यप्रदेश में भी रंगपंचमी खेलने की परंपरा है। खासतौर पर मालवांचल में इस दिन युवकों की टोलियां सड़कों पर निकलती है और रंग लगाकर खुशियों का इजहार करती है। मालवांचल में इस दिन जुलूस जिसे गैर कहते हैं, निकालने की परंपरा भी है। गैर में युवक शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए चलते हैं और हैरतअंगेज करतब भी दिखाते हैं। रंगपंचमी होली का अंतिम दिन होता है और इस दिन होली पर्व का समापन हो जाता है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
10 मार्च 2012
रंगपंचमी 12 को, अनूठी परंपरा है इस पर्व की
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