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05 फ़रवरी 2012

पढ़िए, पैगम्बर के वे खास सबक, जो घोलते हैं दिल और ज़िंदगी में मिठास


आज इस्लामिक त्योहार मिलाद-उन-नबी है। इस्लामी शरीयत के मुताबिक, मिलाद के दिन को पवित्र पैगम्बर के जन्म के समय घटी घटनाओं के लिए याद किया जाता है। दरअसल, 'मिलाद' शब्द जन्म के समय और स्थान का प्रतीक है। यही कारण है कि इस्लाम धर्म में मतान्तर से यह त्योहार अल्लाह के दूत माने जाने वाले पैगम्बर हजरत मुहम्मद के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
इस्लामी केलेंडर के अनुसार, पैगम्बर हजरत मुहम्मद का जन्म 571 ई. 12 रबीउल अव्वल (इस्लामी बारहवां माह) को माना जाता है। यही नहीं मिलाद-उन-नबी का दिन मात्र पैगम्बर हजरत के जन्म का ही नहीं, बल्कि इस दुनिया से विदा होने का यानी रुखसत का भी माना जाता है। मुस्लिम समाज इस दिन को बारह-वफात के रूप में भी मनाता है।
पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने ही इस्लाम धर्म स्थापित किया। जिसके द्वारा उन्होंने मानवता, धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलने के ऐसे सबक सिखाए, जो हर इंसान को धार्मिक, सामाजिक व नैतिक रूप से मजबूत बनाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो पैगम्बर ने पवित्र कुरान के जरिए लोगों को तन, मन, आचरण व आत्म शुद्धि के ऐसे उपाय बताए जो न केवल इस्लाम धर्म को मानने वालों को वरन पूरे मानव समाज को एक होने का संदेश देकर दिल और ज़िंदगी में हमेशा मिठास घोलने वाले हैं। जानिए, आज के संदर्भ में पैगम्बर हजरत मुहम्मद द्वारा दिए गए ऐसी ही बातों और सबक का सार -
- जिहाद का मतलब है - खुदं पर विजय, न कि बाहरी दुनिया में लक्ष्य प्राप्ति के लिए अनैतिक, गैर-कानूनी और बुरे कर्म करना।
- किसी भी मकसद को पूरा करने के लिए झूठ और अन्याय का रास्ता न अपनाएं।
- बुरे वक्त या संकट के दौर में भी विवेक से काम लें यानी सही और गलत में फर्क समझकर फैसला लें।
- हर काम निर्भय होकर करें। कोई भी काम भय, संशय या उदासीनता के हालात में न करें।
- इच्छाओं और भावनाओं को काबू में रखें।
- गुस्से या क्रोध में आकर कोई गलत काम न करें।
- किसी भी प्रकार के कष्ट, विपत्ति में अपना मानसिक संतुलन बनाएं रखें
- स्वयं को पहचानना ही खुदा को जानना है।
- स्त्री को पूरा सम्मान दें, उनके धार्मिक स्थल पर जाने पर पाबंदी न हो।

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