हिंदू धर्म में चारों वेद ही सबसे पुराने ग्रंथ माने गए हैं। मान्यता के अनुसार इन वेदों की रचना स्वयं भगवान ने की है। वेदों से ही मानव द्वारा अध्ययन में लाए जो वाले सभी शास्त्रों और विद्याओं का जन्म हुआ है। इन शास्त्रों में तंत्र शास्त्र भी एक है। भारतीय दर्शन में तंत्र विद्या को आगम कहा गया है।
तंत्र शास्त्र के देवता भगवान शिव को माना गया है। उनके द्वारा कहा गया तंत्र होने से इस शास्त्र का ज्ञान रखने वाले और इसे प्रयोग करने वालों को शाक्त कहा गया है। कलियुग में तंत्र विद्याएं अधिक सिद्ध मानी गई हैं लेकिन इसके लिए गुरु से इनकी विधिवत दीक्षा ग्रहण करना आवश्यक है। तंत्र शब्द तन व त्र: से मिलकर बना है। यहां तन का अर्थ है विस्तार और त्र का अर्थ है त्राण यानी रक्षा करने वाला। इस तरह तंत्र के द्वारा हम कल्याणकारी उपायों का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि मानव जाति को सभी भयों से मुक्ति दिलाने में तंत्र शास्त्र सक्षम है।
तंत्र क्रियाओं में कुछ द्रव्यों, पदार्थों व वनस्पतियों आदि सामग्री का भी उपयोग किया जाता है। विशेष सिद्धि के लिए की जाने वाली तंत्र क्रियाओं का समय, स्थान, आसन व दिशा आदि निश्चित होता है। इस तरह यह कहना गलत नहीं होगा कि तंत्र शास्त्र भी वेदों की तरह ही पुरातन व जनकल्याणकारी है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
28 फ़रवरी 2012
क्या है तंत्र शास्त्र का महत्व व कौन हैं तंत्र के देवता?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)