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04 फ़रवरी 2012

ईदमिलादुन्नबी पर विशेष: खुदा की मौजूदगी को समझेंगे तो गुनाह नहीं होगा!

इस्लाम एक संदेश है, तमाम इंसानों के लिए कि वो अपनी हकीकत को समझें। जिम्मेदारियों का इल्म हासिल करें। जब आदमी के जेहन में अपनी जिम्मेदारी और हर वक्त खुदा की मौजूदगी ताजा रहेगी, तब वो कोई गुनाह नहीं करेगा। तब दुनिया में आपसी सद्भाव और अमन-शांति का माहौल कायम होगा। खुदा ने इंसान को अपनी तमाम रचनाओं में बड़ा बनाया और उसमें अक्ल दी। हमें जिस्म और रूह दी, इन दोनों के संयोग से हम जिंदा हैं।

रूह को विकसित करने के लिए खुदा ने एक सिलसिला शुरू किया, जिसे रिसालत का सिलसिला कहते हैं। खुदा इन बंदों में से ही चुनकर अपना रसूल बनाकर भेजता है। जिन्हें पैगंबर कहते हैं, जिन्होंने इंसानों को नेकी और बदी की पहचान देकर जिंदगी जीने का सलीका सिखाया। करीब 1 लाख 24 हजार पैगंबरों ने दुनिया में खुदा का रास्ता बताया।

मोहम्मद साहेब को आखिरी पैगंबर बनाकर आखिरी किताब कुरआन की सूरत में इनायत की।मोहम्मद साहेब आज से 1473 साल पहले मक्का की सर जमीन पर पैदा हुए। 40 वर्ष की उम्र में आपको खुदा की ओर से पैगंबरी मिली। उन्होंने 10 साल मक्का शरीफ में इस्लाम को फैलाया और हर तरीके की तकलीफों को बर्दाश्त किया। उसके बाद खुदा के हुक्म से मदीना शरीफ हिजरत करके चले गए। जहां वे 13 साल रहे।

इस 23 साल की छोटी सी अवधि में वो इंकलाब किया कि लोगों के जेहन बदल गए। कानून बदल गए। इंसाफ और खुदा परस्ती का वो अजम पैदा हुआ कि दुनिया के बहुत बड़े हिस्से में इस बात को पहुंचा दिया। उन्होंने किसी कौम, मुल्क और दौर के लिए नहीं बल्कि इंसानियत के लिए खुदा का रास्ता बताया, इसलिए खुदा ने (सूरे अलआराफ आयात नं. 158) में फरमाया कि ‘ए-मोहम्मद कह दो के ए-इंसानों में तुम सबकी तरफ उस खुदा का भेजा हुआ रसूल हूं, जो आसमान और जमीन की बादशाही का मालिक है’।

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