दिलचस्प है कि यह सब बच्चे का शौक नहीं बल्कि गरीबी के कारण अपने और परिवारों का पेट पालने के लिए मजबूरन ऐसा करते हैं। बंजारा जैसी घूम-घूम कर जीवनयापन करने वाले उमेश कुमार मूलत: छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उनके साथ उनकी पत्नी तथा दो बच्चों दीपक और मनीषा के साथ अपनी जान जोखिम डाल कर लोगों को मनोरंजन करते है। इससे होने वाली आमदनी से ही इनके आय का जरिया है।
कैसे करते हैं करतब
ढाई वर्षीय दीपक एक छोटे से लोहे की रिंग में प्रवेश कर अपने पूरे शरीर को रिंग को पार कर लेता है। फिर लोहे का एक जलता हुआ एक बड़ा रिंग के बीच पार होता है। यह दृश्य देख उपस्थित भीड़ तालियों से उसका हौसला अफजाई करते हैं। उसी प्रकार छह बर्षीय मनीषा भी करतब दिखाने में महारत हासिल कर ली है।
वह दो बासों के बीच पलती डोर पर बगैर किसी सहारे सरफट दौड़ लगा लेती है। संतुलन बनाने के लिए हाथों में एक डंडा जरुर रखती है। मनीषा को ना गिरने का डर और ना ही मन किसी प्रकार का खौफ। भीड़ यह देखकर हैरत में पड़ जाते हैं। मनीषा और दीपक के कई कारनामें को देख भीड़ द्वारा दिये गये रुपया-दो रुपया से ही परिवार चलता है।
हो जाती है कमाई
उमेश बताते हैं कि खुले मैदान, सड़क, मेले, ग्रामीण हाट-बजारों आदि जगहों पर करीब घंटे भर तक करबत दिखाने पर सौ से ढेड़ सौ रुपया तक की कमाई हो जाती है। दिन भर में चार-पांच बार कर पाते हैं। उमेश की मानें तो रोजी-रोटी के चक्कर में कई सालों तक अपने घर भी नहीं जा पाते। जहां शाम हुई वहीं बसेरा डाल लेते हैं।
देख लो देश में कहने को तो कानून है के य्हना बच्चों को पढने की उम्र में कोई काम नहीं करवाना चाहिए साथ ही जोखिम भरे काम करवाना तो अपराध है और इस अपराध को देश की पुलिस अदालतें और मंत्री वगेरा सब देख कर खामोश हैं तो फिर पत्रकारों को तो क्या कहिये ...अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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