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06 मार्च 2012

हजारों साल पुरानी है इस त्योहार की दुर्लभ परंपरा

होली मुबारक हो जनाब
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होली... बसंत उत्सव... फाग... फागुन... एक ऐसा त्यौहार जिसमें सभी रिश्तों, दोस्ती आदि के मतभेद, मनमुटाव, गिले-शिकवे, दूरियां मिट जाती हैं... और मजबूत होती है रिश्तों की नाजुक डोर। होली को लेकर यह बात आधुनिक समाज में ही नहीं प्रचलित है अपितु पुरातन काल से ही होली का त्यौहार मिलन का प्रतिक माना गया है। होली को सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। होली की शुरूआत कब हुई इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। परंतु पुराण आदि धर्म ग्रंथों में होली संबंधी अनेक कथाएं मिलती है। उन्हीं में से कुछ प्रमुख दंत कथाएं इस प्रकार है:

प्रहलाद और होलिका

होली का प्रारंभ प्रहलाद और होलिका के जीवन से जुड़ा है। प्रहलाद और होलिका की कथा विष्णु पुराण में उल्लेखित है। हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया। अब वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से मर सकता था न पशु से। वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी। परंतु पुत्र प्रहलाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बहुत सी यातनाएँ दीं। पंरतु पुत्र ने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अत: दैत्यराज ने होलिका को विष्णु भक्त पुत्र का अंत करने के लिए प्रहलाद सहित आग में प्रवेश करा दिया। परंतु होलिका का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में जल कर मर गई। बस प्रहलाद की इसी जीत की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

शिव पार्वती और कामदेव

शिव पुराण के अनुसार हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तप कर रही थी और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने भेजा, परंतु शिव ने क्रोधित हो कामदेव को भस्म कर दिया। शिव की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह के राजी कर लिया। इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

पूतनावध

कंस को जब आकाशवाणी द्वारा पता चला कि वासुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसका विनाशक होगा। तो कंस ने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया। कारागार में जन्में देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मार दिया। आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। वासुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आए। कंस उस कन्या को मार नहीं सका। तब आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले तो गोकुल में जन्म ले चुका है। अब कंस ने उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा। वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई। लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अत: पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।

राधा और श्रीकृष्ण

होली का त्यौहार राधा और श्रीकृष्ण की पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। वसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण की लीला का ही एक अंग माना गया है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो जगप्रसिद्ध है। होली पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर-द्वेष की, ईष्र्या की, संशय की और प्राप्त किया जाता है विशुद्ध प्रेम।

राक्षसी ढुंढी की मृत्यु

राजा पृथु के समय में एक राक्षसी थी ढुंढी। वह नवजात शिशुओं को खा जाती थी। राक्षसी को वर प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। लेकिन शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से मुक्त नहीं थी। राजा पृथु को ढुंढी को खत्म करने के लिए राजपुरोहित ने एक उपाय बताया कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी क्षेत्र के सभी बच्चे एक-एक लकड़ी एक जगह पर रखें और जलाए, मंत्र पढ़ें और अग्नि की परिक्रमा करें तो राक्षसी मर जाएगी। हुआ भी ऐसा ही इतने बच्चे एक साथ देखकर राक्षसी ढुंढी अग्नि के नजदीक आई तो उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया। तब से इसी तरह मौज मस्ती के साथ होली मनाई जाने लगी।

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