पंजाब की भूमि वीर योद्धाओं के शौर्य गाथाओं और मानवता के लिए सर्वस्व त्याग देने वाले लोगों की कहानियों से भरी है। इसी प्रांत में सिख धर्म का उदय हुआ और यह देश- दुनिया तक फैला। इन कहानियों के स्वर्णभंडार से हम आपके लिए कुछ कहानियां लेकर आए हैं।
पेश है महाराजा रंजीत सिंह के जीवन की कुछ बातें---
जिस शख्स ने आपस में लड़ती-झड़पती मिस्लों को खत्म किया, उसका सपना था कि एक एकीकृत साम्राज्य का गठन किया जाए, जिसमें क्षेत्रीय राष्ट्रीयता की भावना का पोषण हो। वो शख्स था रंजीत सिंह सुकेरचकिया, जिसने पंजाबियों की अथक ऊर्जा को पड़ोसी देशों को जीतने में जोत दिया। रंजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर, 1780 को हुआ था।
यद्यपि महाराजा रंजीत सिंह खुद कुरूप थे, लेकिन वे खूबसूरत चीजों का सम्मान करना जानते थे। खुद एकदम साधारण कपड़े पहनते (सर्दियों में केसरी कश्मीरा और गर्मियों में सफेद मलमल के वस्त्र), लेकिन उनका आग्रह रहता कि उनके दरबारी और आगंतुक अपने राजचिह्नों के मुताबिक परिधान और आभूषण पहनकर रखें।
उनके दरबार में कश्मीरी कन्याओं की एक टोली थी, जो सैनिकों के कपड़ों में होती और विशेष समारोहों पर महाराजा के साथ घोड़ों पर सवार होकर निकलती। उन्हें प्रकृति का खुला संसार भी वैसे ही मोहता था। अपना सुबह का समय वे घुड़सवारी करते हुए किसी नदी किनारे या किसी उपवन में बिताते। जब आकाश काले बादलों से आच्छादित हो जाता और बूंदें बरसने लगतीं, तो वे विभोर हो उठते।
शालामार का मुगल बाग (जिसे उन्होंने शालाबाग - प्रेमियों का बाग, नाम दे रखा था) उनकी पसंदीदा आरामगाह थी। अपने पसंदीदा बांसुरीवादक अतर खान की मोहक धुनें सुनते। पंजाब में रंजीत सिंह का सबसे बड़ा साम्राज्य था। अफगानिस्तान के काबुल तक उनका डंका बजता था।
अंग्रेज उन्हें सबसे शक्तिशाली भारतीय राजाओं में एक मानते थे। रंजीत सिंह ने ही अफगानिस्तान के शासक शाहशुजा से सबसे बहुमूल्य कोहिनूर का हीरा छीना था। वे इतने बुद्धिमान शासक थे कि भारत में अंग्रेजी शक्ति की चालों को समय रहते भांप गए थे औऱ उसी के अनुकूल उन्होंने अपनी रणनीतियां बनाईं थीं। बाद में इतिहास ने साबित किया कि उनकी सोच कितनी दूरदर्शी थी।
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