आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

27 फ़रवरी 2012

यहां शादी पूरी करने के लिए निभानी पड़ती है ऐसी रस्म कि कांप जाते हैं लोग

पाकुड़. एक ओर सरकार जहां लुप्त प्राय हो रहे आदिम जनजाति पहाडिय़ा को मुख्य धारा से जोडऩे के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च कर रही है वहीं, कुछ ऐसी सामाजिक मान्यताएं इस राह में आज भी रोड़ा बनीं हुई हैं। सुदूरवर्ती पहाड़ों में रहने वाले इन पहाडिय़ों में विवाह व भोज को ले एक अनोखी परंपरा है जो बाद में इन्हें सामाजिक मान्यता प्रदान करती है।

क्या है मान्यता ?

पहाडिय़ा समाज में पुरुष व महिला बिना विवाह किए वर्षों तक एक दूसरे के साथ पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इस कारण से इनके कई बच्चे भी हो जाते हैं परन्तु, बिना सामाजिक भोज के न ही महिलाएं सिंदूर लगा सकती हैं और न ही इन्हें वैवाहिक मान्यता ही मिलती है। हाशिए पर खड़े और गरीबी का दंश झेल रहे इन पहाडिय़ा परिवारों द्वारा भोज न दे पाने की स्थिति में जीवन के आखिरी दौर में ही भोज देने के कारण वैवाहिक मान्यता मिल पाती है। रीति-रिवाज के मुताबिक भोज में कम से कम भात व हडिय़ा दारू आवश्यक है। परंपरा के अनुसार विवाह से पूर्व ये जोड़े वर्षों तक केवल आपसी सामंजस्य बिठाने के लिए एक दूसरे के साथ रहते हैं। यदि किसी कारण वश इनके बीच का तालमेल ठीक नहीं बैठता है तो ये जोड़े कई बार एक दूसरे से अलग भी हो जाते हैं और फिर उसी परंपरा के अनुसार नए जोड़े बना लिए जाते हैं।

भोज के बाद ही महिलाएं पहनती हैं सिंदूर

पाकुड़ के अमड़ापाड़ा के पहाडिय़ा बहुल सिंगारसी गांव की सुरजी पहाडिऩ, कमली पहाडिऩ सहित न जाने ऐसी कितनी महिलाएं हैं जो कई वर्षों से अपने पति के साथ रहती हैं परन्तु, भोज न देने के अभाव में इन्हें समाज में वैवाहिक मान्यता नहीं मिली है। इन महिलाओं को अन्य महिलाओं की भांति सिंदूर नहीं लगाने लगाने का दर्द तो है ही पुरूषों में भी यह डर व्याप्त रहता है कि कहीं बिना वैवाहिक मान्यता के उनके जीवन संगिनी को किसी और के माथे न थोप दिया जाए।

सेवानिवृत सैनिक ने उठाया बीड़ा

सदियों से चली आ रही पहाडिय़ों की इस परंपरा को सामाजिक मान्यता देने का बीड़ा एक पूर्व सैनिक ने उठाया है। पाकुड़ के पूर्व सैनिक विश्वनाथ भगत स्वयं सेवी संस्था सेवा भारती के सौजन्य से बीते दो वर्षों में लगभग चार जोड़ों का सामूहिक विवाह व भोज करा चुके हैं। इस विवाह में दर्जनों ऐसे जोड़े मौजूद रहते हैं जो कई बच्चों के माता-पिता होते हैं या फिर अपने जीवन के आखिरी पड़ाव रहते हैं। श्री भगत ने बताया कि शिक्षा व सुविधाओं के अभाव पहाडिय़ा समाज में ऐसे कई कुरीति व्याप्त हैं।

खुला है सरकारी खजाना

जिले के कुल दस हजार से अधिक पहाडिय़ों के लिए सरकार की ओर से कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। सरकार द्वारा इनके लिए प्रत्येक माह मुफ्त 35 किलो अनाज दिया जाता है जबकि इनके बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा के लिए न सिर्फ दिवाकालीन स्कूल बल्कि आवासीय विद्यालय भी खोले गए हैं। दसवीं पास पहाडिय़ा युवकों का सीधी नियुक्ति, मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के अलावे दर्जनों योजनाएं कार्यान्वित हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...