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27 फ़रवरी 2012

कोटा के पत्रकार जहां आपस में प्यार कम तकरार ज्यादा होने लगी है ..इश्वर इन्हें सद्बुद्धि दे

दोस्तों अप और हम सभी जानते हैं के जानवर जानवर को नहीं काटता ..सांप सांप को नहीं डसता ..कुत्ते कुत्ते को नहीं काटते इंसान इंसान को नहीं काटते लेकिन इंसानों में ही एक ज़ात पत्रकारों की ऐसी है जो बातें तो बढ़ी बढ़ी करते है लेकिन जब वक्त पढ़ता है तब सब गेर हो जाते है और एक दुसरे को उपेक्षित करने ..एक दुसरे को निचा दिखाने के बारे में सोचने लगते है ..ऐसा कहीं हो या ना हो हमारे कोटा राजस्थान में तो खूब हो रहा है यहाँ वेसे तो दो बढ़े अख़बारों की लड़ाई में काफी पत्रकार पिस रहे है ....लेकिन कई ऐसे भी मामले है जो पत्रकारों की कोई खास सार सम्भाल नहीं है ..अभी पिछले दिनों कोटा के एक वरिष्ठ लेकिन गरीब पत्रकार जनाब अजित मधुकर जी की अस्पताल में म़ोत हो गयी ..लोग उनकी शव यात्रा में गये नहीं गये लेकिन अब सब उन्हें भूल गये ..उनकी म़ोत की खबर कुछ अख़बारों में छपी कुछ में नहीं छपी ..प्रेस क्लब के कार्यक्रम होते है ..पत्रकार संगठनों के कार्यक्रम होते है कुछ छपते है कुछ को छापा नहीं जाता .......अभी हाल ही में कोटा के एक वरिष्ठ पत्रकार देनिक जन्धारना पक्ष के जनाब मनोहर परिक के साथ हादसा हुआ ..वोह बस स्टेंड पर खड्डे में गिरे उनके पाँव की हड्डियाँ टूट गयी वोह इधर से उधर अस्पतालों में चक्कर लगाते रहे लेकिन उनकी कोई पत्रकार मदद करने नहीं आया ...खुद अपने स्तर पर उन्होंने इलाज करवाया अस्पताल के क्यूबिकल वार्ड में रहे वोह प्रेस क्लब के पदाधिकारी भी रहे और उन्होंने झारखंड रिश्वत काण्ड का खुलासा किया था इसलियें विभिन्न पत्रकारिता पुरस्कारों से उन्हें नवाज़ा गया लेकिन बेचारे सभी के सुक्ख दुक्ख में काम आने वाले भाई मनोहर परिक की इस दुक्ख की घड़ी में उनसे मिलने गिनती के पत्रकार गये उनके साथ घटित दुर्घटना की खबर भी किसी पत्रकार ने नहीं छापी ..जबकि किसी का कुत्ता भी अगर बीमार हो जाये तो वोह खबर अख़बारों में छपती है ...........लेकिन हमारे मनोहर परिक साहब काफी दिनों तक अस्पताल में तड़पते रहे उनके परिवार और मित्रों के आलावा किसी भी पत्रकार ने उनकी सुद्ध नहीं ली ....अभी पिछले दिनों भास्कर के एक पत्रकार जनाब स्लिम शेरी साहब को फोटो पत्रकारिता के लियें जिला प्रशासन ने पुरस्कर्त किया उनके लियें और कोटा के पत्रकारों के लियें यह गोरव की बात थी .लेकिन जनाब एक अख़बार में भी उनकी खबर नहीं छपी किसी ने उन्हें बधाई नही दी इतना ही नहीं अभी पिच्छले दिनों एक खबर के मामले में फोटोग्राफी करते वक्त गुजरों ने उन पर हमला कर उनका हाथ तोड़ दिया ..उनके अख़बार के अलावा दुसरे अख़बारों में खबर नदारद थी ..कुल मिलाकर पत्रकारिता की कोटा की दुनिया में तेरी मेरी ..की लड़ाई चल रही है ना जाने कितने गुट बने है दो बढ़े अख़बारों के झगड़े तो जग ज़ाहिर हैं लेकिन छोटे अख़बार भी एक नहीं है एक दुसरे को निचा दिखाने का काम कर रहे है कुछ तो राजनितिक पार्टियों के जनसम्पर्क कर्मचारी बने है कुछ राजनेताओं के मुखबिर बनकर काम कर रहे है कोटा में कोई भी अख़बार या संस्था हो पत्रकारिता के आधुनिकीकरण मामले में कोई भी सेमिनार या प्रशिक्ष्ण कार्यक्रम का आयोजन किसी ने भी नहीं किया है यानी पत्रकारिता के हालातों को सूधारने की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है ..पत्रकार छोटे बढ़े ..देनिक साप्ताहिक पाक्षिक ..इलेक्ट्रोनिक ... प्रिंट ..रिटायर्ड ....बिना रिटायर्ड ..कोंग्रेस.... भाजपा में बंट गए है और इन हालातों में यहाँ पत्रकारिता का व्यवसाय तो हो रहा है लेकिन पत्रकारिता के नाम पर समाज सेवा समाज के प्रति ज़िम्मेदारी नहीं निभाई जा रही है ऐसे में तो बस खुदा से यही दुआ है के कोटा जहाँ देश के सभी इलेक्ट्रोनिक टीवी चेनल और देनकी ..साप्ताहिक..पाक्षिक अख़बार पत्रिकाओं के संवाददाता है उनका कोटा से प्रकाशन है उन्हें खुदा सद्बुद्धि दे और पत्रकार एक जुट होकर कोटा में ही नहीं राजस्थान में ही नहीं विश्व भर में कोटा की पत्रकारिता का आज़ादी की लड़ाई जेसा इतिहास बनाये देखते हैं इन्तिज़ार करते हैं आने वाला कल कोटा की पत्रकारिता के लियें केसा होता है ........ खान अकेला कोटा राजस्थान

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