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13 फ़रवरी 2012

Love इज एक्चुअली ‘माइंड गेम’ देखिए क्या है पूरी परिभाषा

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जयपुर.दिमाग का लिम्बिक सिस्टम (जहां से थॉट्स की कंट्रोलिंग होती है) प्यार का अहसास कराता है। न्यूरो केमिकल प्यार में उत्तेजना, घृणा, शारीरिक आकर्षण जैसे प्रभाव लाते हैं। ब्रेन का थॉट प्रोसेस ही प्यार में डूबने के बाद खूबसूरत दिखने-बनने को प्रेरित करता है।

यानी दिल का ये रिश्ता बनता भी दिमाग से है और चलता भी दिमाग से है। प्यार की पूरी प्रक्रिया के पीछे गहरे तक विज्ञान जुड़ा हुआ है, जिसे ‘साइंस ऑफ लव’ कहा जाता है। फिर चाहे बात केमिस्ट्री ऑफ लव (न्यूरोकेमिकल), फिजिकल एपीरियंस साइकोलॉजी ऑफ लव (सोच) की हो।

प्यार कराते हैं न्यूरोकेमिकल्स

ये केमिकल्स कराते हैं लव

टेस्टोस्टीरॉन, ऑक्सीटोसिन, सिरोटोनिन और एड्रिनालिन जैसे न्यूरोकेमिकल प्यार कराते हैं। न्यूरोकेमिकल प्यार को प्रभावित भी करते हैं, जैसे मिलने की इच्छा होना, गुस्से या नफरत का भाव आना इन्हीं से होता है।

प्यार की शुरुआत केमिस्ट्री से ही होती है। ब्रेन में पाए जाने वाले न्यूरोकेमिकल ही प्यार के होने का अहसास कराते हैं। साइकैट्रिस्ट डॉ. आरएन साहू बताते हैं कि दिमाग का लिम्बिक सिस्टम प्यार को संचालित करता है।

न्यूरो केमिकल और उसके प्रभाव : एड्रिनालिन और ऑक्सीटोसिन - यह दोनों एक्साइटमेंट लाते हैं। इसमें मिलने की उत्सुकता, उसके इंतजार में तड़प, उसे सामने देखकर हाथ-पैर कांपना, धड़कन तेज होने जैसे प्रभाव इन्हीं से होते हैं।

सिरोटोनिन :यह पूरी तरह मूड रेगुलेटर है। अपने पार्टनर के साथ अच्छा रिलेशनशिप होना यानी प्यार को लेकर फील गुड कराता है।

टेस्टोस्टीरॉन :यह शारीरिक आकर्षण के लिए जिम्मेदार है। यह पार्टनर के करीब जाने की इच्छा जगाता है।

साइकोलॉजी ऑफ लव : थ्री स्टेजेस

धीरे-धीरे होता है गहरा

पार्टनर को इंप्रेस करने की कोशिश, फिर उसकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखना और अंत में ईगो खत्म हो जाना लव की तीन स्टेजस हैं। प्यार होने से उसके परिपक्व होने तक मानसिकता में आए बदलाव साइकोलॉजी ऑफ लव हैं।

पहली स्टेज में अपने पार्टनर को इंप्रेस करने की भरसक कोशिश होती है। लेकिन, यह मैच्योर होते प्यार के साथ कम होती जाती है। मनोचिकित्सक और काउंसलर डॉ. रूमा भट्टाचार्य कहती हैं कि मोटे तौर पर प्यार की तीन स्टेज होती हैं। किशोरावस्था के प्यार में लड़का-लड़की की साइकोलॉजी एक-दूसरे को इंप्रेस करने, अच्छा दिखने की होती है।

चाहे वह इनर साइड (अपने आपको इंटेलिजेंट, कूल दिखाना) हो या आउटर साइड (कपड़ों, हेयर स्टाइल, एसेसरीज, लुक)। प्यार थोड़ा मैच्योर होने पर बात पार्टनर की पसंद के मुताबिक खुद को ढालने या अच्छा बनने की कोशिश करना। अपनी आदतें बदलना, कॅरिअर या स्टडी में अच्छा परफार्मेस देना, जबकि पूरी तरह परिपक्वप्यार एक-दूसरे को एक्सेप्ट करने, विश्वास, समर्पण को तवज्जो देता है।

बदल जाता है फिजिकल बिहेवियर

हो जाते हैं केयरिंग

लव होते ही फिजिकल बिहेवियर भी चेंज हो जाता है। लड़कियां ज्यादा केयरिंग हो जाती हैं और लड़के ज्यादा ग्रेसफुल हो जाते हैं। मनोचिकित्सक बताते हैं कि लव, लाइफ में बहुत सारे पॉजिटिव बदलाव लाता है।

मूड जॉली हो जाता है, सबकुछ खुशनुमा लगने लगता है और आप उसी तरह बिहेव करते हैं। फस्र्ट लव की फीलिंग किसी को थ्रिलिंग, तो किसी को एक्साइंिटंग या कूल लगती है। मनोचिकित्सक शिव गौतम बताते हैं कि लाइफस्टाइल में पॉजीटिव चेंजेज आते हैं। अपोजिट जेंडर के साथ बिहेवियर बदल जाता है।

खुद को सुंदर दिखाने की चाह के कारण पर्सनल केयर और मेकअप में ज्यादा टाइम खर्च होने लगता है। हैबिट्स को पार्टनर की पसंद के मुताबिक आइडियल बनने की कोशिश करते हैं। उठने-बैठने का तरीका अट्रैक्टिव या पार्टनर की पसंद के मुताबिक बदला है।

आउटर चेंजेस : ड्रेसिंग सेंस और गेटअप चेंज करते हैं पार्टनर की पसंद के मुताबिक एसेसरीज-मेकअप में बदलाव हर काम में ग्रेसफुलनेस दिखने लगती है। ज्यादा केयरिंग हो जाते हैं।

..और बैलेंसशीट लड़कियों के फेवर में

आउटिंग, डेटिंग, पार्टी

आंखों के रास्ते होता हुआ प्यार आखिर में जेब पर जाकर ठहरता है। अकाउंट्स ऑफ लव की बैलेंस शीट अक्सर लड़कियों के पक्ष में रहती है। लव शो करने में आउटिंग, डेटिंग, पार्टीज, गिफ्ट्स में खासा पैसा खर्च होता है।

मौके जब वैलेंटाइंस डे, फ्रें डशिप डे, न्यू ईयर जैसे हों तो जेब का और ढीला होना लाजिमी हो जाता है। सिटी के यूथ के खर्च का एवरेज लें तो पार्टी में 500से 1,500 रु. तक, मूवी में 300 से 800 रु. तक आउटिंग में 2,000 से 20,000 रु., गिफ्ट में १,क्क्क् से 50,000 रु. तक खर्च हो सकते हैं।

कहीं रिटर्न ज्यादा तो कहीं जेब खाली: बीई स्टूडेंट अभिजीत दासगुप्ता कहते हैं कि पॉकेटमनी के पैसे जोड़कर और बाकी कुछ दूसरे खर्चो में कटौती से ही प्यार चलता है। खास मौकों पर तो उधारी ही एक सहारा होती है। फरवरी का महीना तो बहुत ही महंगा पड़ता है चॉकलेट डे, टैडी डे, वैलेंटाइंस डे यानी खर्चो की बारात होती है। पार्टी भी दो और गिफ्ट भी। वहीं आयुषी जैन का कहना है कि खर्च कितना भी हो रिटर्न ज्यादा ही मिलता है।

दिक्कत देता है केमिकल लोचा

कई बार प्यार में उपजी गड़बड़ियों जैसे बहुत पजेसिव हो जाना, ओवर रिएक्ट करना इन्हीं केमिकल्स के इंबैलेंस से होता है।

इसे कहते हैं मैच्योर लव

एक-दूसरे को उसी रूप में दोनों एक्सेप्ट करते हैं जैसे वो असल में होते हैं। यही वह स्टेज है जिसमें आकर प्यार लांग टर्म चलता है।

ये होते हैं पर्सनॉलिटी में इनर चेंज

पार्टनर की पसंद के मुताबिक स्मोकिंग या ऐसी ही हैबिट्स बदलते हैं और पार्टनर के रुटीन के जैसा रुटीन मेंटेन करना।

20 प्रति बिजनेस एक ही दिन में

दुनियाभर में वैलेंटाइंस डे पर साल भर में खरीदे जाने वाले ग्रीटिंग कार्डस के 20 प्रतिशत खरीदे जाते हैं।

1 टिप्पणी:

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